Interesting Facts About Moon: भारत का बहुप्रतीक्षित तीसरा चंद्र मिशन 'चंद्रयान-3' चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग से बस कुछ ही देरी की दूरी पर है. 23 अगस्त की शाम ISRO की ओर से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर इसकी सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी. चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग के काउंटडाउन के बीच आइये जानते चंद्रमा से जुड़ी कुछ रोचक बातें.
कितनी है पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी?
spaceplace.nasa.gov वेबसाइट के अनुसार, चंद्रमा पृथ्वी से औसतन 238,855 मील (384,400 किलोमीटर) दूर है, यानी लगभग 30 पृथ्वियों के जितनी दूरी. पृथ्वी से जब चंद्रमा सबसे दूर होता है तो यह करीब 252,088 मील (करीब 405,696 किलोमीटर) दूर होता है, जोकि 32 पृथ्वियों के बराबर है. वहीं जब यह पृथ्वी के सबसे पास होता है तब इसकी दूरी 225,623 मील (करीब 363,105 किलोमीटर) होती है, यानी 28-29 पृथ्वियों के बराबर दूरी.
चांद पर कितने घंटे का दिन होता है?
svs.gsfc.nasa.gov वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, पृथ्वी के 29.53 दिनों के बराबर चंद्रमा का एक दिन होता है. अगर गणना घंटों में की जाए तो चंद्रमा पर 708.7 घंटे का एक दिन होता है.
गनपाउडर जैसी होती है चांद की मिट्टी की गंध
जुलाई 1969 से दिसंबर 1972 के बीच अमेरिका ने चंद्र मिशन के तौर पर एक बड़ा अपोलो कार्यक्रम चलाया था. उस दौरान अमेरिका के 12 लोगों ने चंद्रमा पर कदम रखने का अनुभव हासिल किया. पहले शख्स नील आर्मस्ट्रॉन्ग थे और चंद्रमा पर उतरने वाले आखिरी इंसान जीन सर्नेन थे.
science.nasa.gov वेबसाइट पर 30 जनवरी 2006 को पब्लिश के एक आर्टिकल के मुताबिक, अमेरिकी मिशन अपोलो 17 के अंतरिक्ष यात्री जीन सर्नेन (Gene Cernan) ने बताया था कि चंद्रमा की डस्ट की गंध कैसी है. उन्होंने बताया था कि यह इस्तेमाल किए जा चुके गनपाउडर की तरह महकती है. उन्होंने कहा था कि ऐसी गंध है जैसे अभी-अभी किसी ने कार्बाइन दागी हो.
कितना होता है चांद पर टेंपरेचर?
नासा के एक रोबोटिक अंतरिक्ष यान लूनर रिकॉनिसंस ऑर्बिटर (LRO) से मिली जानकारी के मुताबिक, चंद्र भूमध्य रेखा के पास दिन का तापमान 250 डिग्री फारेनहाइट (120 डिग्री सेल्सियस) तक पहुंच जाता है, जबकि रात का तापमान माइनस 208 डिग्री फारेनहाइट (-130 डिग्री सेल्सियस) तक पहुंच जाता है. चंद्रमा के ध्रुव और भी ज्यादा ठंडे हैं.
चंद्रमा के हर्माइट क्रेटर के तल में एक जगह है, जिसका तापमान माइनस 410 डिग्री फारेनहाइट (-250 डिग्री सेल्सियस) पाया गया, जिससे यह सौर मंडल में कहीं भी मापा गया सबसे ठंडा तापमान है. हर्माइट क्रेटर की तरह अत्यधिक ठंडे क्षेत्र चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई स्थायी रूप से छाया वाले गड्ढों के तल पर पाए गए, जिन्हें सर्दियों की रात में मापा गया.
कितना पुराना है चंद्रमा?
solarsystem.nasa.gov पर दी गई जानकारी के मुताबिक, चंद्रमा की उत्पत्ति का प्रमुख सिद्धांत यह है कि लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले मंगल ग्रह के आकार का एक पिंड पृथ्वी से टकराया था. पृथ्वी और उल्का पिंड दोनों से उत्पन्न मलबा जमा होकर 239,000 मील (384,000 किलोमीटर) दूर हमारा प्राकृतिक उपग्रह यानी चंद्रमा बन गया. नवगठित चंद्रमा पिघली हुई अवस्था में था लेकिन लगभग 100 मिलियन वर्षों के भीतर ज्यादातर ग्लोबल 'मैग्मा ओसियन' (पिघली हुई चट्टान की परत, जिसके बारे में माना जाता है कि यह चंद्रमा की सतह पर मौजूद है) क्रिस्टीकृत (ठोस अवस्था में) हो गया, जिसमें कम घनी चट्टानें चंद्र परत का निर्माण करती हैं.
क्या चांद पर भी आता है भूकंप?
नासा की वेबसाइट पर 13 मई 2019 को प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, अपोलो 11, 12, 14, 15 और 16 मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों ने इंस्ट्रुमेंट्स को चंद्रमा की सतह पर रखा था. अपोलो 11 का सिस्मोमीटर केवल तीन हफ्ते के लिए संचालित हुआ था लेकिन बाकी चार ने 28 उथले मूनक्वेक (चंद्रमा पर भूकंप जैसे झटके) दर्ज किए थे. रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता लगभग 2 से 5 तक माफी गई थी.
