नई दिल्लीः भारत का चंद्रयान 2 सपनों के पंख लगा कर लगातार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है. इस बीच शुक्रवार की शाम को चंद्रयान 2 मिशन अपना एक और पड़ाव पूरा करेगा जहां चंद्रयान 2 मिशन चंद्रमा की चौथी कक्षा में प्रवेश करेगा. इससे पहले चंद्रयान 2 मिशन ने कक्षा का सफर 21 अगस्त, 28 अगस्त को तय किया था. बता दे कि 2 सितंबर को ऑर्बिट लैंडर से अलग होगा. इससे पहले चंद्रयान 2 मिशन लगातार चंद्रमा की कक्षा का सफर कर रहा है. यानी चंद्रयान दो मिशन को इन मनोवर के जरिए चांद के और करीब लाया जा रहा है.
एक मनोवर 21 अगस्त को हुआ था, दूसरा 28 अगस्त को, तीसरा आज यानी 30 अगस्त को और चौथा 1 सितम्बर को होगा. ऑर्बिटर को हजारों किलोमीटर की दूरी से कम कर के 100 किलोमीटर तक लाया जाएगा. यानी चांद के सतह से 100 किलोमीटर की दूरी तक लाया जाएगा. जिसके बाद 2 सितंबर को लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जायेगा और फिर सारा ध्यान लेंडर पर केंद्रित हो जायेगा. 3 सितम्बर को ट्रायल ऑर्बिटर मनुवर होगा, 3 सेकण्ड का, जहां लैंडर के सिस्टम चैक करेंगे. 4 सितम्बर को असली डी ऑर्बिट होगा करीब 6 सेकंड्स का. लैंडर चांद के 100*30 किलोमीटर ऑर्बिट में लाया जाएगा. इसके अगले 2 दिन तक सभी उपकरणों की जांच होगी. 7 सितम्बर की सुबह 1 बजकर 55 मिनिट पर लैंडर की चांद पर लैंडिंग होगी.
बताते हैं अब तक का सफ़र:
मिशन के प्रक्षेपण यानी 22 जुलाई के बाद से 23 दिनों तक चंद्रयान 2 पृथ्वी की कक्षा में परिक्रमा करते हुए चंद्रमा की ओर बढ़ता रहा.
23वें दिन यानी 14 अगस्त को चंद्रयान को पृथ्वी की कक्षा से चन्द्र की ओर भेजा गया. इस प्रक्रिया को "ट्रांस लुनर इंसर्शन (Trans Lunar Insertion) कहते हैं.
23वें दिन से 30वें दिन तक यह चंद्रयान चन्द्र की ओर अग्रसर हो रहा था. जिसे "Lunar Transfer Trajectory" कहते हैं.
30 वें दिन 20 अगस्त को चंद्रयान चन्द्र की कक्षा में प्रवेश कर गया. 31 वें दिन 21 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा का सफर तय कर दूसरी कक्षा में पहुंचा. 38 वें दिन 28 को तीसरी कक्षा में प्रवेश किया. 40 वें दिन 30 अगस्त को चौथी और 41 वें दिन यानी 1 सितंबर को पांचवीं कक्षा में प्रवेश करेगा.
अब तक यह सफर इसरो के लिए चुनौतीपूर्ण रहा लेकिन सारी चुनौतियों को पार कर चंद्रयान 2 चन्द्र की कक्षा में प्रवेश कर लगातार मनुवर यानी परिक्रमा कर रहा है.अब सफलता के महज चंद कदम की दूरी पर है. उनमें से सबसे चुनौतीपूर्ण है सॉफ्ट लैंडिंग. यह सॉफ्ट लैंडिंग 7 सितंबर को सुबह 1.55 को होगी.
चंद्रयान 1 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर ऑट मंगल मिशन में अहम भूमिका निभा चुके इसरो के वैज्ञानिक डॉ मयिलसामी अन्नादुरै बताते है कि आखिर किस तरह किसी भी मिशन के लैंडिंग का समय तय होता है!
