ISRO Moon Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अध्यक्ष वी. नारायणन ने रविवार (16 मार्च) को घोषणा की कि केंद्र सरकार ने चंद्रयान-5 मिशन को मंजूरी दे दी है. ये मिशन चंद्रमा की सतह का गहराई से स्टडी करेगा और इस बार पहले से काफी भारी रोवर चंद्रमा पर भेजा जाएगा. उन्होंने ये जानकारी उस सम्मान समारोह में दी, जहां उन्हें इसरो प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालने के लिए सम्मानित किया गया.
नारायणन ने बताया कि चंद्रयान-3 मिशन में 25 किलोग्राम वजनी रोवर 'प्रज्ञान' भेजा गया था, लेकिन चंद्रयान-5 में 250 किलोग्राम वजनी रोवर चंद्रमा पर भेजा जाएगा. इस अपग्रेड से वैज्ञानिकों को चंद्रमा की सतह का ज्यादा विस्तृत और गहराई से अध्ययन करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा चंद्रयान-2 में लगे हाई-रिजॉल्यूशन कैमरे से अब भी सैकड़ों तस्वीरें मिल रही हैं, जो इसरो के आगामी मिशनों के लिए अहम डेटा उपलब्ध करा रही हैं.
चंद्रयान मिशनों की अब तक की यात्रा
भारत के चंद्रयान मिशन की शुरुआत 2008 में चंद्रयान-1 से हुई थी, जिसने चंद्रमा के खनिज और केमिकल विश्लेषण में अहम सफलता हासिल की थी. इसके बाद 2019 में लॉन्च हुए चंद्रयान-2 मिशन को लगभग 98% सफलता मिली थी. हालांकि अंतिम चरण में लैंडर विक्रम की लैंडिंग विफल रही, लेकिन इसके बाद 23 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल 'सॉफ्ट लैंडिंग' करके इतिहास रच दिया.
आने वाले सालों में और भी बड़े मिशन
नारायणन ने ये भी बताया कि चंद्रयान-4 मिशन 2027 में लॉन्च होने की उम्मीद है, जिसका मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह से नमूने इकट्ठा कर धरती पर लाना होगा. इसके अलावा इसरो मानव अंतरिक्ष मिशन 'गगनयान' और भारत के पहले स्वदेशी स्पेस स्टेशन 'भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन' की योजना पर भी तेजी से काम कर रहा है.
कैसे होगा चंद्रयान-4 मिशन का संचालन?
सितंबर 2024 में केंद्र सरकार ने चंद्रयान-4 मिशन को मंजूरी दी थी जिस पर 2104 करोड़ रुपए की लागत आएगी. इस मिशन के तहत पांच अलग-अलग मॉड्यूल होंगे, जिनमें एसेंडर, डिसेंडर, प्रपल्शन, ट्रांसफर और री-एंट्री मॉड्यूल शामिल हैं. इसके संचालन के लिए दो अलग-अलग रॉकेट – हैवी-लिफ्टर LVM-3 और PSLV का इस्तेमाल किया जाएगा. ये मिशन चंद्रमा से पहली बार सैंपल लाने की भारत की महत्वाकांक्षी योजना का हिस्सा है.
भारत की अंतरिक्ष खोज में नया अध्याय
चंद्रयान-5 मिशन भारत की अंतरिक्ष खोज में एक नया मील का पत्थर साबित हो सकता है. 250 किलो का ये रोवर चंद्रमा की सतह पर ज्यादा विस्तृत प्रयोग करेगा और अहम वैज्ञानिक डेटा उपलब्ध कराएगा. इस मिशन से न केवल भारत की वैज्ञानिक क्षमता मजबूत होगी बल्कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की भूमिका और भी प्रभावी होगी.