चांद पर पहली बार किसने रखा कदम, इंसान या जानवर?
www.rmg.co.uk वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, जोंड 5 (सोवियत जोंड कार्यक्रम का एक अंतरिक्ष यान) पर सवार दो रूसी कछुए चंद्रमा की परिक्रमा करने और पृथ्वी पर लौटने वाले पहले जानवर थे. 15 सितंबर 1968 को कछुओं को चंद्रमा के चारों ओर पौधों, बीजों और बैक्टीरिया के साथ लॉन्च किया गया था और वे सात दिन बाद पृथ्वी पर लौट आए थे. इस तरह देखा जाए तो इन जानवरों ने अंतरिक्ष यान से चंद्रमा का परिक्रमा लगाया था, न कि चांद पर कदम रखा था. इंसान ने ही पहली बार चांद पर कदम रखा था.
पहली बार इंसान ने चांद पर कब रखा कदम?
20 जुलाई 1969 को अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रॉन्ग चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले इंसान बने थे. अमेरिका के अपोलो 11 मिशन के अंतरिक्ष यात्री के रूप में नील आर्मस्ट्रांग, बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिन्स शामिल थे. नील आर्मस्ट्रॉन्ग के बाद बज एल्ड्रिन ने भी लैंडर से बाहर निकलकर चंद्रमा पर कदम रखा था लेकिन माइकल कोलिन्स चंद्रमा पर नहीं उतरे थे.
ये अंतरिक्ष यात्री कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र से अमेरिका के सुपर हेवी-लिफ्ट लॉन्च व्हीकल सैटर्न वी में सवार होकर चंद्रमा के लिए गए थे. इसमें एक लैंडर मॉड्यूल ईगल और कमांड मॉड्यूल कोलंबिया शामिल था. नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज एल्ड्रिन लैंडर ईगल मॉड्यूल के जरिये चंद्रमा पर उतरे थे जबकि कोलिन्स कमांड मॉड्यूल कोलंबिया में परिक्रमा करते रहे थे ताकि वापस आने के लिए नील और बज के लिए वह यान को वहां ऑर्बिट में बनाए रखें.
क्या चांद पर सोना है?
www.jpl.nasa.gov वेबसाइट पर 29 मई 2015 को कुछ ग्राफिक्स और शीर्षक 'द लूनर गोल्ड रश: मून माइनिंग कैसे काम कर सकती है' के माध्यम से चंद्रमा पर सैकड़ों अरबों डॉलर के इस्तेमाल नहीं किए जा सके संसाधन का जिक्र किया गया.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने 18 जून 2009 से लेकर 9 अक्टूबर 2009 तक LCROSS नामक एक मिशन चलाया था. यह नासा का लूनर क्रेटर ऑब्जर्वेशन एंड सेंसिंग सैटेलाइट मिशन था. इसे Lunar Reconnaissance Orbiter के साथ लॉन्च किया गया था. इस मिशन में लगभग 6,000 मील प्रति घंटे की रफ्तार से चंद्रमा पर एक बूस्टर रॉकेट को क्रैश कराना शामिल था. वहीं, स्पेक्ट्रोमीटर से लैस एक दूसरा अंतरिक्ष यान उस प्रभाव से निकले मलबे के ढेर का अध्ययन करने के लिए पीछे छोड़ा गया.
विश्लेषण के दौरान पाए गए रसायनों में कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, अमोनिया, सोडियम, हाइड्रोजन और सोने-चांदी और पारा के छोटे अंश शामिल पाए गए. हालांकि, सैंपल साइज अपेक्षाकृत छोटा था, फिर भी इसने चंद्र रेजोलिथ (ठोस पदार्थ की परत) के नीचे सोने की मौजूदगी की पुष्टि की.
चंद्रमा पर कैसे पहुंचा सोना?
माना जाता है कि दो तरीकों से सोना चंद्रमा तक पहुंच गया होगा. पहला उल्का पिंड के प्रभाव के कारण और दूसरा चंद्रमा की निर्माण प्रक्रिया के दौरान. माना जाता है कि चंद्रमा पर उल्का पिंडों की बमबारी होती रही है. कुछ उल्का पिंडों में सोना रहा होगा. चंद्रमा पर गिरने के दौरान उल्का पिंड वाष्पीकृत हो सकता है, पिघल सकता है या सोने सहित अपनी सामग्री को चंद्रमा की सतह पर बिखेर सकता है.
उदाहरण के तौर पर एस्टेरॉइड (क्षुद्रग्रह) साइकी (Psyche) 16 में प्रत्येक इंसान को अरबपति बनाने के लिए पर्याप्त सोना है, इसलिए इसमें कोई अचरज की बात नहीं कि अस्तित्व के 4.5 अरब वर्षों के दौरान चंद्रमा को उस पर गिरे क्षुद्रग्रहों से कुछ सोना प्राप्त हुआ होगा.
चूंकि माना जाता है कि लगभग 4.5 अरब वर्ष पहले पृथ्वी और मंगल के आकार के खगोलीय पिंड के बीच एक बड़े पैमाने पर टकराव के मलबे से चंद्रमा का निर्माण हुआ था. इस प्रक्रिया के दौरान पृथ्वी या प्रभावित पिंड से कुछ सोना चंद्रमा की संरचना में शामिल हो गया होगा.
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