वैज्ञानिक डॉ मयिलसामी अन्नादुरै
दरअसल किसी भी मिशन को एक तय ऑर्बिट यानी कक्षा तक लाने के लिए उसकी परिक्रमा कराई जाती है. चंद्रयान 2 मिशन में भी ऑर्बिटर को उसकी कक्षा में छोड़ने के लिए चांद की सतह से 100 किलोमीटर की दूरी पर लाया जाएगा. जहां ऑर्बिटर अपनी कक्षा में काम करता रहेगा और आगे के सफर के लिए लैंडर को अलग करेगा.
आगे का सफर क्या होगा?
कुल 4 मनुवर होंगे एक 21 अगस्त, दूसरा 28 अगस्त को, तीसरा 30 अगस्त को और चौथा 1 सितम्बर के बाद, ऑर्बिटर को चांद की सतह से 100 KM तक की दूरी पर लाया जाएगा. जिसके बाद 2 सितंबर को लैंडर ऑर्बिटर से अलग हो जायेगा और फिर सारा ध्यान लेंडर पर केंद्रित हो जायेगा. ऑर्बिटर अपनी कक्षा में परिक्रमा करता रहेगा.
3 सितम्बर को 3 सेकंड का ट्रायल ऑर्बिट मनुवर होगा जहां लैंडर के सिस्टम चैक करेंगे. 4 सितम्बर को असली डी ऑर्बिट होगा करीब 6 सेकंड्स का. लैंडर चांद के 100*30 किलोमीटर ऑर्बिट में लाया जाएगा. इस ऑर्बिट में आने के साथ ही इसे सॉफ्ट लैंडिंग के लिए भेजा जाएगा. जहां लैंडर अपने अंदर मौजूद सिस्टम्स का उपयोग कर चांद की सतह की जगह को स्कैन करेगा जिसके बाद सही स्थान परख कर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रोसेस शुरू होगा. यहां सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान जिस गति के साथ यह लैंडिंग कराई जाएगी इससे यह ज़रूर कह सकते हैं कि टच डाउन के दौरान करीब 15 मिनट बहुत ही ज्यादा दहशती होगी. जहां चांद पर मौजूद धूल मिट्टी उड़ने लगेगी और यहीं सबसे बड़ी चुनौती होगी क्योंकि इस दौरान धूल मिट्टी लैंडर पर मौजूद सोलर पैनल पर भी जम सकती है. साथ ही चांद का तापमान भी उस दौरान बहुत ही बड़ी चुनौती होगा.
डॉ मयिलसामी अन्नादुरै बताते हैं कि जिस दौरान चंद्रयान मिशन परिक्रमा करेगा तब तापमान काफी ठंडा रहेगा और अचानक से उसे नॉर्मल तापमान में पहुंचाना चुनौतियों से भरा रहेगा.
वैज्ञानिक डॉ मयिलसामी अन्नादुरै
सॉफ्ट लैंडिंग से 2 दिन पहले तक सभी उपकरणों की जाँच होगी. 7 सितम्बर की सुबह 1 बजकर 55 मिनिट पर लैंडर की चांद पर लैंडिंग होगी जिसके दो घंटे बाद टच डाउन होगा. करीब 3 घंटे के करीब सोलर पैनल डिप्लॉय किए जाएंगे और चौथे घंटे में रोवर सतह को टच करेगा. यानी लैंडर से निकलकर चांद की सतह को छुएगा.
इसरो के चेयरमैन के सिवन ने कहा है कि सफल लैंडिंग का इतिहास सिर्फ 37 फीसदी है, लेकिन हमें पूरा भरोसा है कि हमें सफलता मिलेगी क्योंकि हमने कड़ी मेहनत की है. बढ़िया तैयारी की है. सारे सिमुलेशन्स को सही तरीके से पूरा किया, जो भी मानवीय तरीके से सम्भव हैं हमने सबकुछ किया है इसीलिए हमें भरोसा है कि हमारा मिशन कामयाब होगा.
