बैंगलूरू: चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर शाम ढलते-ढलते अब अंधेरा बढ़ने लगा है. इसी के साथ अब लैंडर ‘विक्रम’ के साथ संपर्क साधने की उम्मीदें भी बेहद कम होती जा रही हैं. अंधेरे के साथ ही चंद्रमा की सतह पर तापमान माइनस 180 डिग्री तक पहुंच जाएगा, क्योंकि विक्रम लेंडर पर किसी भी तरह का रेडियो आइसोटोप हीटर नहीं लगा है और यही कारण है कि उसके जीवित रहने की उम्मीद कम दिखाई दे रही है.
गौरतलब है कि 7 सितंबर को आधी रात को 1:53 बजे के करीब विक्रम लैंडर का चांद के साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी, लेकिन सतह पर पहुंचने से पहले ही करीब सतह से 300 मीटर की दूरी से ही संपर्क टूट गया था. जब ये घटना हुई तब चांद पर सूरज की रोशनी पड़नी शुरू हुई थी. यही कारण है कि इसरो ने भी यही विंडो तैयार किया था. ताकि विक्रम लेंडर पर सूरज की रोशनी पड़ सके और वह अपने एक्सपेरिमेंट कर सके.
बता दें कि चांद पर एक दिन यानी सूरज की रोशनी वाला पूरा वक्त पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. ऐसे में 7 तारीख के बाद से 14 दिन बाद यानी 20-21 सितंबर को चांद पर रात हो जाएगी. ऐसे में रात के दौरान क्योंकि तापमान काफी ठंडा हो जाएगा, यही कारण है कि विक्रम लैंडर के काम करने की उम्मीदें भी खत्म होती चली जाएंगी.
इस बीच नासा के लूनर रेक्कॉनैसंस ऑर्बिटर (LRO) ने भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की तस्वीर ली है. जो वहां आइस वाटर होने कि पुष्टि करती है.
आखिरी पल तक की गई कोशिश भी कोई रंग नहीं लाई
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अंधेरा बढ़ने लगा है. विक्रम लैंडर से संपर्क साधने के लिए इसरो समेत नासा ने भी अपनी ओर से पूरी कोशिश की. आखिरी पल तक हार ना मानते हुए अलग-अलग डीप स्पेस नेटवर्क ने विक्रम लेंडर से संपर्क साधने की कोशिश की. नासा के अमेरिका में कैलिफोर्निया के गोल्ड स्टोन, स्पेन के मेड्रिड और ऑस्ट्रेलिया के कैनबेरा डीप स्पेस नेटवर्क संपर्क साधने में लगे हुए थे. इसके अलावा इसरो के डीप स्पेस नेटवर्क लगातार संपर्क साधने में लगे हुए थे. आखिरी पल तक की गई कोशिश भी कोई रंग नहीं लाई.
अब से कुछ ही घंटों में चंद्रमा की सतह पर पूरा अंधेरा छा जाएगा और उसी के साथ विक्रम लैंडर भी उस अंधेरे में खो जाएगा. यहां तक कि तस्वीर खींचना भी अब मुश्किल है. चांद की सतह पर यह रात अगले 14 दिन तक रहेगी यानी यही ठंडा तापमान अगले 14 दिनों तक रहेगा. इसके साथ ही विक्रम लैंडर के सलामत रहने की उम्मीदें भी कम दिखाई दे रही है. चंद्रमा की सतह पर दिन के दौरान तापमान 150 से 180 डिग्री तक पहुंच जाता है वहीं रात के दौरान यह तापमान माइनस 180 डिग्री तक पहुंच जाता है. ऐसे में लैंडर के सिस्टम को बरकरार रखना एक बहुत बड़ी चुनौती होगी या यह कहे कि लगभग नामुमकिन है.
चंद्रयान 2 मिशन जीएसएलवी मार्क 3 के जरिए श्रीहरिकोटा से 22 जुलाई को प्रक्षेपित किया गया था और उसके 48 दिनों के बाद यानी 7 सितंबर की सुबह करीब 1:55 पर लैंडर को सॉफ्टलैंड होना था और आखिरी कुछ मिनट में लैंडर का संपर्क टूट गया था. इस मिशन के तीन हिस्से थे. ऑर्बिटर चंद्रमा से 100 किलोमीटर की दूरी पर लगातार चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगा रहा है. माना जा रहा था कि ऑर्बिटर पहले 1 साल तक काम करेगा, लेकिन अब क्योंकि उसमें फ्यूल बचा हुआ है ऐसे में ऑर्बिटर अब आने वाले 7 सालों तक काम करेगा. यानी 7 सालों तक ऑर्बिटर चंद्रमा की सतह पर मौजूद रहस्य की तस्वीरें भेजता रहेगा.
ऑर्बिटर के पेलोड्स क्या हैं और वह किस तरह से काम करेंगे?.
ऑर्बिटर के पेलोड
- टैरेन मैपिंग कैमरा - 2 जो कि सतह मैप लेगा.
- चंद्रयान 2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (CLASS) - चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच और मैपिंग के लिए
- सोलार एक्सरे मॉनिटर (XSM) - चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच और मैपिंग के लिए
- ऑर्बिटर हाई रिजॉल्यूशन कैमरा (OHRC) - सतह की मैपिंग के लिए
- इमेजिंग इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS) - मिनेरोलॉजी मैपिंग यानी सतह पर मौजूद मिनरल्स की मैपिंग के लिए.
- डुअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार (DFSAR) - चांद की सतह के कुछ मीटर अंदर जिससे पानी का पता लगाया जा सके.
- चन्द्र एटमॉस्फियरिक कंपोजिशन एक्सप्लोरर 2 (CHACE-2) - चांद के सतह के ऊपर मौजूद पानी के मोलेक्यूल का पता लगाने के लिए.
- डुअल फ्रीक्वेंसी रेडियो साइंस (DFRS) - चांद के वातावरण को स्टडी करने के लिए.
इसरो ने भी यह कंफर्म किया है कि ऑर्बिटर के तमाम पेलोड सही से काम कर रहे हैं. साथ ही एक नेशनल लेवल की कमेटी भी बनाई गई है जो कि लेंडर विक्रम के संपर्क टूटने पर विश्लेषण कर रिपोर्ट सौंपेगी.
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