नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में 4G इंटरनेट बहाल करने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है. याचिका में कहा गया है कि लॉक डाउन के दौरान डॉक्टरों से संपर्क के लिए कनेक्टिविटी ज़रूरी है. बच्चे भी स्कूल की पढ़ाई वीडियो कॉफ्रेंसिंग से कर सकेंगे.
इस याचिका का विरोध करते हुए जम्मू कश्मीर प्रशासन और केंद्र सरकार ने कहा कि वहां अब भी आंतरिक सुरक्षा को गंभीर खतरा बना हुआ है. मोबाइल इंटरनेट को 2G तक सीमित रखने से भड़काऊ सामग्री के प्रसार पर नियंत्रण है. स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था सुचारू रूप से चल रही है. उनके नाम पर सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता.
फाउंडेशन फ़ॉर मीडिया प्रोफेशनल्स नाम की संस्था की तरफ से दलीलें रखते हुए वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बताया. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट की सही सुविधा नहीं होने के कारण डॉक्टर कोविड 19 के इलाज को लेकर दुनिया भर में हो रही गतिविधियों की जानकारी हासिल नहीं कर पा रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान जिन मरीजों का घर से निकलना मुश्किल है, वह 4G इंटरनेट न होने के चलते डॉक्टरों से मशवरा भी नहीं ले पा रहे हैं.
इस दलील का जवाब देते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में स्वास्थ्य व्यवस्था सुचारू रूप से काम कर रही है. डॉक्टरों को कोविड 19 के इलाज को लेकर पूरी जानकारी दी गयी है. लोगों को भी बीमारी के खिलाफ जागरूक बनाने के लिए तमाम उपलब्ध तरीके इस्तेमाल किये जा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि हाई स्पीड इंटरनेट नहीं होने के चलते स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई हो.
मेहता ने यह भी कहा, “देश में कई जगहों पर इंटरनेट या तो है ही नहीं, या सिर्फ 2G इंटरनेट है. वहां से ऐसी कोई खबर नहीं आयी कि कोई कोविड 19 से इसलिए मर गया क्योंकि वहां इंटरनेट की स्पीड अच्छी नहीं है.'' हुजेफा अहमदी ने इस दलील को बेतुका बताते हुए कहा, “जम्मू-कश्मीर के लोग 2G इंटरनेट के चलते आरोग्य सेतु ऐप तक डाऊनलोड नहीं कर पा रहे हैं.“
इसके बाद शिक्षा पर बहस शुरू हुई. जम्मू-कश्मीर के कुछ निजी स्कूलों की तरफ वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा, “देश भर में बच्चे वीडियो कांफ्रेंसिंग से पढ़ाई कर रहे हैं. शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है.''
हुजेफा अहमदी ने उनका समर्थन करते हुए कहा, “राज्य के छात्र देश के दूसरे छात्रों की तरह पढ़ाई नहीं कर सकते, लेकिन उनसे उम्मीद की जाती है कि वह दूसरे छात्रों से प्रतियोगिता कर सकेंगे.“
जम्मू-कश्मीर प्रशासन की तरफ से बोलते हुए एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा, “कल ही कुपवाड़ा में एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है जिसमें 5 जवान मारे गए. क्या हम आतंकवादियों और उनके समर्थकों को इस बात की सुविधा दें कि वह सेना के मूवमेंट की वीडियो बना कर सीमा पार भेजें? इंटरनेट की सीमित स्पीड सिर्फ वहां के लोगों की सुरक्षा के लिए ज़रूरी नहीं है, बल्कि यह सीधे देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला है.“
अहमदी ने जवाब देते हुए कहा, “इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट पर हर सरकारी फैसला रिव्यू कमिटी के ज़रिए लिए जाने का आदेश दिया था. मकसद था कि सिर्फ बेहद ज़रूरी हालात में और चुनिंदा इलाकों में इंटरनेट पर रोक रहे. उस आदेश का बिल्कुल पालन नहीं किया गया.'' सभी पक्षो की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस एन वी रमना, आर सुभाष रेड्डी और बी आर गवई की बेंच ने आदेश सुरक्षित रख लिया.