श्रीनगर: 15 अगस्त से पहले जम्मू-कश्मीर में 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती के आदेश के बाद खलबली मच गई है. कयास लगाए जा रहे हैं कि 35 ए को हटाने की उल्टी गिनती शुरू हो गई है.  लोकसभा 2019 चुनाव के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 35 ए और 370 को खत्म करने की प्रतिबद्धता जाहिर की थी.


दरअसल जम्मू-कश्मीर में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार ने कल सीएपीएफ की अतिरिक्त 100 कंपनियों को तैनात करने का आदेश दिया था. गृह मंत्रालय ने 25 जुलाई को केंद्रीय सशस्त्र बलों की अतिरिक्त 100 कंपनियों की तैनाती का आदेश जारी किया था. इन केंद्रीय बलों में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) शामिल हैं.


राज्य के सभी क्षेत्रीय दलों ने जताया विरोध


राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मोदी सरकार से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 और 35ए को चुनौती देने वाली याचिकाएं लंबित हैं. राज्य की नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, जम्मू-कश्मी पीपुल्स मूवमेंट और अन्य क्षेत्रीय दलों ने नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां), पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), जम्मू और कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (जे एंड केपीएम) और राज्य के सभी क्षेत्रीय दलों ने अनुच्छेद 370 और 35ए से छेड़छाड़ का विरोध किया है.


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महबूबा मुफ्ती ने की केंद्र की फैसले की आलोचना


वहीं जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने घाटी में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की अतिरिक्त 100 कंपनियों को तैनात करने के केंद्र के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह एक राजनीतिक समस्या है, जिसे सैन्य तरीकों से हल नहीं किया जा सकता है. पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा ने कहा कि केंद्र को अपनी कश्मीर नीति पर पुनर्विचार और उसे दुरुस्त करना होगा.


महबूबा ने ट्विटर पर लिखा, ‘‘घाटी में अतिरिक्त 10,000 सैनिकों को तैनात करने के केंद्र के फैसले ने लोगों में डर पैदा कर दिया है. कश्मीर में सुरक्षा बलों की कोई कमी नहीं है. जम्मू-कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है जिसे सैन्य तरीकों से हल नहीं किया जा सकता. भारत सरकार को अपनी नीति पर पुनर्विचार और उसे दुरूस्त करने की जरूरत है.





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