एक्सप्लोरर

Chhattisgarh Election: क्या छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता रहेगी बरकरार, टीएस सिंह देव से कैसे पार पाएंगे CM भूपेश बघेल, बीजेपी की भी है नज़र

Bhupesh vs TS Singh Deo: सीएम भूपेश बघेल से तनातनी के बीच टीएस सिंह देव के बयानों से जाहिर हो रहा है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले वे पार्टी में रहने या छोड़ने पर फैसला ले सकते हैं.

Chhattisgarh Election 2023: अभी फिलहाल एक ऐसे राज्य का नाम लेना हो, जहां कांग्रेस सबसे मजबूत स्थिति में है, तो ज्यादातर लोगों के जेहन में छत्तीसगढ़ का नाम आएगा.  जिन तीन राज्यों में कांग्रेस की अपने बलबूते सरकार है, छत्तीसगढ़ उनमें से एक है. बाकी दो राज्य राजस्थान और हिमाचल प्रदेश हैं. छत्तीसगढ़ और राजस्थान दोनों राज्यों में इसी साल विधानसभा चुनाव होना है.

छत्तीसगढ़ विधानसभा का कार्यकाल 3 जनवरी 2024 को खत्म हो रहा है. ऐसे में यहां मध्य प्रदेश के साथ नवंबर-दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीट है.  पिछली बार यहां नवंबर 2018 में चुनाव हुआ था. 11 दिसंबर को आए नतीजों में कांग्रेस ने  बीजेपी के डेढ़ दशक की बादशाहत को खत्म कर दिया था और छत्तीसगढ़ की सत्ता पर काबिज हुई. कांग्रेस नेता भूपेश बघेल 17 दिसंबर 2018 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने. 

चुनाव तैयारियों में जुटी हैं सभी पार्टियां

छत्तीसगढ़ में ऐसे तो मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी में ही है, लेकिन जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (JCC) कांग्रेस इन दोनों का खेल बिगाडने का माद्दा जरूर रखती है. 2023 में होने वाले चुनाव को लेकर कांग्रेस और बीजेपी जोर-शोर से तैयारियां में जुटी है. कांग्रेस के लिए सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है, तो बीजेपी के सामने अपने पुराने गढ़ को वापस पाने का टारगेट है. 

कांग्रेस के पास घर के भीतर ही है बड़ी चुनौती 

बीते 4 साल में सीएम भूपेश बघेल ने सूबे में कांग्रेस को लगातार मजबूत बनाया है और ये उपचुनाव के नतीजों से जाहिर भी होता है. भूपेश बघेल के सामने बीजेपी की चुनौती तो है ही, उससे भी बड़ी चुनौती खुद घर के अंदर ही है, जिनसे पार पा कर ही छत्तीसगढ़ में कांग्रेस दोबारा सत्ता पर काबिज हो सकती है.  राज्य के स्वास्थ्य मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता टीएस सिंह देव कांग्रेस और सीएम भूपेश बघेल दोनों के लिए मुश्किल बन सकते हैं. ये जगजाहिर है कि भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच हमेशा से मनमुटाव रहा है. 

टीएस सिंह देव ने दे दिया है संकेत!

हाल के दिनों में टीएस सिंह देव के बयानों से कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेता टीएस सिंह देव को लोग टीएस बाबा भी कहते हैं. हाल ही में टीएस बाबा ने बयान दिया था कि उनका आगामी चुनाव लड़ने का मन नहीं है. टीएस बाबा के इस बयान के राजनीतिक मायने हैं. ये बयान कांग्रेस और सीएम भूपेश बघेल के लिए चिंता बढ़ाने वाला बयान है. टीएस बाबा ने इस बयान के जरिए संकेत दे दिया है कि चुनाव से पहले उनका सियासी भविष्य कांग्रेस आलाकमान के रवैये पर निर्भर करेगा. 

