नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो देर रात 2 बजकर 51 मिनट पर अपने सबसे अहम मिशन चंद्रयान-2 को चांद की सतह पर भेजने वाला है. इसकी उल्टी गिनती आज सुबह 6 बजकर 51 मिनट पर शुरू हो गई है. 11 साल बाद इसरो दोबारा चांद पर भारत का झंडा फतेह करने को पूरी तरह तैयार है. सब कुछ ठीक रहा तो भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन जाएगा जो चांद की दक्षिणी सतह पर उतरेगा. यह वह अंधेरा हिस्सा है जहां उतरने का किसी देश ने साहस नहीं किया है. यह भारत का दूसरा चांद मिशन है. इससे पहले 2008 में चंद्रयान-1 को भेजा गया था. जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल यानी जीएसएलवी मार्क 3 एम1 जैसे ही आकाश की ओर बढ़ेगा भारत और इतिहास रचने के काफी नजदीक होगा. जीएसएलवी भारत में अब तक बना सबसे शक्तिशाली रॉकेट है इसीलिए इसे बाहुबली रॉकेट भी कहा जाता है. यह रॉकेट चंद्रयान-2 को चंद्रमा की कक्षा तक ले जाएगा.


मिशन की कमान महिलाओं के हाथ में
इस मिशन की सबसे खास बात यह भी है कि इसरो के इतिहास में यह पहली बार होगा जब किसी मिशन की कमान पूरी तरह महिलाओं के हाथ में है. साथ ही इस पूरे मिशन में 30% महिलाएं हैं.


इस पूरे प्रोजेक्ट की डायरेक्टर का नाम मुथैया वनिता है. उनके कंधों पर मिशन की शुरुआत से लेकर आखिर तक का जिम्मा है. उनके अलावा मिशन डायरेक्टर रितु करिधाल श्रीवास्तव हैं. वनिता और रितु दोनो ही 20 सालों से इसरो में काम कर रही है. रितु करिधाल इससे पहले भी कई मिशन में अपनी अहम भूमिका निभा चुकी है. यहां तक कि मंगलयान मिशन में भी उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी. जिसमें वे ऑपरेशन्स की डेप्युटी डायरेक्टर थी. इन्हें रॉकेट वुमन कहा जाता है. एयरोस्पेस इंजीनियर के तौर पर उन्होंने अपना कैरियर इसरो में 1997 में शुरू किया था. उन्हें यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड और मंगल मिशन के लिए भी अवॉर्ड से नवाजा गया.


मुथैया वनिता जो कि चंद्रयान 2 की प्रोजेक्ट डायरेक्टर है, वह इसरो के इतिहास में पहली प्रोजेक्ट डायरेक्टर बनी. वनिता डेटा हैंडलिंग में पूरी तरह सक्षम है. इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजीनियर हैं. वह डिजिटल सिग्नल प्रोसेसिंग में माहिर हैं और उन्होंने उपग्रह संचार पर कई पेपर लिखे हैं. उन्होंने मैपिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले पहले भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह (कार्टोसैट 1), दूसरे महासागर अनुप्रयोग उपग्रह (ओशनसैट 2) और तीसरे उष्णकटिबंधीय में जल चक्र और ऊर्जा विनिमय का अध्ययन करने के लिए इंडो-फ्रेंच उपग्रह (मेघा-ट्रॉपिक) पर उप परियोजना निदेशक के तौर पर काम किया है. 2006 में उन्हें एस्ट्रॉनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने सर्वश्रेष्ठ महिला वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया था. साइंस जर्नल नेचर ने उनका नाम उन पांच वैज्ञानिकों की श्रेणी में रखा था जिनपर 2019 में नजर रहेगी.



इसरो का कहना है कि महिलाओं ने इससे पहले भी विभिन्न उपग्रह प्रक्षेपणों का नेतृत्व किया है लेकिन यह पहली बार है जब इतने बड़े मिशन की डायरेक्टर और प्रोजेक्ट डायरेक्टर दोनो ही महिलाएं हैं. वनिता को पिछले साल नियुक्त किया गया है. अधिक से अधिक महिलाओं को नेतृत्व की भूमिकाएं लेते देखना अच्छा है और यह इसरो के भविष्य के मिशन में भी जारी रहेगा.


मिशन की खासियत
चंद्रयान-2 मिशन अपने साथ भारत के 13 पेलोड और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का भी एक उपकरण लेकर जाएगा. 13 भारतीय पेलोड में से ऑर्बिटर पर आठ, लैंडर पर तीन और रोवर पर दो पेलोड और नासा का एक पैसिव एक्सपेरीमेंट (उपरकण) होगा. इस मिशन का कुल वजन 3.8 टन होगा. यान में तीन मॉड्यूल होंगे, जिसमे ऑर्बिटर, लैंडर जिसका नाम विक्रम दिया गया है और रोवर जिसका नाम प्रज्ञान दिया गया है. मिशन को लॉन्च करने का समय जुलाई 15 को सुबह 2 बजकर 51 मिनट रखा गया है. मिशन 6 सितंबर को चांद की सतह पर उतरेगा.


ऑर्बिटर: ऑर्बिटर चांद की सतह से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर चक्कर लगाएगा. साथ ही रोवर से मिला डेटा ऑर्बिटर लेकर मिशन सेंटर को भेजेगा. ऑर्बिटर में कुल आठ पेलोड होंगे.



ऑर्बिटर के पेलोड


1) टैरेन मैपिंग कैमरा - 2 जो कि सतह मैप लेगा.


