केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा पेश करते हुए बताया कि कोविड 19 की वैक्सीन कोविशिल्ड और कोवाक्सिन की रिसर्च में कोई सरकारी सहायता या अनुदान नहीं दिया गया है. साथ ही बताया कि भारत में पहले से बनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक ने वैक्सीन को स्वदेशी रूप से विकसित किया है. केंद्र सरकार ने कोविड 19 के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रमुख दवाओं के अनिवार्य लाइसेंस के खिलाफ भी तर्क दिया है.


शीर्ष अदालत में अपने हलफनामे को प्रस्तुत करते हुए केंद्र ने आगे खुलासा किया कि कोवैक्सीन की बिक्री आईसीएमआर के लिए 5 फीसदी रॉयल्टी भुगतान करेगी. जानकारी के मुताबिक सोमवार को धनंजय वाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रवींद्र भट की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए केंद्र का हलफनामा आया था, लेकिन कोविड प्रतिबंध के कारण वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान हुई तकनीकी खराबी के चलते सुनवाई को टाल दिया गया. वहीं माना जा रहा है कि अपने विस्तृत हलफनामे में केंद्र ने नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप करने से बचने के लिए शीर्ष अदालत को फंसाने की कोशिश की और टीकों के मूल्य निर्धारण और वितरण के बारे में अपनी नीतियों का बचाव किया है.


केंद्र से SC ने पूछा सवाल


जानकारी के मुताबिक अदालत ने अपने 2 मई के आदेश में सरकार से ये जानने की कोशिश की कि क्या वैक्सीन के अनुसंधान, विकास और निर्माण के लिए कोई धन या अनुदान प्रदान किया गया था, जिस पर सरकार ने जवाब के रूप में हलफनामा पेश किया है.


वैक्सीन अनुसंधान के लिए नहीं दिया गया अनुदान


केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि कोई भी सरकारी सहायता या अनुदान कोवाक्सिन या कोविशिल्ड के अनुसंधान के लिए नहीं दिया गया है. हालांकि उन्हें क्लिनिकल परीक्षण करने के लिए कुछ वित्तीय सहायता दी गई थी. साथ ही आईसीएमआर और भारत बायोटेक के बीच समझौता ज्ञापन का विवरण पेश किया, जिसमें शुद्ध बिक्री और 5 फीसदी रॉयल्टी क्लॉज शामिल है.


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