2018 में टीएस बाबा ने तैयार किया था घोषणापत्र

2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत में भूपेश बघेल की तरह ही टीएस सिंह देव का भी महत्वपू्र्ण योगदान था.  टीएस बाबा कह चुके हैं कि वे चुनाव से पहले कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं. वे सरगुजा रियासत के राजा होने के साथ ही अंबिकापुर सीट से लगातार 3 बार से विधायक हैं. 2013 के चुनाव के बाद वे विधानसभा में नेता विपक्ष की भी जिम्मेदारी निभा चुके हैं. पिछली बार उन्होंने ही पार्टी का घोषणा पत्र तैयार किया था, जिसको आधार बनाकर कांग्रेस को ऐतिहासिक जीत मिली थी. 

सीएम भूपेश बघेल से रहा है 36 का आंकड़ा

छत्तीसगढ़ के सियासी गलियारों में इस पर बहस तेज हो गई है कि चुनाव से पहले कांग्रेस में फूट देखने को मिल सकता है. 2018 में जब कांग्रेस की सरकार बन रही थी, तो मुख्यमंत्री पद पर भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव दोनों ने दावेदारी की थी. हालांकि कांग्रेस हाईकमान की दखलंदाजी के बाद उस वक्त भूपेश बघेल के नाम पर सहमति बनी. उस वक्त ये कहा गया कि ढाई साल के बाद टीएस सिंह देव को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. लेकिन कांग्रेस हाईकमान की ओर से ढाई साल बीतने के बाद भी छत्तीसगढ़ के नेतृत्व में बदलाव नहीं किया गया. टीएस सिंह देव और उनके समर्थक कार्यकर्ता इस मुद्दे को लेकर लगातार मुखर भी रहे. टीएस बाबा और उनके समर्थकों ने दिल्ली तक डेरा डाला. इसके बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने भूपेश बघेल पर भरोसा कायम रखा. अब चुनाव  के नजदीक आते ही टीएस सिंह देव के मुख्यमंत्री नहीं बन पाने की टीस उनके बयानों से साफ झलक रही है. 

भूपेश बघेल झुकने के मूड में नहीं!

सीएम भूपेश बघेल गुटबाजी को लेकर सीधे बयान देने से बचते हैं, लेकिन उनके समर्थक मंत्री पलट कर बयान देने से पीछे नहीं हैं.  भूपेश बघेल सरकार में गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने टीएस सिंह देव के चुनाव नहीं लड़ने के बयान को ज्यादा तवज्जो नहीं देने की बात कही है. उन्होंने कहा है कि टीएस सिंह देव के चुनाव नहीं लड़ने से कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. ताम्रध्वज साहू सीएम भूपेश बघेल के करीबी माने जाते हैं. ऐसे में साहू के बयान से निष्कर्ष निकाला जा रहा है कि भूपेश बघेल टीएस बाबा के सामने झुकने के मूड में नहीं हैं. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम भी दावा कर रहे हैं कि इस बार पार्टी  के सामने कोई चुनौती नहीं है.  

टीएस सिंह देव पर बीजेपी की भी है नजर

टीएस सिंह देव के भूपेश बघेल और कांग्रेस हाईकमान से नाराजगी का फायदा बीजेपी उठाने की कोशिश में है. ऐसी भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि कांग्रेस के रवैये को देखते हुए टीएस बाबा चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. राज्य में बीजेपी के वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल ने कहा भी है कि टीएस सिंह देव की हैसियत मुख्यमंत्री के बराबर है और उन्हें अपना स्वाभिमान जगाकर सीएम भूपेश बघेल को सीधे चुनौती देनी चाहिए.

भूपेश बघेल ही होंगे कांग्रेस का चेहरा

ऐसा लग रहा है कि मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ही छत्तीसगढ़ में एक बार फिर से कांग्रेस का चेहरा होंगे. बीते 4 साल में उन्होंने सूबे में पार्टी को मजबूत भी किया है. कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के साथ भी उनके बेहतर रिश्ते हैं. हिमाचल प्रदेश में प्रचार का जिम्मा संभालकर उन्होंने कांग्रेस को सत्ता में लाने में कामयाबी भी दिलाई. हिमाचल की जीत से भूपेश बघेल का कद और बढ़ा है. 25 मई 2013 को सुकमा के झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में उस वक्त के राज्य के कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं की हत्या कर दी गई थी. इनमें प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरम शुक्ल समेत 30 से ज्यादा लोग शामिल थे. उस वक्त ऐसा लगा, जैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेताओं की पूरी पीढ़ी ही खत्म हो गई. ऐसे वक्त में भूपेश बघेल ने कड़ी मेहनत कर 5 साल के भीतर ही कांग्रेस को छत्तीसगढ़ की सत्ता पर बैठा दिया. भूपेश बघेल के जी-तोड़ मेहनत का ही नतीजा था कि 15 साल से सीएम रहने के बावजूद बीजेपी के दिग्गज नेता रमन सिंह की रणनीति भी काम नहीं आ सकी. पंजाब से नसीहत लेते हुए अब कांग्रेस छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदलने का जोखिम नहीं ले सकती. 
 
