Bharat Ratna Award 2024: कर्पूरी ठाकुर और लाल कृष्ण आडवाणी के बाद अब भारत सरकार ने चौधरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव और स्वामीनाथन को भी भारत रत्न देने की घोषणा की है. ऐसा पहली बार है जब एक साल में इतने लोगों को भारत रत्न पुरस्कार दिया जा रहा है. यहां हम आपको बताएंगे चौधरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव और स्वामीनाथन के योगदान के बारे में.


1. चौधरी चरण सिंह


पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पहचान एक किसान नेता के रूप में ही होती है. वह खुद भी किसान नेता और सामाजिक कार्यकर्ता कहलाना पसंद करते थे. भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चरण सिंह ने किसानों की आवाज हमेशा बुलंद की. वह सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखते थे. भूमि हदबंदी कानून उनके कार्यकाल की प्रमुख‍ उपलब्धि है. इनका जन्म 23 दिसंबर 1902 को ग्राम नूरपुर जिला मेरठ (उत्तरप्रदेश) में हुआ था. आजादी से पहले के उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह छत्रवाली विधानसभा सीट से 9 वर्ष तक चुनाव जीतते रहे. देश की आजादी के बाद 1952, 1962 और 1967 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में वह फिर से जीते. डॉ. संपूर्णानंद जब मुख्यमंत्री बने तो उनकी सरकार में 1952 में उन्हें राजस्व व कृषि विभाग की जिम्मेदारी दी गई.


1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह और कृषि मंत्रालय का प्रभार मिला. चौधरी चरण सिंह दो बार यूपी के सीएम रहे. उनका पहला कार्यकाल 3 अप्रैल 1967 से 25 फरवरी 1968 तक रहा, जबकि दूसरा कार्यकाल 18 फरवरी 1970 से 1 अक्टूबर 1970 तक रहा. वह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक प्रधानमंत्री रहे. इनका कार्यकाल पांच महीने का रहा. चौधरी चरण सिंह का निधन 29 मई 1987 को हुआ था. कृषक समुदायों के साथ उनके आजीवन जुड़ाव के कारण नई दिल्ली में उनके स्मारक का नाम किसान घाट रखा गया था.


2. पी.वी. नरसिम्हा राव


पी.वी. नरसिम्हा राव को आर्थिक सुधारों के जनक के रूप में याद किया जाता है. वह 1991 से 1996 तक भारत के 9वें प्रधानमंत्री रहे. इनका जन्म 28 जून 1921 को करीमनगर में हुआ था. उस्मानिया विश्वविद्यालय मुंबई विश्वविद्यालय एवं नागपुर विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी की. पेशे से कृषि विशेषज्ञ एवं वकील श्री राव राजनीति में आए. आंध्र प्रदेश सरकार में वह 1962 से 64 तक कानून एवं सूचना मंत्री रहे. इसके बाद 1964 से 67 तक कानून एवं विधि मंत्री रहे. 1967 में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री बनाया गया. 1968 से 1971 तक शिक्षा मंत्री रहे. 1971 से 73 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद 1975 से 76 तक अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महासचिव रहे. 1968 से 74 तक आंध्र प्रदेश के तेलुगू अकादमी के अध्यक्ष का पद भी संभाला. 1957 से 1977 तक आंध्र प्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे. 1977 से 84 तक लोकसभा के सदस्य रहे. दिसंबर 1984 में रामटेक से आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए. 14 जनवरी 1980 से 18 जुलाई 1984 तक विदेश मंत्री रहे. 19 जुलाई 1984 से 31 दिसंबर 1984 तक इन्होंने केंद्र में गृह मंत्री की जिम्मेदारी निभाई. 31 दिसंबर 1984 से 25 सितम्बर 1985 तक इन्हें रक्षा मंत्री का चार्ज दिया गया. 25 सितम्बर 1985 से उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री चुने गए. पीवी नरसिम्हा राव भारतीय दर्शन एवं संस्कृति, कथा साहित्य एवं राजनीतिक टिप्पणी लिखने, भाषाएं सीखने, तेलुगू एवं हिंदी में कविताएं लिखने एवं साहित्य में विशेष रुचि रखते थे.


3. एमएस. स्वामीनाथन


कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथ का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी में 1925 में हुआ था. स्वामीनाथन 11 साल के ही थे जब उनके पिता की मौत हो गई. उनके बड़े भाई ने उन्हें पढ़ा-लिखाकर बड़ा किया. एम.एस. स्वामीनाथन को भारत की हरित क्रांति का जनक कहा जाता है. स्वामीनाथन की कृषि में बहुत रुचि थी. उन्होंने मद्रास एग्रीकल्चरल कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री ली थी. इसके अलावा उन्होंने 1949 में साइटोजेनेटिक्स में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की. उन्होंने आलू पर रिसर्च किया था. दरअसल, एमएस स्वामीनाथन के परिवार वाले चाहते थे कि वह सिविल सर्विस में जाएं. परिवार के दबाव में आकर उन्होंने इसकी परीक्षा दी और भारतीय पुलिस सेवा में चुने भी गए. इसी दौरान उन्हें नीदरलैंड में आनुवंशिकी में यूनेस्को फेलोशिप के रूप में कृषि क्षेत्र में एक मौका मिला. इसके बाद स्वामीनाथन ने आईपीएस की नौकरी छोड़ दी और नीदरलैंड चले गए. 1954 में वह अपने देश लौटे और कृषि क्षेत्र में काम शुरू कर दिया.


एमएस स्वामीनाथन पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म की पहचान की. इस वजह से भारत में गेहूं उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई. इन्होंने देश को अकाल से उबारने और किसानों को मजबूत बनाने वाली नीति बनाने में उन्होंने अहम योगदान निभाया था. उनकी अध्यक्षता में आयोग भी बनाया गया था जिसने किसानों की जिंदगी को सुधारने के लिए कई अहम सिफारिशें की थीं.


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