दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को सोमवार को निर्देश दिया कि वह शिक्षा प्राप्त करने विदेश जाने वाले छात्रों और प्रवासी भारतीयों को प्राथमिकता के आधार पर कोविड-19 टीका लगाए जाने संबंधी अभिवेदन पर ‘‘जल्द से जल्द’’ फैसला करे. मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने कहा कि गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘प्रवासी लीगल सेल’ के 20 मई के अभिवेदन पर इस मामले संबंधी कानून, नियमों, विनियमों और सरकारी नीति के अनुसार फैसला किया जाए. इसी निर्देश के साथ अदालत ने जनहित याचिका का निपटारा कर दिया.


अभिवेदन का जवाब न मिलने पर एनजीओ ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया


बता दें कि  एनजीओ को अभिवेदन का जवाब नहीं मिला था, इसलिए उसने अदालत का दरवाजा खटखटाया था. याचिका में विदेश जाने के इच्छुक लोगों के टीकाकरण प्रमाणपत्र पर पासपोर्ट संख्या भी लिखे जाने का अनुरोध किया गया था. इस संस्था का प्रतिनिधित्व वकील जोस अब्राहम कर रहे थे. वकीलों एम पी श्रीविग्नेश, रॉबिन राजू और दीपा जोसेफ के जरिए दायर गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) 'प्रवासी लीगल सेल' की याचिका में दावा किया गया था कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारत आए प्रवासी भारतीयों को वापस अपने देश लौटना होगा, जहां वह निवास करते हैं या काम करते हैं. कई देशों में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में कमी के बाद अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के संचालन को अनुमति दी गई है.


कुछ देश वैक्सीनेटेड लोगों को ही प्रवेश की अनुमति दे रहे हैं


याचिका में कहा गया था कि अन्य देश केवल ऐसे लोगों को प्रवेश की अनुमति दे रहे हैं, जिनका टीकाकरण हो चुका है. ऐसी स्थिति में यदि छात्रों और प्रवासी भारतीयों को टीकाकरण में प्राथमिकता नहीं दी गई तो इसका उनके जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा.


याचिका में यह भी दावा किया गया था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की आपात इस्तेमाल सूची में अभी तक कोवैक्सीन को शामिल नहीं किया गया है, इसलिए इस टीके की दोनों खुराक ले चुके लोगों को विदेश यात्रा की अनुमति नहीं है. उसने कहा था कि केंद्र को इस संबंध में उचित कदम उठाना चाहिए.


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