सत्ता छीनने के लिए बीजेपी भी है तैयार

विधानसभा चुनाव में अभी करीब 10 महीने से ज्यादा का वक्त बचा है. लेकिन बीजेपी ने अभी से ही छत्तीसगढ़ में अपने दिग्गज नेताओं को उतार दिया है. इसी कड़ी में 7 जनवरी को बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोरबा में जनसभा को संबोधित करते हुए हुंकार भरी.  उन्होंने अपने भाषण के जरिए इस बात के संकेत दे दिए कि आगामी चुनाव में बीजेपी सीएम भूपेश बघेल को मात देने के लिए किन मुद्दों को जोर-शोर से उठाने वाली है. इनमें भ्रष्टाचार और अपराध की घटनाओं में बढ़ोत्तरी, आदिवासियों की अनदेखी, आदिवासी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, आदिवासियों का धर्मांतरण और जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) फंड में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे शामिल हैं.  

बीजेपी के लिए आसान नहीं है राह

छत्तीसगढ़ में 2018 में हार के बाद बीजेपी अभी तक 4 प्रदेश अध्यक्ष, एक नेता प्रतिपक्ष और तीन प्रदेश प्रभारी बदल चुकी है. 2018 के बाद ओम माथुर वहां बीजेपी के प्रभारी बनने वाले तीसरे शख्स हैं. बीजेपी के लिए चिंता कि बात ये है कि विधानसभा उपचुनाव, नगरीय निकाय चुनाव, पंचायत चुनाव सभी में छत्तीसगढ़ के लोगों ने बीजेपी को नकारते हुए कांग्रेस पर ही भरोसा जताया था. आगामी चुनाव को देखते हुए ही अरुण साव को बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है 

बीजेपी किसे बनाएगी चुनाव का चेहरा?

छत्तीसगढ़ में 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन बार बीजेपी को जीत मिली थी. दिग्गज नेता रमन सिंह बीजेपी के इस जीत के अगुवा थे. वे लगातार तीन कार्यकाल में दिसंबर 2003 से दिसंबर 2018 तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे. हालांकि इस बार के चुनाव में पार्टी के लिए सीएम चेहरा कौन होगा, बीजेपी को इसका भी हल निकालना होगा. 70 साल के हो चुके रमन सिंह ही बीजेपी का चेहरा रहेंगे या फिर पार्टी उनके बजाय किसी और को मौका देगी, ये तो भविष्य में पता चलेगा. इतना जरूर है कि रमन सिंह का उत्तराधिकारी खोजना बीजेपी के लिए आसान नहीं है. बीजेपी के बड़े नेता अभी इस पर खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं. ऐसे रमन सिंह की मौजूदगी में ही ये बयान जरूर बड़े नेताओं की ओर से आ रहा है कि बीजेपी में हर कार्यकर्ता पार्टी का चेहरा है. ये बयान अपने आप में बहुत कुछ कह देता है. 

नए चेहरे को मौका देना नहीं होगा आसान

छत्तीसगढ़ में सीएम भूपेश बघेल बीते 4 साल में बेहद लोकप्रिय नेता बन चुके हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए उनके चेहरे के सामने किसी का नाम लेना फिलहाल इतना आसान नहीं दिखता है. इन 4 सालों में भूपेश बघेल ने खुद को 'छत्तीसगढ़ी छवि' से जोड़ दिया है और बीजेपी को इस छवि की काट खोजना होगा. छत्तीसगढ़ के लिए बीजेपी के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर भी यही कह रहे हैं कि ये संसदीय बोर्ड को तय करना है कि पार्टी किसी चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ेगी या बिना चेहरे के चुनावी दंगल में उतरेगी. ये सच्चाई है कि रमन सिंह को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी के पास फिलहाल भूपेश बघेल के कद का कोई नेता नहीं दिख रहा है. 

