नई दिल्लीः केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक के लिए दिए जाने वाले हजारों करोड़ रुपए के अनुदान को सही ठहराया है. इस तरह के अनुदान को संविधान विरुद्ध बताने वाली याचिका का जवाब देते हुए सरकार ने हलफनामा दाखिल किया है कि इन योजनाओं के पीछे उद्देश्य हर वर्ग का संतुलित विकास है. यह बहुसंख्यकों के अधिकारों का हनन नहीं करतीं. पिछले हफ्ते कोर्ट ने मामले पर जवाब दाखिल करने को कहा था.


याचिका में कहा गया है कि इन योजनाओं के लिए 2019-20 में सरकारी खजाने से 4,700 करोड़ रुपए का बजट रखा गया. इसका कोई प्रावधान संविधान में नहीं है. संविधान का अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों को अपने लिए शैक्षणिक संस्थान और दूसरी संस्थाएं बनाने का अधिकार देता है. लेकिन संविधान में यह नहीं लिखा कि उसके लिए सरकार पैसा देगी. संस्थाएं बनाना और चलाना अल्पसंख्यकों को अपने आप करना चाहिए.


वकील विष्णु जैन के ज़रिए दाखिल याचिका में यह भी कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 27 इस बात की मनाही करता है कि करदाताओं से लिया गया पैसा सरकार किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने के लिए खर्च करे. लेकिन सरकार वक्फ संपत्ति के निर्माण से लेकर अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों, महिलाओं के उत्थान के नाम पर हजारों करोड़ रुपए खर्च कर रही है. यह बहुसंख्यक वर्ग के छात्रों और महिलाओं के समानता के मौलिक अधिकार का भी हनन है.


याचिकाकर्ता के वकील ने पिछले हफ्ते कोर्ट को बताया था कि याचिका पर पहली सुनवाई को डेढ़ साल बीत जाने के बावजूद अभी तक सरकार ने जवाब नहीं दाखिल किया है. इस पर एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने 1 हफ्ते में जवाब दाखिल करने की बात कही थी. अब सरकार ने जवाब दाखिल कर कहा है कि यह योजनाएं समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ नहीं हैं. इसके तहत अल्पसंख्यकों में जो तबके पिछड़े या कमज़ोर हैं, उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है. निर्धन छात्रों को मदद दी जा रही है. महिलाओं को रोजगार देने वाली ट्रेनिंग दी जा रही है. इससे समाज के सभी वर्गों के उचित विकास हो सकेगा. मामले पर 23 जुलाई को अगली सुनवाई हो सकती है.


असम के मंत्री रंजीत कुमार दास ने कहा, राज्य में साल 2016 से खाली पड़े हैं 1 लाख से अधिक पद