दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में संसद भवन को मंदिर की संज्ञा दी जाती है. यही वह जगह है जहां से देश का भविष्य आकार लेता है. मौजूदा संसद भवन 100 साल पुराना है. इसके बनने के बाद से ही इसका कई बार जरूरत के मुताबिक मरम्मत और पुनर्निर्माण किया गया. मसला ये है की पुरानी सिटिंग संरचना में अब सिटिंग क्षमता बढ़ाना मुमकिन नहीं और न ही ये संभव है कि तकनीकी और बुनियादी ढांचे में सुधार किया जा सके.
ऐसे में नया संसद भवन 21वीं सदी के भारत की जरूरत है और इसे उसी अंदाज में तैयार किया जा रहा है. इसे आने वाले वक्त की जरूरतों के मुताबिक बनाया जा रहा है. इसमें पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखा गया है तो आधुनिकता के साथ भारत की विरासतों का संगम भी है.
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में लुटियंस दिल्ली में नए संसद भवन के साथ ही केंद्र सरकार के अन्य कार्यालयों का निर्माण किया जा रहा है. माना जा रहा है कि ये नया संसद भवन भव्यता के साथ ही औपनिवेशिक वक्त के स्मारकों को टक्कर देने वाली स्थापत्य कला का शानदार उदाहरण बनकर उभरेगा.
(ब्रितानी वास्तुकार एडविन लुटियंस और दक्षिण अफ्रीका की वास्तुकला में माहिर ब्रितानी वास्तुकार हर्बर्ट बेकर)
91 साल बाद नई नजर आएगी लुटियंस दिल्ली
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को जानने से पहले सेंट्रल विस्टा को जानना जरूरी है. दरअसल दिल्ली में 3.2 किलोमीटर दूर तक फैले सेंट्रल विस्टा इलाके में राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, उत्तर और दक्षिण ब्लॉक, इंडिया गेट, राष्ट्रीय अभिलेखागार जैसी महत्वपूर्ण इमारते हैं. इन सभी प्रतिष्ठित इमारतों का निर्माण 1931 से पहले किया गया था.
अब भारत सरकार सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत इस इलाके का कायाकल्प कर इसे नए कलेवर दे रही है. इस परियोजना का उद्देश्य मौजूदा संसद भवन के पास में एक त्रिकोणीय आकार का संसद भवन बनाना है. इस परियोजना में मौजूदा संसद भवन के नजदीक ही बनाया जा रहा ये नया संसद भवन सबसे अहम है.
यहां सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास की जरूरत महसूस होने की पृष्ठभूमि को जानना भी जरूरी है. दरअसल 12 दिसबंर 1911 में किंग जॉर्ज पांचवें ने दिल्ली दरबार की एक भव्य सभा में भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने का ऐलान किया था. ये मौका किंग जार्ज पांचवे के राज्याभिषेक का था.
(किंग जॉर्ज पंचम)
इस नई राजधानी के निर्माण का काम यूरोपीय अभिजात्यवाद को बढ़ावा देने वाले ब्रितानी वास्तुकार एडविन लुटियंस को दिया गया. उनके साथ इस काम में दक्षिण अफ्रीका की वास्तुकला में माहिर एक मशहूर ब्रितानी वास्तुकार हर्बर्ट बेकर भी थे. राष्ट्रपति भवन को लुटियंस ने डिजाइन किया था. सचिवालय जिसमें उत्तर और दक्षिण ब्लॉक दोनों शामिल हैं उसे बेकर ने डिजाइन किया था.
इन दोनों ने मिलकर ही मौजूदा संसद भवन की इमारत को डिजाइन किया और तब इसे काउंसिल हाउस कहा गया. संसद की इमारत के आकार के बारे में विचार-विमर्श के बाद दोनों वास्तुकारों ने कोलोसियम डिजाइन का जैसा दिखने की वजह से काउंसिल हाउस के लिए एक गोलाकार आकार को आखिरी रूप दिया.