बीजेपी की ओबीसी के समर्थन पर नजर

छत्तीसगढ़ की आबादी में करीब 32 फीसदी अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के लोग हैं.  ओबीसी की आबादी 50 प्रतिशत से ज्यादा है.  इस वर्ग के वोट को साधने के लिए ही बीजेपी ने जनजाति नेता विष्णु देव साय की जगह बिलासपुर से लोक सभाा सांसद अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. माना जाता है कि ओबीसी पर मजबूत पकड़ की वजह से ही 2018 के चुनाव में कांग्रेस को भारी जीत मिली थी.  53 साल के अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बीजेपी एक तीर से दो निशान लगाना चाहती है. पहला ओबीसी के बीच पार्टी का जनाधार बढ़ाना चाहती है. इसके साथ ही बीजेपी छत्तीसगढ़ में नेताओं की नई पीढ़ी को आगे लाना चाहती है. अरुण साव साहू या तेली समुदाय से आते हैं. सूबे की आबादी में ये समुदाय करीब 15 फीसदी है. सीएम भूपेश बघेल ओबीसी के कुर्मी समुदाय से आते हैं. यहां की आबादी में कुर्मी समुदाय 7 से 8 फीसदी है. साहू समुदाय के लोग पूरे छत्तीसगढ़ में फैले हुए हैं, जबकि कुर्मी समुदाय के लोगों का प्रभाव ज्यादातर मध्य छत्तीसगढ़ और रायपुर के आस-पास के गांवों में है. 

आरक्षण के मुद्दे पर बढ़त लेने की कोशिश

विधानसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार आरक्षण के मुद्दे पर बढ़त बनाने की कोशिश में है.  दिसंबर 2022 के पहले हफ्ते में भूपेश बघेल सरकार ने आरक्षण बढ़ाने से जुड़े दो विधेयक विधानसभा से पारित करवाए. इसके जरिए राज्य में अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 4% आरक्षण का प्रावधान किया गया है. इससे अब छत्तीसगढ़ में आरक्षण बढ़कर 76 फीसदी हो जाएगा. हालांकि छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने आरक्षण से जुड़े इन विधेयकों पर अभी हस्ताक्षर नहीं किए हैं. कांग्रेस आरोप लगा रही है कि बीजेपी के दबाव में राज्यपाल मंजूरी नहीं दे रही हैं.  कांग्रेस को उम्मीद है कि आरक्षण बढ़ाने का फैसला आगामी विधानसभा चुनाव में उसके पक्ष में जाएगा. 

पेंशन योजना से कांग्रेस को मिलेगा लाभ

सीएम भूपेश बघेल ने हाल ही में पेंशन योजना को लेकर बड़ा फैसला लिया है. अप्रैल 2022 के बाद नियुक्त होने वाले सरकारी कर्मचारियों को अनिवार्य तौर से पुरानी पेंशन योजना का हिस्सा बनाने का फैसला किया गया है. इसके अलावा अप्रैल 2022 से पहले नियुक्त सरकारी कर्मचारियों को न्यू पेंशन स्कीम या पुरानी पेंशन योजना में बने रहने का विकल्प दिया है. इस फैसले से कांग्रेस ने राज्य सरकार के तहत आने वाले कर्मचारियों के वोट बैंक को साधने की कोशिश की है. 

छत्तीसगढ़ में धर्म परिवर्तन का मुद्दा

छत्तीसगढ़ चुनाव में इस बार धर्म परिवर्तन का मुद्दा भी रहेगा. अभी हाल ही में नारायणपुर में धर्मांतरण को लेकर हुए विवाद में हिंसा देखने को मिली थी. वहां के एसपी तक को लोगों ने जख्मी कर दिया था. बस्तर संभाग में आदिवासियों के दो समुदाय के बीच धर्मांतरण को लेकर तनातनी अब हिंसा का रूप ले चुकी है. बस्तर के 12 सीटों पर धर्मांतरण बड़ा मुद्दा रहेगा. इन सभी सीटों पर पिछली बार कांग्रेस को जीत मिली थी. बीजेपी आरोप लगाते रही है कि आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हो रहा है और कांग्रेस इस मामले में चुप्पी साधे हुई है. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएगा, बीजेपी इस मुद्दे पर भूपेश बघेल सरकार को घेरने के लिए और आक्रामक होते दिखेगी.  

