Sharda Chhari Mubarak Yatra: वार्षिक शारदा यात्रा (Sharda Yatra) को चिह्नित करने के लिए कश्मीरी पंडितों के एक ग्रुप ने कुपवाड़ा में नियंत्रण रेखा के पास अंतिम बिंदु के श्वेत-रेखा तक पहली चर्री मुबारक यात्रा की. ऐतिहासिक हिंदू तीर्थयात्रा को फिर से शुरू करने के लिए संघर्ष कर रही सेव शारदा समिति (Save sharda Committee) बंद हो चुकी शारदा यात्रा की याद में प्रतीकात्मक यात्रा का आयोजन किया गया था.


पीओके(POK) से भी कई लोगों ने अपनी तरफ के एलओसी (LOC) पर आकर इसमें हिस्सा लिया. इस दिन यानी 5 सितंबर को वार्षिक यात्रा के रूप में चिह्नित किया जाता जिसे कि 1948 में जम्मू-कश्मीर के आदिवासी आक्रमण के बाद रोक दिया गया था.


यह कार्यक्रम तीतवाल में निर्माणाधीन शारदा मंदिर में पूजा के साथ शुरू होता फिर इसके बाद टीटवाल में किशनगंगा और काजीनाग नदियों के संगम पर पवित्र स्नान होता है.


यात्रा में कितने लोगों ने हिस्सा लिया?
इसके बाद शारदा मंदिर से क्रासिंग ब्रिज तक की यात्रा में सभी धर्मों के लगभग 150 लोगों ने भाग लिया. शारदा बचाओ समिति के सदस्यों ने सैकड़ों लोगों के साथ एलओसी के अंतिम गांव में इसमें हिस्सा लिया जो कि विभाजन के बाद पहली बार हुआ. कार्यक्रम का नेतृत्व रविंदर पंडिता प्रमुख और संस्थापक सेव शारदा समिति कश्मीर ने किया. राष्ट्रीय समानता दल के नेतृत्व में नियंत्रण रेखा के पार से शारदा मिशन के लगभग 50 अनुयायी यात्रा का स्वागत करने के लिए चिल्हाना में पुल के पार एकत्र हुए.


पिछले साल भी एलओसी पर लोग हुए थे इकट्ठा 
पिछले साल भी एलओसी के पार से बड़ी संख्या में लोग शारदा समिति के सदस्यों के स्वागत के लिए चिल्हाना टीसीपी पर इकट्ठे हुए थे. क्रॉस एलओसी विरासत और धार्मिक पर्यटन की मांग को दोहराते हुए रविंदर पंडिता ने भारत और पाकिस्तान दोनों पर एलओसी पार तीर्थयात्राओं को शामिल करने के लिए मौजूदा एलओसी परमिट नियमों में संशोधन लाने पर जोर दिया.


यात्री नियंत्रण रेखा के पार तीर्थयात्रा के स्थानों को दिखाने के लिए शारदा पीठ और दरगाह हजरत बल को दर्शाने वाला एक बैनर लेकर चल रहे थे. एलओसी पार से समर्थकों ने शारदा पीठ को फिर से खोलने के समर्थन में नारेबाजी की.


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