देश में तेलों के दामों में तेजी से इजाफा हो रहा है. सरसों तेल की कीमत में भी लगातार वृद्धि हो रही है. इसी बीच केंद्र सरकार ने लोगों को मुफ्त बीज पैकेट बांटने की ओर कदम बढ़ाया है. इस कदम से परिचित अधिकारियों का कहना है कि तिलहन की उच्च आयात लागत के कारण खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों से चिंतित भारत के नीति निर्माताओं ने मुफ्त बीज पैकेट वितरित करने का फैसला लिया है. इसके लिए हरित क्रांति-युग की रणनीति का इस्तेमल किया जाएगा. उन्हें उम्मीद है कि इससे तिलहन का घरेलू उत्पादन बढ़ेगा और आयात पर निर्भरता कम होगी. हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि 1960 के दशक के विंटेज का विचार आज मनमाफिक परिणाम नहीं दे सकता है.


नरेंद्र सिंह तोमर के नेतृत्व में केंद्रीय कृषि मंत्रालय देश के लगभग एक तिहाई जिलों में अगले महीने से शुरू होने वाले खरीफ (गर्मी की फसलों) के मौसम के लिए किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले तिलहन के हजारों मुफ्त पैकेट दे रहा है. अप्रैल में राज्य सरकारों के साथ इस योजना पर चर्चा हुई थी. एक अधिकारी ने बताया, "सरकार किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए लगभग 8 लाख सोयाबीन बीज मिनी-किट और 74 हजार मूंगफली मिनी-किट दे रही है." दालों की तरह भारत अपनी खाद्य तेल की मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है. औसतन खाद्य तेलों की सालाना मांग लगभग 24 मिलियन टन है, जबकि घरेलू उत्पादन 8 से 11 मिलियन टन के बीच होता है. 60 प्रतिशत तक की मांग आयात के माध्यम से पूरी की जाती है. पिछले दो महीनों में खाद्य तेलों की डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ी है.


तेल की कीमतों में हुई 60 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी


उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के एक साल पहले के आंकड़ों से पता चलता है कि तेल की कीमतों में 60 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है. एक लीटर सरसों के तेल की औसत कीमत मई में बढ़कर 170 रुपये हो गई, जो पिछले साल इसी अवधि में 120 रुपये थी. इसी तरह मूंगफली तेल, सोया तेल, पाम तेल और सूरजमुखी तेल की कीमतें एक दशक के उच्चतम स्तर पर हैं. सरकार की योजना 6.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को तिलहन की खेती के तहत लाने की है. इससे 12 मिलियन क्विंटल तिलहन का उत्पादन होगा, जिसके परिणामस्वरूप 2.43 मिलियन क्विंटल खाद्य तेल का उत्पादन हो सकेगा.