वहीं ये भी माना जाता है कि मध्य प्रदेश का चौसठ योगिनी मंदिर ने मौजूदा भारतीय संसद के डिजाइन को प्रेरित किया था. हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं हैं. अब नया संसद भवन सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत एक नया रंग-रूप लेकर एक नया इतिहास रचने के लिए तैयार हो रहा है.
प्रोजेक्ट की हकीकत और फसाने
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की निगरानी में चल रही है. इस परियोजना की अनुमानित लागत 20,000 करोड़ रुपये आंकी गई है. इसके तहत ही सभी नियोजित विकास और पुनर्विकास के काम किए जाने हैं. इस परियोजना का मकसद सेंट्रल विस्टा की सुंदरता बढ़ाकर उसे विश्व स्तरीय पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाने का भी है.
इसके डिजाइन के लिए सीपीडब्ल्यूडी ने 18 अक्टूबर 2019 को मेसर्स एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्रा. लिमिटेड को कंसल्टेंटी वर्क दिया था. अब ये फर्म सेंट्रल विस्टा क्षेत्र के मास्टर प्लान के विकास और नई जरूरतों के मुताबिक भवनों के डिजाइन पर काम कर रही है.
इसमें प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति के नए आवास सहित एक नए त्रिकोणीय संसद भवन, एक कॉमन केंद्रीय सचिवालय और राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक के 3 किलोमीटर लंबे राजपथ को नए रूप दिया जाना शामिल है. इसमें नॉर्थ और साउथ ब्लॉक को संग्रहालयों में बदलना और सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का विकास भी किया जाना है.
इस प्रोजेक्ट के तहत अलग-अलग मंत्रालयों के कार्यालयों को समायोजित करने के लिए कॉमन केंद्रीय सचिवालय के लिए 87 मंजिला भवन बनाए जाएगा. यह परियोजना संसद, मंत्रालयों और विभागों की वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ बेहतर सार्वजनिक सुविधाएं देने के लिए लाई गई है.
केंद्र सरकार के कार्यालय अलग-अलग जगहों पर फैले हुए हैं. इससे कार्यालयों का अंतर-विभागीय समन्वय प्रभावित होता हैं. केंद्र सरकार के कार्यालय अलग-अलग जगहों पर होने से अनावश्यक यात्रा से भीड़भाड़ और प्रदूषण होता है. इसके बनने से लोगों को भी सुविधा होगी.
(भारत की मौजूदा संसद भवन के अंदर का नजारा)
प्रोजेक्ट पर विरोध भी
सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना पर सरकार को आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा है. इस प्रोजेक्ट के आलोचकों ने सुप्रीम कोर्ट में इस प्रोजेक्ट को रद्द करने की अपील की थी. आलोचकों का कहना था कि इस प्रोजेक्ट पर खर्च की जा रही रकम को लोगों के कल्याण के लिए खर्च किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2021 में सरकार को इस नवीनीकरण प्रोजेक्ट पर काम करने की मंजूरी दी थी. इसमें नए संसद भवन के निर्माण को भी मंजूरी दी गई. गौरतलब है कि दिल्ली उच्च न्यायालय में भी 31 मई 2021 को सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के चल रहे निर्माण कार्यों के खिलाफ दायर एक याचिका को खारिज कर दिया था. कोर्ट ने इस जनहित याचिका को निर्माण कार्य को रोकने का अवैध मकसद करार दिया था.
इसे प्रोजेक्ट पर विपक्ष सरकार पर हमलावार रहा है. विपक्ष का आरोप था कि कोविड-19 महामारी के दौरान परियोजना पर 20,000 करोड़ रुपये खर्च किया जा रहा. इसके जवाब में केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने कहा कि महामारी के आने से कई महीने पहले 2019 में ही पुनर्विकास योजना बना ली गई थी. सरकार ने ये भी साफ किया कि यह एक साल दर साल चलने वाली बुनियादी ढांचा निवेश परियोजना है, जिसमें आने वाले 6 वर्षों में कई परियोजनाएं पर काम किया जाना शामिल हैं.