डॉ के सीवन
दरसअल अब तक चांद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग केवल तीन देशों की हुई है. यूएस, रूस और चीन. ऐसे में भारत इस सफलता के साथ ही चौथा देश बन जाएगा जो कि चांद की सतह को छुएगा. साथ ही चांद के दक्षिणी हिस्से को छूने वाला पहला देश बन जाएगा. क्योंकि भारत चांद के उस हिस्से पर पहुंच रहा है जहां अब तक कोई भी देश नहीं पहुंचा.
भारत का चांद मिशन अब महज चंद कदम की दूरी पर है. जैसे ही 7 सितंबर को चंद्रयान-2 चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर लैंड करेगा. इसी के साथ भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक और नया इतिहास रच देगा.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने अपने सबसे अहम मिशन चंद्रयान 2 को चांद की सतह पर भेजने के लिए 22 जुलाई को श्रीहरिकोटा से जीएसएलवी मार्क 3 रॉकेट से प्रक्षेपित किया था. चंद्रयान 1 मिशन के 11 साल बाद इसरो ने दोबारा चांद पर भारत का झंडा फतेह करने के लिए चंद्रयान 2 भेजा है. चंद्रयान - 2 पिछले चंद्रयान - 1 मिशन का उन्नत संस्करण है. चंद्रयान - 1 अभियान करीब 11 साल पहले अक्टूबर 2008 को किया गया था जिसमें पेलोड 11 थे. 5 भारत के, 3 यूरोप के, 2 अमेरिका और 1 बल्गेरिया का जिसने चांद की सतह पर पानी का पता लगाया था.
चंद्रयान 2 मिशन अपने साथ भारत के 13 पेलोड और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का भी एक उपकरण लेकर गया है.
13 भारतीय पेलोड में से ओर्बिटर पर आठ, लैंडर पर तीन और रोवर पर दो पेलोड और नासा का एक पैसिव एक्सपेरीमेंट (उपरकण) मौजूद है. इस मिशन का कुल वजन 3.8 टन था. यान में तीन मॉड्यूल है, जिसमे ऑर्बिटर, लैंडर जिसका नाम विक्रम दिया गया है और रोवर जिसका नाम प्रज्ञान दिया गया है.
ऑर्बिटर: ऑर्बिटर चांद की सतह से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर चक्कर लगाएगा. साथ ही रोवर से मिला डेटा ऑर्बिटर लेकर मिशन सेंटर को भेजेगा.ऑर्बिटर में कुल आठ पेलोड होंगे.
ऑर्बिटर के पेलोड:
1) टैरेन मैपिंग कैमरा - 2 जो कि सतह मैप लेगा.
2) चंद्रयान 2 लार्ज एरिया सॉफ्ट एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (CLASS) - चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच और मैपिंग के लिए
3) सोलार एक्सरे मॉनिटर (XSM) - चांद की सतह पर मौजूद तत्वों की जांच और मैपिंग के लिए
4) ऑर्बिटर हाई रिजॉल्यूशन कैमरा (OHRC) - सतह की मैपिंग के लिए
5) इमेजिंग इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर (IIRS) - मिनेरोलॉजी मैपिंग यानी सतह पर मौजूद मिनरल्स की मैपिंग के लिए.
6) डुअल फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार (DFSAR) - चांद की सतह के कुछ मीटर अंदर जिससे पानी का पता लगाया जा सके.
7) चन्द्र एटमॉस्फियरिक कंपोजिशन एक्सप्लोरर 2 (CHACE-2) - चांद के सतह के ऊपर मौजूद पानी के मोलेक्यूल का पता लगाने के लिए.
8) डुअल फ्रीक्वेंसी रेडियो साइंस (DFRS) - चांद के वातावरण को स्टडी करने के लिए.
