जजों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय फोर्स के गठन की मांग से केंद्र असहमत, कहा- राज्यों को बनानी चाहिए ऐसी संस्था
सुप्रीम कोर्ट ने जजों की सुरक्षा को लेकर केंद्र और सभी राज्यों से जवाब मांगा था. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच कर रही है.
नई दिल्लीः केंद्र ने जजों की सुरक्षा के लिए एक राष्ट्रीय फोर्स का गठन की मांग को अव्यवहारिक बताया है. केंद्र ने आज सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इस तरह की विशिष्ट फोर्स का गठन राज्यों को अपने स्तर पर करना चाहिए. यह बात केंद्र ने देश भर के निचली अदालत के जजों की सुरक्षा के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान कही है. झारखंड में एक जज की संदिग्ध मौत पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने यह सुनवाई शुरू की है.
कोर्ट ने इस मसले पर केंद्र और सभी राज्यों से जवाब मांगा था. चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने आज कहा, "हम राज्यों को यह निर्देश नहीं देना चाहते कि उन्हें क्या करना चाहिए. केंद्र राज्यों से बात करे." इस पर केंद्र के लिए पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "जजों की सुरक्षा को लेकर राज्यों को एक मॉडल दिशानिर्देश जारी किया गया है."
इस पर कोर्ट ने कहा कि सिर्फ गाइडलाइंस जारी करना समाधान नहीं हो सकता. केंद्र को हर राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी से पता करना चाहिए कि इसका कितना पालन हो रहा है. सॉलिसीटर जनरल ने इससे सहमति जताते हुए कहा कि वह केंद्रीय गृह सचिव को इस मसले पर सभी राज्यों के मुख्य सचिव और डीजीपी की बैठक बुलाने की सलाह देंगे.
इसके बाद बेंच ने कहा कि एक याचिका में जजों की सुरक्षा के लिए केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल या रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स की तरह की राष्ट्रीय संस्था बनाने की मांग की गई है. इसे लेकर केंद्र के क्या विचार हैं? तुषार मेहता ने जवाब दिया कि यह व्यवहारिक मांग नहीं है. पुलिस और कानून-व्यवस्था राज्य सूची के विषय हैं. राज्य के स्तर की कोई संस्था ही वहां पुलिस से बेहतर तालमेल बना कर काम कर सकेगी.
कोर्ट ने मामले में जवाब दाखिल न करने वाले राज्यों को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने इन राज्यों पर 1-1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया. साथ ही चेतावनी देते हुए यह भी कहा कि 10 दिन बाद होने वाली सुनवाई से पहले जिस राज्य ने जवाब दाखिल नहीं किया, उसके मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होना पड़ेगा.