एबीपी न्यूज़ की खबर का असर, गायों की मौत के मामले में बीजेपी नेता गिरफ्तार!
गोशाला चलाने वाले हरीश वर्मा केवल 27 गायों के मरने की बात कह रहे हैं. हरीश वर्मा का कहना है कि उन्होंने गोसेवा आयोग को पहले ही लिख दिया था कि गोशाला में क्षमता से अधिक गायों को रखा गया है.
रायपुर: एबीपी न्यूज की खबर का असर हुआ है. छत्तीसगढ़ में गोशाला चलाने वाले बीजेपी नेता हरीश वर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया है. बता दें कि छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में बीजेपी नेता हरीश वर्मा के गोशाला में पिछले 10 दिनों में 100 से ज्यादा गायों की मौत हो गई. जबकि गांववालों का आरोप है कि पिछले 10 दिनों में 200 से अधिक गायों की मौत हुई है.
हरीश, शगुन गोशाला के नाम से इसे कई सालों से संचालित कर रहे हैं. जिस गोशाला में केवल 220 गायों को रखने की क्षमता है वहां 600 से अधिक गायों को रखा गया. जिसकी वजह से गायों को खाना और पानी नहीं मिल पा रहा था. जांच करने आये एसडीएम राजेश पात्रे भी गायों के मरने के पीछे की वजह उनका रख-रखाव सही से नहीं होना बता रहे हैं.
इस घटना के बाद अब गांव वाले बीजेपी नेता के विरोध में उतर आए हैं और गोशाला में पहुंचकर नारेबाजी कर रहे हैं. जबकि गोशाला चलाने वाले हरीश वर्मा केवल 27 गाय के मरने की बात कह रहे हैं. हरीश वर्मा का कहना है कि उन्होंने गोसेवा आयोग को पहले ही लिख दिया था कि गोशाला में क्षमता से अधिक गायों को रखा गया है लेकिन सरकार ने नहीं सुना. इतना ही नहीं वो सरकार पर अनुदान ना देने का भी आरोप लगा रहे हैं. जिसकी वजह से गायों को सही दाना पानी नहीं मिल पाया.
करीब एक किलोमीटर तक जेसीबी से गड्ढा खोदकर गायों को दफनाया गया है. इतना ही नहीं एक गड्ढे में चार से पांच गायों को दफनाया गया है. गांववालों का आरोप है कि कई दिनों से गायों की मौत का सिलसिला जारी है लेकिन संचालक बीजेपी का नेता है इस वजह से कोई ध्यान नहीं दे रहा था. अभी भी गोशाला में कई गायें मरी पड़ी हैं.
डॉक्टरों की टीम बीमार गायों का इलाज कर रही है. अधिकारियों का कहना है कि गायों को खाना ना मिलने से वो काफी कमजोर हो चुकी हैं. ऐसे में इन गायों को इलाज से बचाया जा सकता है इस पर भी कुछ नहीं कहा जा सकता है. गोशाला में मरी गायों का पोस्टमार्टम किया जा रहा है.
छत्तीसगढ़ में गायों की रक्षा के लिए गोसेवा आयोग है. गाय के लिए एम्बुलेंस चलाने की बात करने वाली सरकार अब गायों की मौत को ही नहीं रोक पा रही है. अब सवाल यह है कि गोरक्षा के नाम राजनीति करने वाले इस मामले में क्यों मौन हैं?