Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि चेक जारी करने या इसके बाउन्स होने के संबंध में किसी कंपनी के निदेशकों को केवल उनके पदनाम के कारण निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स (एनआई) कानून के तहत आपराधिक कार्यवाही में घसीटना न्यायिक व्यवस्था का उपहास उड़ाने जैसा होगा.


शीर्ष अदालत ने उन तीन लोगों के खिलाफ कथित चेक बाउन्स मामले में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए यह कहा, जो आरोपी कंपनी के स्वतंत्र, गैर-कार्यकारी निदेशक थे. शीर्ष अदालत ने तीनों दायर अपील को मंजूर करते हुए कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के सितंबर 2019 के आदेश को रद्द कर दिया गया है. जिसने एनआई कानून के प्रावधानों के तहत शिकायत के संबंध में बीरभूम में एक अदालत के समक्ष लंबित कार्यवाही को रद्द करने के लिए उनकी अर्जी को खारिज कर दिया था.


न्यायिक प्रावधानों के दायरे में नहीं आता कंपनी से जुड़ा हर व्यक्ति
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि कंपनी से जुड़ा प्रत्येक व्यक्ति एनआई कानून की धारा 141 के दायरे में नहीं आता है और फर्म के निदेशक, जो प्रासंगिक समय पर इसके प्रभारी या उसके व्यापार के लिये जिम्मेदार नहीं थे, वे उन प्रावधानों के तहत उत्तरदायी नहीं होंगे.


शीर्ष अदालत के पूर्व के फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि यह व्यवस्था दी गई थी कि एनआई कानून की धारा 138/141 के तहत दायित्व प्रासंगिक समय पर कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार होने के कारण उत्पन्न होता है, जब अपराध किया गया था, न कि केवल किसी कंपनी में पद या पद धारण करने के आधार पर. एनआई कानून की धारा 138 चेक बाउन्स होने से संबंधित है.


अपने फैसले में क्या बोली पीठ ?
पीठ ने 24 पन्ने के अपने फैसले में कहा कि चेक जारी करने या उसके बाउन्स होने के संबंध में एनआई कानून के तहत आपराधिक कार्यवाही में निदेशक (कार्मिक), निदेशक (मानव संसाधन विकास) जैसे निदेशकों को केवल उनके पदनाम के कारण घसीटना न्याय और इसकी प्रक्रिया का मजाक उड़ाने जैसा होगा.


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