2) चंद्रयान 2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (CLASS) - चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच और मैपिंग के लिए.


3) सोलार एक्सरे मॉनिटर (XSM) - चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच और मैपिंग के लिए.


4) ऑर्बिटर हाई रिजॉल्यूशन कैमरा (OHRC) - सतह की मैपिंग के लिए.


5) इमेजिंग इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS) - मिनेरोलॉजी मैपिंग यानी सतह पर मौजूद मिनरल्स की मैपिंग के लिए.


6) डुअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार (DFSAR) - चांद की सतह के कुछ मीटर अंदर जिससे पानी का पता लगाया जा सके.


7) चन्द्र एटमॉस्फियरिक कंपोजिशन एक्सप्लोरर 2 (CHACE-2) - चांद के सतह के ऊपर मौजूद पानी के मोलेक्यूल का पता लगाने के लिए.


8) डुअल फ्रीक्वेंसी रेडियो साइंस (DFRS) - चांद के वातावरण को स्टडी करने के लिए.


लैंडर: लैंडर की चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी. लैंडर का नाम विक्रम है.


लैंडर विक्रम के पेलोड


1) रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बॉन्ड हाइपर सेंसिटिव आयनॉस्फेयर एंड एटमॉस्फियर (RAMBHA) लांगमुईर प्रोब (LP)


2) चन्द्र सर्फेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट (ChaSTE)


3) इंस्ट्रूमेंट फॉर लुनार सीस्मिक एक्टिविटी (ILSA)


तीनों पेलोड लैंडिंग प्रॉपर्टीज हैं.


रोवर: रोवर लैंडर के अंदर ही मैकेनिकल तरीके से इंटरफेस किया गया है. यानी लैंडर के अंदर इनहाउस रहेगा और चांद की सतह पर लैंडर के सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर प्रज्ञान अलग होगा और 14 से 15 दिन तक चांद की सतह पर चहलकदमी करेगा और चांद की सतह पर मौजूद सैंपल्स यानी मिट्टी और चट्टानों के नमूनों को एकत्रित कर उनका रसायन विश्लेषण करेगा और डेटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा. जहां से ऑर्बिटर डेटा को इसरो मिशन सेंटर भेजेगा.



रोवर के एक व्हील पर अहोक चक्र दूसरे व्हील पर इसरो का लोगो होगा. वहीं भारत का तिरंगा भी रोवर पर होगा. इससे पहले चंद्रयान-1 के वक़्त भी भारत का तिरंगा चांद पर भेजा गया था.


रोवर प्रज्ञान पेलोड


* लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोमीटर (LIBS)


* अल्फा पार्टिकल एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS)


* दोनो पेलोड लैंडिंग साईट के आसपास के क्षेत्र को मैपिंग करने के लिए.


इसके अलावा नासा का एक पैसिव एक्सपेरिमेंट भी इस पेलोड का हिस्सा होगा. जिसे मिलाकर कुल 14 पेलोड हो जाते हैं. लेजर रेट्रो रिफ्लेक्टर अरेय (LRA) जो कि पृथ्वी और चांद के बीच गतिविज्ञान और चांद की सतह के भीतर मौजूद रहस्यों को जानने के लिए भेजा जाएगा.


चुनौतियां:


* चांद की सतह का सटीक आंकलन
* गहन अंतरिक्ष में संचार
* चांद की कक्षा में प्रवेश
* चांद सतह का असमान गुरुत्वाकर्षण बल
* सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती होगी
* चांद की सतह की धूल
* सतह का तापमान रोवर की राह में रोड़ा बन सकता है.


इसरो के मुताबिक इस अभियान में जीएसएलवी मार्क 3 एम1 प्रक्षेपण यान का इस्तेमाल किया जाएगा. इसरो ने कहा कि रोवर चंद्रमा की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग करेगा. लैंडर और ऑर्बिटर पर भी वैज्ञानिक प्रयोग के लिए उपकरण लगाये गये हैं. साथ ही भारत चंद्रमा पर उस जगह पर उतरने जा रहा है जहां कोई नहीं पहुंचा है- अर्थात चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर. इस क्षेत्र को अब तक खंगाला नहीं गया है. एबीपी न्यूज से चेयरमैन के सीवन ने बताया कि इस सतह पर कई रहस्य के खुलने की उम्मीद है साथ ही लैंडिंग के लिए सही जगह देखकर चुना गया है. वैज्ञानिक प्रयोग के लिहाज से यह क्षेत्र अहम कहा जा सकता है.


चंद्रयान- 2 पिछले चंद्रयान- 1 मिशन का उन्नत संस्करण है. चंद्रयान- 1 अभियान करीब 11 साल पहले अक्टूबर 2008 को किया गया था. जिसमे पेलोड 11 थे. 5 भारत के, 3 यूरोप के, 2 अमेरिका और 1 बल्गेरिया का. जिसने चांद की सतह पर पानी का पता लगाया था.


इस मिशन के साथ भारत जहां फिर एक बार कई रहस्यों को खंगालेगा वहीं ख़ास बात यह भी कि इस मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर और मिशन डायरेक्टर दोनो महिलाएं है जो कि दिखाता है कि किस तरह भारत में अंतरिक्ष तक महिला शक्ति आगे बढ़ रही है. साफ है इस प्रक्षेपण के साथ ही भारत एक और इतिहास रचेगा जो कि हर भारतीय को गौरवांवित करेगा.