सरकार ने ये भी कहा कि वित्त वर्ष 2021-22 में कोविड-19 वेक्सिनेशन का बजट 35 हजार करोड़ रुपये था. इसे एकमुश्त अनुदान के तौर पर दिया गया. ये सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना की लागत से काफी अधिक है. इस तरह से देखा जाए तो वेक्सिनेशन की ये एकमुश्त रकम सेंट्रल विस्टा परियोजना के कुल बजट से 175 फीसदी अधिक है, जिसके 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है.
(कुछ ऐसा होगा नई संसद का नया रूप)
इस प्रोजेक्ट को पेड़ काटने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए भी जवाबदेह ठहराया गया. सरकार ने प्रोजेक्ट के पर्यावरणीय क्षति में योगदान को लेकर साफ किया है कि पर्यावरणीय स्थिरता सेंट्रल विस्टा परियोजना का आधार है. सरकार का कहना है कि इस प्रोजेक्ट से हरित आवरण में बढ़ोतरी होगी.
पर्यावरण के संरक्षण के लिए एनटीपीसी बदरपुर में विकसित किए जा रहे इको-पार्क में सक्षम अधिकारियों से मंजूरी के बाद पेड़ लगाए जाएंगे. इसके साथ ही सेंट्रल विस्टा साइट पर वायु उत्सर्जन, शोर, गंदे पानी की निकासी, मिट्टी के कटाव के साथ-साथ निर्माण कचरे को कम करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं.
गौरतलब है कि 4 अप्रैल 2022 को सेंट्रल विस्टा परियोजना में पेड़ों का उखाड़ने पर राज्यसभा में आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय राज्य मंत्री कौशल किशोर ने बताया कि सेंट्रल विस्टा के तहत विभिन्न परियोजनाओं में कोई पेड़ नहीं काटा गया है. विकास और पुनर्विकास मास्टर प्लान के तहत अन्य जगहों पर अब तक 1051 पौधे रोपे जा चुके हैं.
मंत्रालय ने यह भी वादा किया कि कोई भी विरासत भवन - इंडिया गेट, संसद, उत्तर और दक्षिण ब्लॉक, राष्ट्रीय अभिलेखागार या किसी भी अन्य निर्माण को ध्वस्त नहीं किया जाएगा. ये भी सच है कि ये विरासत भवन वास्तुकला की भव्यता को बरकरार रखते हैं, लेकिन ये बेहद पुराने और कमजोर हो गए हैं.
इन्हें अपग्रेडेशन की जरूरत है. इस वजह से ऐसे विरासत भवन जो सेंट्रल विस्टा विकास और पुनर्विकास परियोजना के दायरे में आते हैं, उन्हें विरासतों के संरक्षण मानकों के मुताबिक उचित रूप से रेट्रोफिट और भविष्य के इस्तेमाल के लिए नवीनीकृत किया जाएगा.
( त्रिभुज के आकार का होगा नया संसद भवन)
सेंट्रल विस्टा अब तक
केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के मुताबिक सितंबर साल 2021 तक नए संसद भवन के दो नए प्रोजेक्ट्स के लिए 862 करोड़ और 477 करोड़ रुपये की लागत के सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के पुनर्विकास का काम सौंपा गया है और ये काम चल रहा है.
2021 मार्च तक इन दोनों प्रोजेक्ट पर 195 करोड़ रुपया खर्च किया गया. इस प्रोजेक्ट के लिए 2021-22 में 790 करोड़ के बजट रखा गया. कहा जा रहा है कि सेंट्रल विस्टा विकास और पुनर्विकास मास्टर प्लान के हिस्से वाले अन्य प्रोजेक्ट्स की वास्तविक लागत हर एक की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के बाद पता चलेगी.
