बेंगलुरुः चंद्रयान- 2 मिशन लगातार अपने लक्ष्य की ओर है अब सफलता से मात्र एक कदम दूर है. इसे सफल बनाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. इसमें कोई दो राय नहीं कि सबसे चुनौतीपूर्ण भरा पड़ाव वह होगा जब लैंडर चांद की सतह पर लैंड करेगा. उस वक्त 15 मिनट का वक्त काफी दहशत भरा रहेगा. यही कारण है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को सफलतापूर्वक चांद पर उतारने के लिए चंद्रमा का कृत्रिम माहौल धरती पर तैयार किया था.
एक ऐसी सतह का निर्माण किया गया था जो कि बिल्कुल चांद जैसी ही थी. चांद जितना ही प्रकाश उस पर पड़ रहा था. प्रकाश को लेकर कई स्टूडियो से बात की गई थी. कर्नाटक के चित्रदुर्गा जिले में इस सतह का निर्माण किया गया था. जहां लैंडर और रोवर को टेस्ट किया गया.
प्रक्षेपण से पहले लैंडर और रोवर का हुआ था टेस्ट
प्रक्षेपण से पहले लैंडर और रोवर का टेस्ट इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि चांद की सतह पर गड्ढे मिट्टी और पत्थर मौजूद है. ऐसे में क्या लेंडर के पैर उस झटके को सहन कर पाएंगे साथ ही रोवर के पहिए क्या उस सतह पर चल पाएंगे?
इन तमाम एक्सपेरिमेंट को करना काफी महत्वपूर्ण था. और इसके लिए ऐसे ही पत्थर और मिट्टी की जरूरत थी जो कि चांद की सतह से मिलते जुलते हों. बता दें कि चांद की सतह धरती की सतह से बिल्कुल अलग है. इसलिए चांद की सतह पर लैंडर और रोवर उतारने के लिए धरती पर कृत्रिम चांद की सतह का निर्माण जरूरी था.
पथरीला है चांद की सतह
दरअसल, चांद की सतह क्रेटर (बड़े-बड़े गड्ढे), चट्टानों और धूल से ढकी हुई है. इसकी मिट्टी की बनावट पृथ्वी से बिल्कुल अलग है. चूंकि उड़ान से पहले लैंडर के पैर और रोवर के पहियों का उस जमीन पर परीक्षण जरूरी था.
ठीक चांद की सतह जैसी मिट्टी और चट्टान के लिए इसरो ने अमेरिका के नासा से संपर्क भी किया और इसका सौदा काफी महंगा पड़ रहा था. इसकी कीमत $150 प्रति किलो था, यानी करीब ₹10000 प्रति किलो. इसरो को जरूरत थी करीब 60 टन मिट्टी चट्टान की. यानी साफ तौर पर बजट करोड़ों का जा रहा था.
तमिलनाडु में मिली मिट्टी
जिसके बाद इसरो ने एक स्थानीय समाधान की तलाश की. कई भू-वैज्ञानिकों ने इसरो को बताया कि तमिलनाडु में सलेम के पास नामक्कल जिले के दो गांवों में एनॉर्थोसाइट चट्टानें हैं, जो चंद्रमा की मिट्टी से 90 फीसदी मिलती-जुलती है.
इसरो ने चांद की मिट्टी के लिए तमिलनाडु के सीतमपोंडी और कुन्नामलाई गांवों से एनॉर्थोसाइट चट्टानों को लेने का निर्णय लिया. चट्टानों को आवश्यक आकार में तब्दील किया गया और ज्यादातर इसके ननोपार्टिकल्स बनाए गए.
इसके बाद बेंगलुरु स्थित परीक्षण केंद्र भेज दिया गया. इस काम के लिए शुरुआती बजट 25 करोड़ रुपये था, लेकिन सेवा देने वाली कंपनी ने कुछ भी नहीं लिया. इस कारण काफी पैसा बच गया.
आपको बता दें कि जिस काम के लिए इसरो ने 25 करोड़ का बजट रखा था आप ही जानकर हैरान होंगे कि वह काम महज़ 10 से 12 लाख में पूरा हो गया. साथ ही कई एक्सपर्ट्स ऐसे भी थे जिन्होंने बिना सैलरी इस पर काम किया.
पहिये में हुआ बदलाव
चंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश जिस वेग से पड़ता है और उसकी प्रदीप्ति जितनी होती है, उसी अनुपात में परीक्षण स्थल पर रौशनी की व्यवस्था की गई. जिसके बाद इसका परीक्षण शुरू हुआ. शुरुआत में रोवर प्रज्ञान में चार पहिये लगे थे. लेकिन परीक्षण के बाद इसरो के वैज्ञानिकों ने इसे और अधिक स्थिरता देने के लिए इसमें छह पहिये लगाए. कुछ बदलाव पहियों के आकार के साथ भी किए गए.
लगाए गए हैं हिलियम के गुब्बारे
आपको बता दें कि धरती से चांद पर गुरुत्वाकर्षण कम है यानी अगर कोई वस्तु धरती पर 100 किलो की है तो वह वस्तु चांद पर महज 17 किलो की ही होगी. यही कारण है कि जब धरती पर चंद्रमा की सतह का निर्माण किया गया तब रोवर के भार को कम करने और धरती से कम होने वाले चांद के गुरुत्व बल से तारतम्य बैठाने के लिए उसके साथ हीलियम के गुब्बारे लगाए गए हैं.
रोवर और लैंडर के बीच संचार क्षमताओं का परीक्षण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में किया गया. इसका परीक्षण कर्नाटक के चित्रदुर्गा जिले के चल्लाकेरे में किया गया. लैंडर विक्रम का परीक्षण भी कुछ इसी तरह हुआ.
सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान की चुनौतियां
चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान जब इंजन शुरू होगा तो चांद की सतह पर मौजूद मिट्टी और बाकी पार्टिकल उड़ेंगे और लैंडर में लगे सेंसर या सोलर पैनल पर जम सकते हैं. ऐसे में सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान यह चुनौती सबसे बड़ी होगी.
सॉफ्ट-लैंडिंग से पहले लैंडर विक्रम के सेंसर यह जांचेंगे कि क्या उतरने वाला भूभाग सुरक्षित है या नहीं. लैंडिंग के बाद भी अगर इलाक़ा उपयुक्त नहीं है तो लैंडर वापस ऊपर उठकर पास के किसी स्थिर जगह पर लैंड करेगा.
महेंद्रगिरि के इसरो सेंटर में जांचे गए लैंडर के एक्युटेटर्स
इसरो टीम ने एनआरएससी (नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर) की ओर से बनाए गए सेंसर को छोटे प्लेन में लगाया और सेंसर की जांच करने के लिए इसे दो बार कृत्रिम सतह के ऊपर उड़ाया. जिससे कि यह पता लगाया जा सके कि जब सॉफ्ट लैंडिंग होगी तो उससे पहले लेंडर के सेंसर चांद की सतह को सही से पढ़ पाते हैं या नहीं.
जिससे वास्तविक रूप से उतरने में लैंडर को कोई दिक्कत न आए. लैंडर के एक्युटेटर्स महेंद्रगिरि के इसरो सेंटर में जांचे गए. यहीं इसके थ्रस्टर्स की भी जांच की गई. लैंडर के पैर की दो परिस्थितियों में जांच की गई. एक उतरते समय इंजन बंद करके और दूसरा इंजन चालू रहते.
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