2018 में कांग्रेस का ऐतिहासिक प्रदर्शन

2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी के डेढ़ दशक की बादशाहत को खत्म कर दिया था. कांग्रेस को तीन चौथाई से भी ज्यादा सीटें हासिल हुई थी. कांग्रेस 43 फीसदी वोट हासिल करते हुए 68 सीटों पर जीतने में कामयाब हुई. वहीं बीजेपी 33 फीसदी वोट के साथ सिर्फ 15 सीटें ही जीत पाई. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ को 5 और बसपा को 2 सीटों पर जीत मिली. रिकॉर्ड जीत दिलाने वाले दिग्गज नेता भूपेश बघेल की अगुवाई में वहां कांग्रेस की सरकार बनी. उपचुनाव में मिली जीत के बाद फिलहाल सूबे में कांग्रेस के पास 71 विधायक हैं और बीजेपी के पास सिर्फ 14 विधायक हैं. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के पास तीन विधायक और बहुजन समाज पार्टी के पास दो विधायक हैं.  

2003, 2008 और 2013 में बीजेपी की जीत

छत्तीसगढ़ 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से अलग होकर नया राज्य बना. उस वक्त कांग्रेस नेता अजित जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बनें. राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में पहली बार विधानसभा चुनाव 2003 में हुए. इस चुनाव में बीजेपी 50 सीट जीतकर बहुमत हासिल करने में कामयाब रही. कांग्रेस को 37 सीटें मिली. बीजेपी नेता रमन सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने. 2008 में हुए चुनाव में रमन सिंह बीजेपी की सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रहे. बीजेपी को इस बार भी 50 सीटों पर जीत मिली. वहीं कांग्रेस 38 सीट जीत पाई. 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी लगातार तीसरी बार बहुमत हासिल करने में सफल रही. बीजेपी को 49 और कांग्रेस को 39 सीटें मिली. रमन सिंह तीसरी बार मुख्यमंत्री बनें. 

लोकसभा चुनाव में बीजेपी पर जनता का भरोसा

2018 में विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद 4 महीने बाद ही हुए लोक सभा चुनाव में बीजेपी पर छत्तीसगढ़ की जनता ने भरोसा जताया. छत्तीसगढ़ में कुल 11 लोक सभा सीट है. 2019 में बीजेपी को इनमें से 9 सीटों पर जीत मिली और 2 सीट कांग्रेस के खाते में गई. बीजेपी को 50.70% वोट मिले. वहीं कांग्रेस को 40.91% वोट मिले. दोनों के बीच वोट शेयर में करीब 10 फीसदी का फासला था. नवंबर 2018 के विधान सभा चुनाव में भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच वोट शेयर में 10 फीसदी का ही फर्क था. हालांकि उस वक्त कांग्रेस को 10 फीसदी ज्यादा वोट मिले थे. 2019 के लोकसभा के आंकड़ों से बीजेपी को राहत मिल सकती है. 2014 में बीजेपी को छत्तीसगढ़ की 11 में से 10 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस को सिर्फ एक सीट ही हासिल हो पाया था.

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ बिगाड़ सकती है खेल

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ या जोगी कांग्रेस इस बार सूबे की सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. पार्टी की अध्यक्ष रेणु जोगी इस बारे में पहले ही एलान कर चुकी हैं. जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (JCC) पिछली बार  बसपा (BSP) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी.  तब जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ 5 और बसपा 2 सीटों पर जीती थी. इस बार ये पहला मौका होगा जब जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ अजित जोगी के बिना विधानसभा चुनाव लड़ेगी. 2018 में JCC को 7.6% वोट मिले थे. ये सच है कि 4 सालों में इस पार्टी की ताकत घटते गई है, लेकिन मैदानी इलाकों के कई सीटों पर ये पार्टी कांग्रेस और बीजेपी का खेल बिगाड़ सकती है. कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे अजित जोगी ने पार्टी से निकाले जाने के बाद जून 2016 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के नाम से नई पार्टी का गठन किया था.
 
