Cheetah Death: मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में साउथ अफ्रीका से लाई गई मादा चीता ज्वाला के दो शावकों की गुरूवार (25 मई) को मौत हो गई है. ज्वाला के एक शावक की (23 मई) को मौत हो गई थी. मादा चीता ने करीब दो महीने पहले चार बच्चों को जन्म दिया था. यानि ज्वाला के चार बच्चों में से अब तक तीन बच्चों की मौत हो चुकी है. इससे पहले भी कूनो नेशनल में साउथ अफ्रीका से लाए गए तीन बड़े चीतों की मौत हो चुकी थी. ऐसे में कुल छह चीतों की अब तक मौत हो चुकी है.


शावकों की मौत पर साउथ अफ्रीका वाइल्डलाइफ स्पेशलिस्ट विंसेट वान डेर मर्व ने चिंता वयक्त की और कहा कि भारत को चीतों के दो से तीन निवास स्थलों पर बाड़ लगानी चाहिए, क्योंकि इतिहास में बिना बाड़ वाले अभयारण्य में चीतों को फिर से बसाए जाने के प्रयास कभी सफल नहीं हुए हैं. वान डेर मर्व ने बताया कि चीतों को फिर से बसाए जाने की परियोजना के दौरान आने वाले कुछ महीनों में तब और मौत होने की आशंका है, जब चीते कूनो नेशनल पार्क में अपने क्षेत्र स्थापित करने की कोशिश करेंगे और तेंदुओं, बाघों से उनका सामना होगा.


चीतों को फिर से बसाने के लिए प्रोजेक्ट किया गया है लागू


समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक इस परियोजना से निकटता से जुड़े वान डेर मर्व ने कहा कि हालांकि अभी तक चीतों की मौत की संख्या स्वीकार्य दायरे में है, लेकिन हाल में परियोजना की समीक्षा करने वाले विशेषज्ञों दल ने यह अपेक्षा नहीं की थी कि नर चीते मादा दक्षिण अफ्रीकी चीते से संबंध बनाते समय उसकी हत्या कर देंगे. खत्म घोषित किए जाने के 70 साल बाद भारत में चीतों को फिर से बसाने के लिए ‘प्रोजेक्ट चीता’ लागू किया गया है.


नामीबियाई चीतों में से एक साशा ने 27 मार्च को गुर्दे की बीमारी के कारण दम तोड़ दिया था, जबकि दक्षिण अफ्रीका से लाए गए एक अन्य चीते उदय की 23 अप्रैल को मौत हो गयी. वहीं, दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता दक्षा एक नर चीते से मिलन के प्रयास के दौरान हिंसक व्यवहार के कारण घायल हो गई थी और बाद में उसकी मौत हो गयी. इसके अलावा दो महीने के एक चीता शावक की 23 मई को मौत हो गई थी.


सिंक रिजर्व भरने के लिए बनाए जाएं सोर्स रिजर्व


वान डेर मर्व ने कहा कि अभी तक के इतिहास में बिना बाड़ वाले किसी भी अभयारण्य में चीतों को फिर से बसाए जाने की परियोजना सफल नहीं हुई है. दक्षिण अफ्रीका में 15 बार ऐसे प्रयास हुए हैं, जो हर बार असफल रहे हैं. हम इस बात की वकालत नहीं करेंगे कि भारत को अपने सभी चीता अभयारण्यों के चारों ओर बाड़ लगानी चाहिए. हम कह रहे हैं कि केवल दो या तीन में बाड़ लगाई जाए और ‘सिंक रिजर्व’ भरने के लिए ‘सोर्स रिजर्व’ बनाए जाएं.


‘सोर्स रिजर्व’ ऐसे निवास स्थल होते हैं, जो किसी विशेष प्रजाति की संख्या वृद्धि और अच्छी परिस्थितियां उपलब्ध कराते हैं. इन क्षेत्रों में उपयुक्त आवास और अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियां होती हैं. वहीं ‘सिंक रिजर्व’ ऐसे निवास स्थान होते हैं जहां सीमित पर्यावरणीय परिस्थितियां होती हैं और जो किसी प्रजाति के सर्वाइवल और रिप्रोडक्शन के लिए कम अनुकूल होती हैं. इसके अलावा ‘सोर्स रिजर्व’ की बढ़ी कुछ आबादी ‘सिंक रिजर्व’ में जाती है, तो ‘सिंक रिजर्व’ में अधिक समय तक आबादी बनी रह सकती है.


बुरी स्थिति आना अभी है बाकी


सुप्रीम कोर्ट ने भी मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में जगह की कमी पर चिंता व्यक्त की है और चीतों को अन्य नेशनल पार्को में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया है.यहां तक कि उच्चतम न्यायालय ने भी मध्य प्रदेश के कूनो अभयारण्य में जगह की कमी पर चिंता व्यक्त की है और चीतों को अन्य अभयारण्यों में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया है.उन्होंने अगले कुछ महीनों में कूनो अभयारण्य में और अधिक चीतों की मौत होने की आशंका जताई. चीते निश्चित रूप से अपने क्षेत्र स्थापित करना और अपने क्षेत्रों एवं मादा चीतों के लिए एक दूसरे के साथ लड़ना और एक दूसरे को मारना जारी रखेंगे.उनका तेंदुओं से आमना-सामना होगा. कूनो में अब बाघ घूम रहे हैं. मौत के मामले में सबसे बुरी स्थिति आना अभी बाकी है.


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