नई दिल्ली: हजारों करोड़ रुपये ऋण के बोझ तले दबी सरकारी विमान सेवा कंपनी एयर इंडिया की बिक्री के साथ आगे बढ़ने के लिए सरकार और कर्ज नहीं लेगी. सरकार संयुक्त इक्विटी और डेट वैल्यू के आधार पर सूइटर्स से बोली लगाने की उम्मीद कर रही है. अधिकारियों के एक पैनल, जिसे लेनदेन और प्रस्तावित विकल्पों पर गौर करने का काम सौंपा गया था, वह भी 23,000 करोड़ रुपये के कर्ज को कम करने के पक्ष में नहीं है. एक अंग्रेजी वेबसाइट के मुताबिक, आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि कुछ संभावित बोलीदाताओं ने इस पर स्पष्टीकरण भी मांगा था.


एयरलाइन के ऋण को और कम करने पर विचार कर रही है सरकार


सरकारी सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि वित्त मंत्रालय मंत्रिमंडल के निर्णय के अनुरूप सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के विनिवेश कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन (डीआईपीएएम) के लिए उत्सुक है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा है, 'सरकार कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित मौजूदा आर्थिक परिदृश्य में रुचि रखने वाली कंपनियों के लिए एयरलाइन के ऋण को और कम करने पर विचार कर रही है.’


एयर इंडिया को निजी हाथों में सौंपने या बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं- हरदीप


बता दें कि कई मौकों पर सिविल एविएशन मिनिस्टर हरदीप सिंह पुरी बयान दे चुके हैं कि अगर सरकार इसमें मदद कर सकती, तो वह एयर इंडिया का परिचालन जारी रखती, लेकिन कंपनी पर 60 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है और सरकार के पास इसे निजी हाथों में सौंपने या बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं है.


गौरतलब है कि 25 अगस्त को एयर इंडिया के लिए बोली लगाने की समय सीमा दो महीने बढ़ाकर 30 अक्टूबर कर दी गई थी. क्योंकि कोरोना वायरस ने वैश्विक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर दिया था.


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