लोकसभा में सेंट्रल विस्टा री-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट पर दिसंबर 2021 को दिए गए जवाब में कहा गया कि सेंट्रल विस्टा डेवलपमेंट और री-डेवलपमेंट मास्टर प्लान के तहत केवल 4 परियोजनाएं हैं. इनमें नए संसद भवन, सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का पुनर्विकास, कॉमन सेंट्रल सेक्रेटेरिएट के तहत बिल्डिंग 1, 2 ,3 और उपराष्ट्रपति आवास का निर्माण किया जा रहा है.
नए संसद भवन के लिए अनुमानित लागत 971 करोड़ रुपये रखी गई है, इसमें से 340.58 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. इस पूरा करने के लिए अक्टूबर 2022 तक का वक्त तय किया गया था. इस जवाब के मुताबिक 35 फीसदी काम पूरा कर लिया गया है.
उधर सेंट्रल विस्टा री-डेवलपमेंट एवेन्यू के लिए 608 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत तय की गई है. इसमें से 190.76 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. इसे दिसंबर 2021 में पूरा किए जाने का लक्ष्य रखा गया. लोकसभा में 2 दिसंबर 2021 दी गई जानकारी के मुताबिक तब इसका 60 फीसदी काम पूरा हो चुका था.
(प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का उद्घाटन 8 सितंबर 2022 को किया था)
कॉमन केंद्रीय सचिवालय भवन -1, 2 और 3 के लिए 3,690 रुपये करोड़ की अनुमानित लागत रखी गई है. इसमें से 7.85 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. इस काम को पूरा करने के लिए तय वक्त नवंबर 2023 है. इसके लिए संसाधनों का मोबिलाइजेशन और साइट पर तैयारियां चल रही हैं.
उधर उपराष्ट्रपति आवास निर्माण की अनुमानित लागत 208.48 करोड़ रुपये है, जिसमें से 15 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं. इसे पूरा करने का अनुमानित वक्त नवंबर 2022 रखा गया है. उपराष्ट्रपति आवास निर्माण के लिए भी तैयारियां प्रगति पर हैं. चालू वित्त वर्ष में 2021-22 में सेंट्रल विस्टा के विकास और पुनर्विकास के कामों के लिए 1,289 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
जानकारी के मुताबिक सेंट्रल विस्टा में चल रहे कामों ने लोगों को सीधे तौर पर रोजगार दिया है. इसके तहत 10,000 से अधिक कुशल, अर्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों साइट और ऑफ साइट पर 24.12 लाख से अधिक काम के दिन रोजगार के लिए दिए हैं.
माना जा रहा है कि सेंट्रल विस्टा के विकास और पुनर्विकास के काम देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देंगे और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने में मदद करेंगे. सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को पूरा करने में वास्तुकारों की भी अहम भूमिका है.
(राष्ट्रीय पक्षी मोर की थीम पर लोकसभा चैंबर बनाया जा रहा है)
भव्य प्रोजेक्ट्स के वास्तुकार
बिमल ने 1984 में सीईपीटी से आर्किटेक्चर में डिप्लोमा किया. उन्होंने 1988 में आर्किटेक्चर और सिटी प्लानिंग में मास्टर डिग्री और 1995 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले से सिटी एंड रीजनल प्लानिंग में पीएचडी की. उन्होंने मार्क्सवादी अर्बन भूगोलवेत्ता रिचर्ड वॉकर के तहत डॉक्टरेट की ये थीसिस पूरी की.
मौजूदा वक्त में पटेल सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी अहमदाबाद के विश्वविद्यालय के अध्यक्ष हैं और एचसीपी डिजाइन प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड का नेतृत्व करते हैं, जो एक आर्किटेक्चर, प्लानिंग और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट फर्म है.
यही पटेल मोदी सरकार की भव्य परियोजनाओं के वास्तुकार माने जाते हैं और सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी भी इन्हीं के कंधों पर है. पटेल "मोदी के वास्तुकार" वाले के टैग से भी कभी विचलित नहीं हुए. वास्तुकार, डिजाइनर और शहरी योजनाकार के रूप में बिमल पटेल दो दशकों से अधिक समय से पीएम मोदी के साथ जुड़े हुए हैं.
