Same-Sex Marriage: समलैंगिक शादी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का केंद्र ने किया विरोध, कहा- 'बड़ी आबादी गांवों में बसती है, इससे...'
Center On Same-Sex Marriage: केंद्र सरकार ने कहा है कि समलैंगिक शादी को मान्यता देने की मांग बड़े शहरों में रहने वाले कुछ अभिजात्य लोगों की है. इस तरह की शादी को कानूनी दर्जा देने का असर सब पर पड़ेगा.
Center On Same-Sex Marriage To SC: समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने पर सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ कल सुनवाई करेगी. याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह के रजिस्ट्रेशन की मांग की गई है. इस बीच केंद्र ने नया आवेदन दाखिल कर कहा है कि कोर्ट को यह सुनवाई नहीं करनी चाहिए. कोर्ट अपनी तरफ से विवाह की नई संस्था नहीं बना सकता.
केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि समलैंगिक शादी को मान्यता देने की मांग बड़े शहरों में रहने वाले कुछ अभिजात्य लोगों की है. भारत की बड़ी आबादी छोटे शहरों और गांवों में बसती है. इस तरह की शादी को कानूनी दर्जा देने का असर सब पर पड़ेगा. हर पहलू पर विचार कर कानून बनाना संसद का काम है. सुप्रीम कोर्ट को यह नहीं करना चाहिए.
SC समलैंगिक शादी पर केंद्र को दिया था नोटिस
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को भी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत लाकर उनका रजिस्ट्रेशन किए जाने की मांग की गई है. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया था. इसके चलते दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अब अपराध नहीं माना जाता. ऐसे में साथ रहने की इच्छा रखने वाले समलैंगिक जोड़ों को कानूनन शादी की भी अनुमति मिलनी चाहिए.
इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादी के मसले पर केंद्र को नोटिस जारी किया था. साथ ही अलग-अलग हाई कोर्ट में लंबित याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया था. अब कोर्ट के सामने 15 से अधिक याचिकाएं हैं. ज़्यादातर याचिकाएं गे, लेस्बियन और ट्रांसजेंडर लोगों ने दाखिल की हैं. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रविंद्र भट, पी एस नरसिम्हा और हिमा कोहली की बेंच इस पर सुनवाई करेगी.
कानून एक पुरुष को पति और महिला को पत्नी मानकर बने
मामले पर जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा है कि संसद से पारित विवाह कानून और अलग-अलग धर्मों की परंपराएं समलैंगिक शादी को स्वीकार नहीं करतीं. ऐसी शादी को मान्यता मिलने से दहेज, घरेलू हिंसा कानून, तलाक, गुजारा भत्ता, दहेज हत्या जैसे तमाम कानूनी प्रावधानों को अमल में ला पाना कठिन हो जाएगा. यह सभी कानून एक पुरुष को पति और महिला को पत्नी मान कर ही बनाए गए हैं.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने भी मामले में आवेदन दाखिल करते हुए समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने की इजाज़त देने का विरोध किया है. आयोग ने कहा है कि बच्चों के साथ इस तरह का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. कई शोध यह कहते हैं कि जिस बच्चे का पालन समलैंगिक अभिभावक करेंगे, उसका मानसिक और भावनात्मक विकास प्रभावित हो सकता है.
मुस्लिम संगठनों जमीयत उलेमा ए हिन्द और तेलंगाना मरकजी शिया उलेमा काउंसिल के अलावा कई हिंदू और ईसाई संस्थाओं ने भी समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध किया है. केंद्र सरकार ने भी कहा है कि भारत में प्रचलित हर धर्म ऐसी शादी को गलत मानता है.
ये भी पढ़ें: समलैंगिक जोड़े सुप्रीम कोर्ट से क्यों कर रहे हैं शादी को जायज ठहराने की मांग?