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सेना में महिलाओं को कमान देने का मामला, SC ने कहा- मानसिकता में बदलाव से यह संभव होगा

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि महिलाओं को सेना में कमांडिंग रोल देने में कुछ व्यावहारिक दिक्कते हैंसुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर कहा है कि अगर मानसिकता में बदलाव किया जाए तो सब संभव है

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि सेना में ज़्यादातर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले जवान महिला अधिकारियों से कमांड लेने को लेकर बहुत सहज नजर नहीं आते. महिलाओं की शारीरिक स्थिति, परिवारिक दायित्व जैसी बहुत सी बातें उन्हें कमांडिंग अफसर बनाने में बाधक हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर मानसिकता में बदलाव किया जाए और इच्छाशक्ति हो तो बहुत कुछ कर पाना संभव है.

मामला सेना में स्थाई कमीशन नहीं पा सकी कुछ महिला अधिकारियों से जुड़ा है. 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने महिलाओं को भी सेना में स्थाई कमीशन दिए जाने का आदेश दिया था. इसके बावजूद कई महिला अधिकारी इससे वंचित रह गईं. वह 14 साल की सेवा पूरी कर लेने के चलते स्थाई कमीशन पाने के योग्य थीं, लेकिन किसी वजह से उन्हें स्थाई कमीशन नहीं मिला.

14 साल की सेवा के बाद स्थायी कमीशन के लिए चुना जाता है

2006 में सेना में लागू किए गए शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत 14 साल की सेवा पूरी करने वाले अधिकारियों को स्थाई कमीशन के लिए चुना जा सकता है. सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ऐसा नहीं है कि महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन नहीं दिया जा रहा है. खुद प्रधानमंत्री इसकी पैरवी कर चुके हैं. 14 साल को सेवा पूरी करने वाली महिलाओं को 6 साल का विस्तार देकर 20 साल तक काम करने का मौका देने का भी प्रावधान है. उन्हें बकायदा स्थायी कमीशन वाले अधिकारियों की तरह पेंशन और बाकी सुविधाएं दी जाती हैं, लेकिन सेना में महिलाओं को कमांडिंग स्थिति देने में व्यावहारिक दिक्कतें हैं.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखा पक्ष

सरकार की तरफ से दलील रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया, "कॉम्बैट विंग यानी सीधी लड़ाई वाली यूनिट में महिला अधिकारियों को तैनात कर पाना संभव नहीं है. दुर्गम इलाकों में तैनाती के लिहाज से शारीरिक क्षमता का उच्चतम स्तर पर होना जरूरी है. सीधी लड़ाई के दौरान एक अधिकारी आगे बढ़कर अपनी टुकड़ी का नेतृत्व करता है. अगर कभी कोई महिला शत्रु देश की तरफ से युद्ध बंदी बना ली जाएं, तो उसकी स्थिति क्या होगी? यह सब बातें सीधी लड़ाई वाली यूनिट में महिलाओं की तैनाती में बाधक हैं."

मामले की सुनवाई कर रही बेंच के अध्यक्ष जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने इससे सहमति जताते हुए कहा, "हम इस बात से सहमत हैं कि सीधी लड़ाई में महिलाओं को भेज पाना संभव नहीं है. लेकिन आज के दौर में युद्ध के तौर-तरीके बदल गए हैं. तमाम ऐसे अहम कमांडिंग पद हैं जिन्हें महिलाएं संभाल सकती हैं. जरूरत मानसिकता में बदलाव और इच्छाशक्ति दिखाने की है."

महिलाओं की बहादुरी के दिए गए उदाहरण 

याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वकील मीनाक्षी लेखी ने सेना में महिलाओं की नेतृत्व क्षमता का उदाहरण देते हुए कहा, "सब जानते हैं कि पायलट अभिनंदन ने पाकिस्तान के F-16 लड़ाकू विमान को मार गिराया था. उस अभियान के दौरान उन्हें महिला फ्लाइट कंट्रोलर मिनती अग्रवाल दिशानिर्देश दे रही थीं. मिनती को युद्ध सेवा मेडल भी दिया गया है. 2010 में लेफ्टिनेंट कर्नल मिताली मधुमिता ने काबुल में भारतीय दूतावास पर आतंकी हमले के दौरान बेमिसाल बहादुरी दिखाई. इसके लिए उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया." सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया. अगले हफ्ते वायु सेना और नौसेना की महिला अधिकारियों के मसले पर सुनवाई होगी.

इन विभागों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की बनी है नीति

फरवरी 2019 में सरकार ने सेना के 10 विभागों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की नई नीति बनाई थी. यह 10 विभाग हैं- जज एडवोकेट जनरल, आर्मी एजुकेशन कोर, सिग्नल, इंजीनियर्स, आर्मी एविएशन, आर्मी एयर डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक्स-मेकेनिकल इंजीनियरिंग, आर्मी सर्विस कोर, आर्मी ऑर्डिनेंस और इंटेलिजेंस. इस स्थायी कमीशन का लाभ मार्च 2019 के बाद से सेवा में आने वाली महिला अधिकारियों को मिलना था. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाली अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने लंबे अरसे तक महिलाओं के हक के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी है. इस नई नीति में उन्हें योग्य होने के बावजूद स्थायी कमीशन से वंचित कर दिया गया है.

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