3 IPS अधिकारियों को लेकर फिर आमने-सामने केंद्र और ममता सरकार, जानें कानूनन किसका पलड़ा भारी
केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच 3 आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुलाया जाने को लेकर तनातनी चल रही है. राज्य की ममता सरकार का कहना है कि वह अपने अधिकारियों को रिलीज नहीं करेगी.
केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार में एक बार फिर तनातनी है. इस बार वजह है पश्चिम बंगाल के 3 आईपीएस अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बुलाया जाना. राज्य की ममता सरकार का कहना है कि वह अपने अधिकारियों को रिलीज नहीं करेगी.
इस लेख में हम मामले में केंद्र सरकार और राज्य सरकार की शक्ति पर चर्चा करेंगे
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के कार्यक्रम पर हुए हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पश्चिम बंगाल कैडर के 3 आईपीएस अधिकारियों- भोलानाथ पांडे, प्रवीण त्रिपाठी और राजीव मिश्रा को दिल्ली तलब किया है. ऐसा करने का केंद्र को अधिकार है. दरअसल, भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय वन सेवा (IFS) अखिल भारतीय सेवा है. इनमें अधिकारियों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है. IPS अधिकारियों का कैडर आवंटन केंद्रीय गृह मंत्रालय करता है. उसका इन अधिकारियों पर नियंत्रण होता है. हालांकि, एक बार किसी राज्य कैडर में आवंटित हो जाने के बाद IPS अधिकारी उस राज्य सरकार के तहत काम करता है. राज्य सरकार उसे किसी पद पर नियुक्त करती है. जब ज़रूरी हो उसका ट्रांसफर करती है.
केंद्र सरकार ज़रूरी पड़ने पर किसी IPS अधिकारी को सेंट्रल डेप्यूटेशन यानी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अपने पास बुला सकती है. ऐसा एक निश्चित समय तक के लिए किया जा सकता है. बाद में वह अधिकारी अपने मूल कैडर में लौट जाता है. केंद्र सरकार एक सीमित समय के लिए किसी IPS अधिकारी को दूसरे राज्य में भी भेज सकती है. इंडियन पुलिस सर्विस (कैडर) रूल्स, 1954 के नियम 6 के मुताबिक केंद्र सरकार, राज्य की सहमति से किसी IPS अधिकारी को प्रतिनियुक्ति पर बुला सकती है. यानी राज्य सरकार की सहमति को महत्व दिया गया है. लेकिन यह अनिवार्य नहीं है. इसी नियम में यह लिखा गया है कि अगर राज्य सरकार केंद्र से सहमत न हो तब भी अंतिम फैसला केंद्र का ही होगा. राज्य सरकार को उसका पालन करना होगा.
ममता सरकार अधिकारियों को रिलीज करने से नहीं रोक सकती
उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में बताया कि IPS अधिकारी किसी राजनीतिक प्रभाव में आए बिना संविधान के मुताबिक काम करें, नियमों में इसकी व्यवस्था की गई है. इसलिए, केंद्र को उन्हें प्रतिनियुक्ति पर बुलाने की शक्ति दी गई है. राज्य सरकार सहमत न हो तब भी वह अधिकारियों को रोक नहीं सकती. 2001 में तमिलनाडु के वरिष्ठ नेता करुणानिधि को गलत तरीके से गिरफ्तार करने वाले तमिलनाडु के 3 IPS अधिकारियों को केंद्र ने तलब किया था. 2014 में IPS अर्चना रामसुंदर को भी प्रतिनियुक्ति पर बुलाया गया था. दोनों बार तमिलनाडु सरकार ने विरोध किया. लेकिन आखिरकार अधिकारियों को केंद्र में जाने से नहीं रोक पाई.
ऐसे में ममता बनर्जी सरकार का पलड़ा इस मामले में हल्का नज़र आता है. वह केंद्र के सामने आपत्ति तो कर सकती है, लेकिन यह नहीं कह सकती कि वह अपने अधिकारियों को रिलीज ही नहीं करेगी. केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद की स्थिति में सुनवाई के अधिकार सुप्रीम कोर्ट को होता है. ऐसे में हो सकता है पश्चिम बंगाल सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाए. लेकिन नियम साफ तौर पर केंद्र की तरफ झुका हुआ है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार यह साबित करने की कोशिश कर सकती है कि केंद्र का फैसला सही भावना से नहीं लिया गया है.
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