Supreme Court On Sedition Law: राजद्रोह कानून में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार, 31 अक्टूबर 2022 को सुनवाई हुई. इस सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कानून में बदलाव करने के लिए समय मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने इसकी अनुमति देते हुए सुनवाई जनवरी के दूसरे हफ्ते के लिए टाल दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने साफ किया कि 11 मई को दिया अंतरिम आदेश अभी लागू रहेगा.
यानी IPC की धारा 124A के तहत नई FIR दर्ज करने पर रोक जारी रहेगी. पहले से दर्ज मुकदमों में भी अदालती कार्रवाई रुकी रहेगी. इसके आलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर राजद्रोह के मामले दर्ज किए जाते हैं, तो वो पक्ष राहत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं. अदालतों को ऐसे मामलों को तेजी से निरटारा करना होगा. कोर्ट ने कहा कि आरोपी को राहत मिलना जरूर रहेगा.
जानिए अब तक क्या क्या हुआ?
- सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार करने के लिए केंद्र सरकार को एक दिन का और वक्त दे दिया था. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र से पूछा था कि, लंबित मामलों और भविष्य के मामलों पर सरकार कैसे गौर करेगी.
- राजद्रोह कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं. जिन पर लगातार सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा गया कि, राजद्रोह कानून में बदलाव की जरूरत नहीं है. लेकिन कोर्ट ने सभी पक्षों को अपना बयान स्पष्ट करने का वक्त दिया.
- सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई से ठीक पहले केंद्र सरकार की तरफ से दूसरा हलफनामा दाखिल किया गया, जिसमें सरकार ने कहा कि वो राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार और जांच के लिए तैयार है. साथ ही कोर्ट से कहा गया कि जब तक जांच होती है, तब तक कोर्ट इसे ना उठाए.
- केंद्र के हलफनामे के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए साफ-साफ कहा कि राजद्रोह कानून में बदलाव जरूरी हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए. आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी.
- वहीं राजद्रोह के लंबित मामलों के संबंध में, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया था कि जमानत याचिकाओं पर सुनवाई शीघ्रता से की जा सकती है. अब कानून के प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जुलाई में सुनवाई करने के लिए कहा था.
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हम उम्मीद करते हैं कि जब तक कानून के उक्त प्रावधान पर फिर से विचार नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र और राज्य नई प्राथमिकियां दर्ज करने, भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत कोई जांच करने या कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से बचेंगे.’’
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