अंतरिक्ष में भारत की बड़ी उड़ान: चंद्रयान-2 को लेकर रॉकेट बाहुबली ने भरी उड़ान, जानें इसकी खासियतें
जीएसएलवी मार्क 3 एम1 जैसे ही आकाश की ओर बढ़ा भारत ने नया इतिहास रच दिया. जीएसएलवी भारत में अब तक बना सबसे शक्तिशाली रॉकेट है इसीलिए इसे बाहुबली रॉकेट भी कहा जाता है.
श्रीहरिकोटा: भारत के लिए आज ऐतिहासिक दिन है. आज मिशन चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग हुई है. 11 साल बाद इसरो दोबारा चांद पर भारत का झंडा फतेह करने के लिए मिशन पर है. सब कुछ ठीक रहा तो भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन जाएगा जो चांद की दक्षिणी सतह पर उतरेगा. यह वह अंधेरा हिस्सा है जहां उतरने का किसी देश ने साहस नहीं किया है. यह भारत का दूसरा चांद मिशन है. इससे पहले 2008 में चंद्रयान-1 को भेजा गया था.
आपको बता दें कि ये लॉन्चिंग पहले 15 जुलाई को होनी थी, लेकिन आखिरी मौके पर कुछ तकनीकी खामी सामने आने के बाद लॉन्चिंग टाल दी गई.
जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल यानी जीएसएलवी मार्क 3 एम1 जैसे ही आकाश की ओर बढ़ा, भारत ने इतिहास रच दिया. जीएसएलवी भारत में अब तक बना सबसे शक्तिशाली रॉकेट है इसीलिए इसे बाहुबली रॉकेट भी कहा जाता है. यह रॉकेट चंद्रयान-2 को चंद्रमा की कक्षा तक ले जाएगा.
जानें इस मिशन की खासियतें:
चंद्रयान 2 मिशन अपने साथ भारत के 13 पेलोड और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का भी एक उपकरण लेकर जाएगा. 13 भारतीय पेलोड में से ओर्बिटर पर आठ, लैंडर पर तीन और रोवर पर दो पेलोड और नासा का एक पैसिव एक्सपेरीमेंट (उपरकण) होगा. इस मिशन का कुल वजन 3.8 टन होगा. यान में तीन मॉड्यूल होंगे, जिसमे ऑर्बिटर, लैंडर जिसका नाम विक्रम दिया गया है और रोवर जिसका नाम प्रज्ञान दिया गया है. चंद्रयान 2 को चांद तक पहुंचने में 48 दिन लगेंगे.
ऑर्बिटर: ऑर्बिटर चांद की सतह से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर चक्कर लगाएगा. साथ ही रोवर से मिला डेटा ऑर्बिटर लेकर मिशन सेंटर को भेजेगा. ऑर्बिटर में कुल आठ पेलोड होंगे.
ऑर्बिटर के पेलोड:
- टैरेन मैपिंग कैमरा- 2 जो कि सतह मैप लेगा.
- चंद्रयान 2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (CLASS)- चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच और मैपिंग के लिए.
- सोलार एक्सरे मॉनिटर (XSM) - चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच और मैपिंग के लिए.
- ऑर्बिटर हाई रिजॉल्यूशन कैमरा (OHRC) - सतह की मैपिंग के लिए.
- इमेजिंग इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS)- मिनेरोलॉजी मैपिंग यानी सतह पर मौजूद मिनरल्स की मैपिंग के लिए.
- डुअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार (DFSAR) - चांद की सतह के कुछ मीटर अंदर जिससे पानी का पता लगाया जा सके.
- चन्द्र एटमॉस्फियरिक कंपोजिशन एक्सप्लोरर 2 (CHACE-2) - चांद के सतह के ऊपर मौजूद पानी के मोलेक्यूल का पता लगाने के लिए.
- डुअल फ्रीक्वेंसी रेडियो साइंस (DFRS) - चांद के वातावरण को स्टडी करने के लिए.
लैंडर: लैंडर की चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी. लैंडर का नाम विक्रम है.
लैंडर विक्रम के पेलोड:
- रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बॉन्ड हाइपर सेंसिटिव आयनॉस्फेयर एंड एटमॉस्फियर (RAMBHA) लांगमुईर प्रोब (LP)
- चन्द्र सर्फेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट (Cha STE)
- सइंस्ट्रूमेंट फॉर लुनार सीस्मिक एक्टिविटी (ILSA). तीनों पेलोड लैंडिंग प्रॉपर्टीज है.
रोवर: रोवर लैंडर के अंदर ही मैकेनिकल तरीके से इंटरफेस किया गया है. यानी लैंडर के अंदर इन्हाउस रहेगा और चांद की सतह पर लैंडर के सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर प्रज्ञान अलग होगा और 14 से 15 दिन तक चांद की सतह पर चहलकदमी करेगा और चांद की सतह पर मौजूद सैंपल्स यानी मिट्टी और चट्टानों के नमूनों को एकत्रित कर उनका रसायन विश्लेषण करेगा और डेटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा. जहां से ऑर्बिटर डेटा को इसरो मिशन सेंटर भेजेगा.
रोवर के एक व्हील पर अहोक चक्र दूसरे व्हील पर इसरो का लो होगा. वहीं भारत का तिरंगा भी रोवर पर होगा. इससे पहले चंद्रयान 1 के वक़्त भी भारत का तिरंगा चांद पर भेजा गया था.
रोवर प्रज्ञान पेलोड:
- लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोमीटर (LIBS)
- अल्फा पार्टिकल एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS)
- दोनों पेलोड लैंडिंग साईट के आस पास के क्षेत्र को मैपिंग करने के लिए.
इसके अलावा नासा का एक पैसिव एक्सपेरिमेंट भी इस पेलोड का हिस्सा होगा. जिसे मिलाकर कुल 14 पेलोड हो जाते हैं. लेजर रेट्रो रिफ्लेक्टर अरेय (LRA) जो कि पृथ्वी और चांद के बीच गतिविज्ञान और चांद की सतह के भीतर मौजूद रहस्यों को जानने के लिए भेजा जाएगा.
चुनौतियां:
- चांद की सतह का सटीक आंकलन
- गहन अंतरिक्ष में संचार
- चांद की कक्षा में प्रवेश
- चांद सतह का असमान गुरुत्वाकर्षण बल
- सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती होगी
- चांद की सतह की धूल
- सतह का तापमान रोवर की राह में रोड़ा बन सकता है.
इसरो के मुताबिक, इस अभियान में जीएसएलवी मार्क 3 एम1 प्रक्षेपण यान का इस्तेमाल किया जाएगा. इसरो ने कहा कि रोवर चंद्रमा की सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग करेगा. लैंडर और ऑर्बिटर पर भी वैज्ञानिक प्रयोग के लिए उपकरण लगाये गये है. साथ ही भारत चंद्रमा पर उस जगह पर उतरने जा रहा है जहां कोई नहीं पहुंचा है. अर्थात चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर. इस क्षेत्र को अब तक खंगाला नहीं गया है.
एबीपी न्यूज से चेयरमैन के सीवन ने बताया कि इस सतह पर कई रहस्य के खुलने की उम्मीद है साथ ही लैंडिंग के लिए सही जगह देखकर चुना गया है. वैज्ञानिक प्रयोग के लिहाज से यह क्षेत्र अहम कहा जा सकता है.
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