इसमें दो राय नहीं कि दिसंबर 2020 में शुरू हुई सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना एक मील का पत्थर साबित हुई है. यही वजह रही कि पीएम नरेंद्र मोदी का सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का उद्घाटन करना बिमल पटेल की जीत थी, क्योंकि उनके आलोचकों ने भी उनके काम का लोहा माना.
जब एक साल से अधिक वक्त के बाद सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का उद्घाटन 8 सितंबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. तो साल 2019 में पद्म श्री से सम्मानित बिमल पटेल के नाम के साथ एक और उपलब्धि जुड़ गई.
(मोदी सरकार की भव्य परियोजनाओं के वास्तुकार बिमल पटेल)
इस दौरान पीएम ने राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक 2 किलोमीटर का 'कर्तव्य पथ' और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक प्रतिमा का अनावरण किया था. ये एवेन्यू इतना भव्य है कि बिमल पटेल के काम की तारीफ उनके विरोधी भी करने को मजबूर हो गए.
साल 2024 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है और ये सब कुछ वास्तुकार डॉ. पटेल की अगुवाई में चल रहा है. 61 साल के पटेल की अहमदाबाद स्थित कंपनी एचसीपी डिजाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड के पास अब पीछे मुड़कर देखने का भी वक्त नहीं है.
अब वह इसकी अन्य परियोजना के अगले चरणों पर काम कर रहे हैं. इनमें नया संसद भवन और दिल्ली में केंद्रीय सचिवालय भवन जो बदले हुए कर्तव्य पथ के दोनों ओर बन रहे हैं. सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर पटेल द संडे एक्सप्रेस से कहते हैं, "मैं सेंट्रल विस्टा पर डिजाइन की कोशिशों का चेहरा भले ही हूं, लेकिन एक बड़ी टीम है जो एक साथ मिलकर इस तरह की परियोजना को पूरा करती है."
इसके अलावा पटेल प्रधानमंत्री की अदम्य इच्छा, सीपीडब्ल्यूडी (तकनीकी रूप से उनके ग्राहक), आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय और शापूरजी पालोनजी समूह को धन्यवाद देते हैं. पटेल कहते हैं कि जब से उनकी फर्म ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के लिए डिजाइन प्रतियोगिता जीती, तब से पटेल विरोधों का सामना कर रहे हैं.
(दिल्ली में 3.2 किलोमीटर तक फैला है सेंट्रल विस्टा)
दरअसल इस परियोजना को मोदी के घमंडी प्रोजेक्ट, अतीत को मिटाने के उनके तरीके और दिल्ली पर अपनी व्यक्तिगत मुहर लगाने उनकी निरंकुश शक्ति प्रदर्शन की तरह देखा जा रहा है. पटेल के उनके साथ काम करने वालों का कहना है कि पटेल की सबसे बड़ी ताकत विरोधियों के साथ जुड़ना और आम सहमति के लिए कोशिश करना है.
जब केंद्र ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के विरोध को "खान मार्केट गिरोह" से प्रभावित होने के तौर पर खारिज कर दिया, तब पटेल ने दिल्ली में वास्तुकारों, इतिहासकारों, सार्वजनिक बुद्धिजीवियों, मीडिया, छात्रों के साथ चुपचाप बैठकें कीं और बाद में साइट पर कम से कम 50 अलग-अलग लोगों के लिए दौरे आयोजित किए. पटेल ने यह ऐलान भी किया कि एक भी सवाल ऐसा नहीं होगा जिसे वह परियोजना पर नहीं लेंगे.
वह कितने लोगों को मनाने में कामयाब रहे यह साफ नहीं है, लेकिन उन्होंने अपने सबसे मुखर आलोचकों में से एक प्रकृतिवादी-लेखक प्रदीप किशन, जो सर्वोच्च न्यायालय में परियोजना के खिलाफ याचिकाकर्ताओं में शामिल थे, को उन पेड़ों पर सलाहकार की भूमिका निभाने के लिए राजी किया, जो सेंट्रल विस्टा के लॉन में लगाए जाने चाहिए.