लैंडर: लैंडर की चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई जाएगी. लैंडर का नाम विक्रम रखा गया है.
लैंडर विक्रम के पेलोड:
1) रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बॉन्ड हाइपर सेंसिटिव आयनॉस्फेयर एंड एटमॉस्फियर (RAMBHA) लांगमुईर प्रोब (LP)
2) चन्द्र सर्फेस थर्मो फिजिकल एक्सपेरिमेंट (ChaSTE)
3) इंस्ट्रूमेंट फॉर लुनार सीस्मिक एक्टिविटी (ILSA)
तीनो पेलोड लैंडिंग प्रॉपर्टीज है.
रोवर: रोवर लैंडर के अंदर ही मैकेनिकल तरीके से इंटरफेस किया गया है यानी लैंडर के अंदर इन्हाउस है और चांद की सतह पर लैंडर के सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर प्रज्ञान अलग होगा और 14 से 15 दिन तक चांद की सतह पर चहलकदमी करेगा और चांद की सतह पर मौजूद सैंपल्स यानी मिट्टी और चट्टानों के नमूनों को एकत्रित कर उनका रसायन विश्लेषण करेगा और डेटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा. जहां से ऑर्बिटर डेटा को इसरो मिशन सेंटर भेजेगा.
रोवर के एक व्हील पर अशोक चक्र और दूसरे व्हील पर इसरो का लोगो है. वहीं भारत का तिरंगा भी रोवर पर मौजूद है. इससे पहले चंद्रयान 1 के वक़्त भी भारत का तिरंगा चांद पर भेजा गया था।
प्रज्ञान (रोवर) पेलोड:
लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोमीटर (LIBS)
अल्फा पार्टिकल एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS)
दोनो पेलोड लैंडिंग साईट के आस पास के क्षेत्र को मैपिंग करने के लिए.
इसके अलावा नासा का एक पैसिव एक्सपेरिमेंट भी इस पेलोड का हिस्सा होगा जिसे मिलाकर कुल 14 पेलोड हो जाते हैं. लेजर रेट्रो रिफ्लेक्टर अरेय (LRA) जो कि पृथ्वी और चांद के बीच गतिविज्ञान और चांद की सतह के भीतर मौजूद रहस्यों को जानने के लिए भेजा जाएगा.
आगे की चुनौतियां:
चांद की सतह का सटीक आंकलन
चांद सतह का असमान गुरुत्वाकर्षण बल
सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती होगी
चांद की सतह की धूल
सतह का तापमान रोवर की राह में रोड़ा बन सकता है।
चांद के इस भाग पर अब तक कोई देश नहीं पहुंचा:
भारत चंद्रमा के उस जगह पर उतरने जा रहा है जहां कोई नहीं पहुंचा है - अर्थात चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर. इस क्षेत्र को अब तक खंगाला नहीं गया है. एबीपी न्यूज से इसरो के चेयरमैन के सीवन ने बताया कि इस सतह पर कई रहस्य के खुलने की उम्मीद है साथ ही लैंडिंग के लिए सही जगह देखकर चुना गया है. वैज्ञानिक प्रयोग के लिहाज से यह क्षेत्र अहम कहा जा सकता है.
इस मिशन के साथ भारत जहां फिर एक बार कई रहस्यों को खंगालेगा वहीं खास बात यह भी कि इस मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर और मिशन डायरेक्टर दोनो महिलाएं है जो कि दिखाता है कि किस तरह भारत में अंतरिक्ष तक महिला शक्ति आगे बढ़ रही है. इतना ही नहीं इस मिशन टीम में 30 फीसदी महिलाएं है.
साफ है कि भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचकर पहला देश बनने जा रहा है जहां अब तक कोई भी नहीं पहुंचा. भारत की सफलता के साथ ही अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत अपना एक और परचम लहराने जा रहा है. वह दिन दूर नहीं जब इसरो के वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाएगी और हर भारतीय को गौरवान्वित करेगी.