Chandrayaan 3 Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो ) ने चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च किया था. ये चंद्रमा की कक्षा में ऊपर उठाने की चौथी कवायद सफलतापूर्वक पूरी कर चुका है, लेकिन सवाल है कि आखिऱ ये सफर कहां से शुरू हुआ था. 


इंडिया टुडे के मुताबिक, भारतीय स्पेस प्रोग्राम की शुरुआत 1960 के दशक में हुई थी. शुरुआत में संसाधनों की भारी कमी के कारण इंजीनियर रॉकेट के पार्ट को अपनी साइकिल पर ले जाते थे. इसके बाद से हम लंबा सफर तय कर चुके हैं. 


साल 1969 में इसरो की स्थापना हुई. इसरो के संस्थापक और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक कहे जाने वाले दिवंगत विक्रम साराभाई ने ये सुनिश्तित किया कि हम कम से पैसे में मिशन पूरा कर सके.  


केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में बताया कि चंद्रयान-3 परियोजना की लागत लगभग 600 करोड़ रुपये है. इस मिशन ने इसरो की विश्वसनियता दुनिया के सामने फिर से एक बार साबित कर दी. इस मुकाम तक पहुंचना आसान नहीं रहा क्योंकि अमेरिका के नासा और  रोस्‍कोस्‍मोस जैसे के बीच इस कद को हासिल करने की कोशिश कठिन रही है. 


कहां से सफर शुरू हुआ?
भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट को 1975 में एक विदेशी लॉन्चपैड से सोवियत रॉकेट का उपयोग करके लॉन्च किया. ऐसा नहीं है कि 1975 तक इसरो ने रॉकेट इंजन विकसित करने के बारे में नहीं सोचा था. काम शुरू हो गया था और इसने 1963 में तिरुवनंतपुरम के थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) से पहला साउंडिंग रॉकेट लॉन्च किया था. 


इसरो ने फिर 1979 में रोहिणी साउंडिंग रॉकेट लॉन्च किया. हमें भास्कर लॉन्च करने के लिए एक बार मॉस्को की मदद लेनी पड़ी. अमेरिका और सोवियत संघ में शीत युद्ध के बढ़ने के बाद भारत को अपनी क्षमता बढ़ाने और दूसरों देशों पर निर्भरता कम करने के लिए लॉन्च करने की जगह की जरूरत महसूस हुई. इसके साथ ही सफर बढ़ता गया. 


इसरो ने 29 सितंबर, 1997 को पीएसएलवी (Polar Satellite Launch Vehicle- PSLV) का पहला ऑपरेशनल लॉन्च किया. ये एक पूरी तरह से स्वदेशी रॉकेट था, जिसने आईआरएस-1 डी सैटेलाइट को ऑबिर्ट में स्थापित किया. इसके बाद जो हुआ बाकी सब इतिहास है क्योंकि इसके बाद से हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 


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