ये ध्यान देने वाले बात है कि हाल ही में किसी अन्य परियोजना पर इस तरह की बहस नहीं हुई है. आगा खान अकादमी हैदराबाद, उद्यमिता विकास संस्थान, गुजरात उच्च न्यायालय, आईआईएम अहमदाबाद के नए परिसर और साबरमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट जैसे प्रोजेक्ट को अमलीजामा पहना चुके पटेल के लिए भी अब तक की सबसे बड़ी चुनौती नए संसद भवन का निर्माण ही है.
(नए संसद भवन में अल्ट्रा मॉर्डन ऑफिस स्पेस होगा तो बड़े कमेटी रूम उन्नत ऑडियो-वीडियो सिस्टम से लैस होंगे )
नए संसद भवन की जरूरत
भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली की शक्ति हमारी संसद में दिखती है. मौजूदा संसद भवन औपनिवेशिक शासन की हार का गवाह बना तो कई ऐतिहासिक घटनाओं को इसने अपने सामने घटते देखा. मौजूदा इमारत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद स्वतंत्र भारत की पहली संसद के तौर पर काम किया और भारत के संविधान को अपनाने का साक्षी बना. इस वजह से संसद भवन की समृद्ध विरासत का संरक्षण और कायाकल्प करना राष्ट्रीय महत्व का विषय है.
भारत की लोकतांत्रिक भावना का प्रतीक संसद भवन सेंट्रल विस्टा के केंद्र में है. देश की वर्तमान संसद औपनिवेशिक युग का भवन है. इसका निर्माण 1921 में शुरू किया गया था और 1927 में ये तैयार हुआ. यह लगभग 100 साल पुराना है और एक हेरिटेज ग्रेड- I भवन है. इसमें अधिक जगह की मांग को पूरा करने के लिए 1956 में दो मंजिलों को जोड़ा गया.
साल 2006 में भारत की 2,500 वर्षों की समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत को दिखाने के लिए संसद संग्रहालय को जोड़ा गया था. बीते कुछ वर्षों में संसदीय गतिविधियों और उसमें काम करने वाले लोगों और आगंतुकों की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हुई है. भवन के मूल डिजाइन का कोई रिकॉर्ड या दस्तावेज नहीं है. इसलिए, नए निर्माण और संशोधन एक खास तरीके से किए गए.
( निर्माणाधीन नया संसद भवन अक्टूबर 2022 में )
उदाहरण के लिए, भवन के बाहरी गोलाकार भाग के ऊपर 1956 में बनाई दो नई मंजिलों ने सेंट्रल हॉल के गुंबद को छुपा दिया और मूल भवन के आगे के हिस्से को बदल दिया. इसके अलावा, जाली खिड़कियों के आवरण ने संसद के दो सदनों के हॉल में प्राकृतिक प्रकाश को कम कर दिया है.
इसलिए इस भवन के बेहद अधिक इस्तेमाल किए जाने के निशान इस पर अब नजर आने लगे हैं. जगह, सुविधाओं और प्रौद्योगिकी के हिसाब से ये भवन वर्तमान जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है.
ये बात भी सोचने वाली है कि मौजूदा संसद भवन को एक पूर्ण लोकतंत्र के लिए एक द्विसदनीय विधायिका के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया था. 1971 की जनगणना के आधार पर किए गए परिसीमन के आधार पर लोकसभा सीटों की संख्या 545 पर बनी हुई है. 2026 के बाद इसमें काफी बढ़ोतरी होने की संभावना है, क्योंकि सीटों की कुल संख्या पर रोक केवल 2026 तक है.
बैठने की व्यवस्था तंग और बोझिल है, दूसरी पंक्ति के आगे कोई डेस्क नहीं है. सेंट्रल हॉल में केवल 440 व्यक्तियों के बैठने की क्षमता है. जब संयुक्त सत्र होते हैं तो सीमित सीटों की समस्या बढ़ जाती है. आवाजाही के लिए सीमित जगह होने के कारण यह एक बड़ा सुरक्षा जोखिम भी है. इस वजह से भी नए संसद भवन की पुरजोर दरकार है.
(निर्माणाधीन नया संसद भवन)
कैसा होगा नया लोकतंत्र का मंदिर
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के नए भवन का शिलान्यास 10 दिसंबर 2020 को किया था. इसका निर्माण 21 महीने यानी की आजादी की 75 वीं सालगिरह तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था. नए संसद भवन को बनाने में कुल 971 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. नया संसद भवन 65000 वर्गमीटर के विशाल इलाके में मौजूदा संसद भवन के पास बनाया जा रहा है. कहा जा रहा है कि दोनों भवन साथ मिलकर काम करेंगे. इससे संसद का कुशलता और सुचारू तौर पर संचालन हो पाएगा.
सबसे खास नए संसद भवन का त्रिभुजाकार डिजाइन है, जिसे बेहतर स्पेस मैनेजमेंट के लिए भूकंपरोधी सिस्टम के मुताबिक जेड और जेड प्लस लेवल की सुरक्षा पुख्ता करने वाला बनाया जा रहा है. संसद के नए भवन का मुख्य ढांचा तैयार हो चुका है और अब आंतरिक स्तर पर फिनिशिंग के काम को पूरा किया जा रहा है.
टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड नए संसद भवन का निर्माण कर रही है. यह इमारत 4 मंजिला होगी. नए संसद भवन में जाने के 6 रास्ते होंगे. एक एंट्रेंस पीएम और प्रेसिडेंट के लिए होगा. एक लोकसभा के स्पीकर, एक राज्य सभा के चेयरपर्सन सांसदों के प्रवेश के लिए 1 एंट्रेंस और 2 पब्लिक एंट्रेंस होंगी.
(पूरी तरह से दिव्यांग फ्रैंडली होगा नया संसद भवन)
ये होंगी सुविधाएं
सरकार का कहना है कि संसद का शीतकालीन सत्र नरेन्द्र मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत बन रहे नए संसद भवन में होगा. नया संसद भवन बजट सत्र में जनवरी 2023 में पूरी कार्यक्षमता के साथ काम करेगा. तब यहां संसद के कामों में कागज नदारद होंगे. पूरा काम आधुनिक उपकरणों के जरिए किया जाएगा.
एक संसदीय अधिकारी के मुताबिक अगली बार जब प्रश्नकाल में कोई मंत्री किसी सदस्य के कठिन सवाल का सामना करेगा तो उसके बगल में पर्ची देने वाला सहायक नहीं होगा, क्योंकि सदन की कार्यवाही के दौरान मंत्रियों और सचिवों के बीच बातचीत के लिए नेशनल ई-विधान एप्लिकेशन (NeVA) का इस्तेमाल होगा.
बजट सत्र के दौरान कागजातों की जगह हर सदस्य अपने डेस्क पर एक टर्मिनल के साथ बैठेगा. इसमें हाउस कैंटीन से अपना खाना भी मंगवाने तक की सुविधा होगी. मंत्रियों के सचिव सदस्यों के सवालों का जवाब देने के लिए अपने ऑफिस से भी लिंक्ड पैड्स पर नोट लिख सकते हैं. यहां तक कि लंबे वक्त तक कैमरे के सामने आयोजित होने वाली समिति की बैठकें भी सार्वजनिक हो पाएंगी. अब संसद में सभी सदस्यों को सक्रिय रखने के लिए सिस्टम में ई-अटेंडेंस से लैस कमरे होंगे.
( नए भारत की लोकतांत्रिक विरासत को समेटे हुए कॉस्टीट्यूशन हॉल होगा )
150 साल तक रहेगा अभेद
नए संसद भवन में इको फ्रेंडली ग्रीन कंस्ट्रक्शन के जरिए 30 फीसदी बिजली खपत को कम किया जा सकेगा. इसका निर्माण 150 साल तक की जरूरतों को पूरा करने के हिसाब से किया जा रहा है. पुराने संसद भवन की तुलना में इसमें कुल सिटिंग क्षमता 150 फीसदी से भी अधिक होगी. नए संसद भवन में कुल 120 आफिस होंगे. जिसमें कमिटी रूम, मिनिस्ट्री आफ पार्लियामेंट्री अफेयर्स के आफिस, लोक सभा सेक्रेट्रिएट, राज्य सभा सेक्रेट्रिएट, पीएम आफिस आदि होंगे.
इसमें सेंट्रल हाल नहीं होगा. लोकसभा चैंबर 3015 वर्ग मीटर एरिया में बना होगा. इसमें 543 सीट की जगह 888 सीट होगी. इसे राष्ट्रीय पक्षी मयूर की थीम पर बनाया जा रहा है. कमल के फूल की थीम पर राज्य सभा कुल 3,220 वर्ग मीटर एरिया में बनेगा. इसमें 245 की जगह 384 सीट होंगी. नए भवन के आफिसों में पेपरलेस काम किया जाएगा. इसमें सांसदों के लिए लाइब्रेरी, लॉन्ज, डाइनिंग एरिया भी होगा. इसमें पार्किंग भी आधुनिक तकनीक वाली होगी.
संयुक्त संसद अधिवेशन में 1272 सांसदों की सिटिंग क्षमता होगी. लोकसभा और राज्यसभा के हॉल हाई क्वॉलिटी ऑडियो- वीडियो से लैस होंगे. इसके साथ ही हर एक डेस्क इलेक्ट्रोनिस गैजेट्स युक्त होंगी. इतना ही नहीं सभी सांसदों के ऑफिस डिजिटल इंटरफेस और आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस होंगे.
(नए संसद भवन में मार्डन और एडवांस टेक्नोलॉजी से युक्त होंगे पुस्तकालय और ऑफिस)
नई बिल्डिंग में एक बड़ा कॉस्टीट्यूशन हॉल होगा, जिसमें भारत की लोकतांत्रिक विरासत की झलक दिखाई देगी. भवन में फर्नीचर्स पर स्मार्ट डिस्प्ले होगा. वोटिंग में आसानी के लिए बायोमीट्रिक सिस्टम होगा. नए संसद भवन में ट्रांसलेशन सिस्टम खास आकर्षण होगा, जिससे हर भाषा की स्पीच को हर सांसद समझ सके. इस इमारत में भारतीय संविधान से मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में बोले जाने वाले हर शब्द के साथ -साथ ही उनका अर्थ बताने वाली इंटरप्रिटेशन सर्विस होगी.
पुस्तकालय, समिति कक्ष, भोजन हॉल,पर्याप्त पार्किंग स्थल, दिव्यांग फ्रैंडली होना नए संसद भवन की अन्य खूबियों में शामिल है. लोकतंत्र को नया आयाम देने वाला ये भवन क्षेत्रीय कला कौशल और कारीगरी को अपने हर एक हिस्से में संजोएं होगा. औपनिवेशिक काल के पुराने शहीद स्मारक के सामने नेशनल वॉर मेमोरियल बनाया गया है. वैसे ही पुराने संसद भवन के सामने बनाया जा रहा है नया संसद भवन नए और आत्मनिर्भर भारत की कहानी बयां करता नजर आएगा.
दुनिया में शायद ही कहीं भी किसी बड़ी संसद ने एक ही बार में इस पैमाने पर खुद को नया रूप दिया हो जितना की भारत की संसद के नए भवन में हुआ है. नए संसद भवन के निर्माण ने लोगों को 20,09,090 दिनों का रोजगार दिया है. अब तक इसमें 25620 मीट्रिक टन इस्पात, 63,306 मीट्रिक टन सीमेंट और 9,372 घन मीटर फ्लाई ऐश का इस्तेमाल किया जा चुका है.