आम आदमी पार्टी भी लड़ेगी चुनाव

इस बार छत्तीसगढ़ के सियासी पिच पर  अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी बैटिंग करने को तैयार है. कांग्रेस-बीजेपी के बीच की पारंपरिक लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने के लिए आम आदमी पार्टी जोर-शोर से जुटी है. उसके कार्यकर्ता आदिवासी मतदाताओं पर पकड़ बनाने के लिए गांव-गांव जाकर संपर्क साधने में जुटे हैं. पार्टी ने गांव-गांव में बूथ स्तर पर 20 हजार कार्यकर्ता तैयार कर लेने का दावा किया है. फिलहाल इस पार्टी का छत्तीसगढ़ में कोई जनाधार नहीं दिख रहा, लेकिन आप के उम्मीदवार चंद सीटों पर भी वोट काटने में सफल हुए, तो इससे कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए सीटों के समीकरण पर असर पड़ सकता है.
 
सरकार बदलने की नहीं रही है परंपरा

कांग्रेस इस बार चुनाव जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है. इस लिए चुनाव से एक साल पहले ही पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को संदेश दे दिया है कि 2018 के फॉर्मूले की तरह ही इस बार भी जिन लोगों को चुनाव लड़ना है, वे पार्टी सगंठन के महत्वपूर्ण पदों से अलग हो जाएं. छत्तीसगढ़ में हर 5 साल में सरकार बदलने का रिवाज नहीं है और कांग्रेस इसे अपने पक्ष में देख रही है. हालांकि सीएम भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच तनातनी और गुटबाजी से परंपरा बदल भी सकती है और बीजेपी इसका ही फायदा उठाने की ताक में है. कांग्रेस ने कुमारी शैलजा को प्रदेश प्रभारी बनाकर बघेल और टीएस बाबा की अंदरुनी कलह से निपटने की जिम्मेदारी सौंपी है. 

नए मतदाताओं पर भी होगी नजर

बीते 4 साल में छत्तीसगढ़ में करीब 9 लाख नए मतदाता बने हैं. इनमें से तीन लाख युवा मतदाता हैं, जो पहली बार वोट देंगे. फिलहाल छत्तीसगढ़ में मतदाताओं की संख्या  एक करोड़ 94 लाख, 54 हजार हो गई है. 2018 चुनाव के वक्त मतदाताओं की संख्या एक करोड़, 85 लाख, 45 हजार  थी. इन नए मतदाताओं पर बीजेपी और कांग्रेस की नजर होगी. 

ये भी पढ़ें:

Delhi LG VS CM Kejriwal: दिल्ली में हंगामा है क्यों बरपा, LG और केजरीवाल सरकार के बीच टकराव की क्या है मूल वजह, समझें कानूनी और सियासी पहलू

और देखें
Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

Benjamin Arrest Warrant: नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी, इंटरनेशनल कोर्ट में वॉर क्राइम का आरोप तय, कितनी मिलेगी सजा
नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी, इंटरनेशनल कोर्ट में वॉर क्राइम का आरोप तय, कितनी मिलेगी सजा
Fact Check: '1992 के दंगों में शामिल होना गलती थी माफ करो', उद्धव ठाकरे के नाम पर वायरल हो रहा पोस्ट, जानें क्या ही इसकी सच्चाई
'1992 के दंगों में शामिल होना गलती थी माफ करो', उद्धव ठाकरे के नाम पर वायरल हो रहा पोस्ट, जानें क्या ही इसकी सच्चाई
The Sabarmati Report BO Collection: विक्रांत मैसी की फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं दिखा पा रही दम, किया सिर्फ इतना कलेक्शन
विक्रांत मैसी की फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं दिखा पा रही दम, किया सिर्फ इतना कलेक्शन
KL Rahul IND vs AUS: केएल राहुल ने पर्थ में किया कारनामा, 3000 टेस्ट रन बनाकर अपने नाम किया रिकॉर्ड
राहुल ने पर्थ टेस्ट में भारत के लिए किया कारनामा, कई दिग्गज छूटे पीछे
Advertisement
ABP Premium

वीडियोज

Breaking News : Maharashtra Election से पहले नतीजे से पहले शिंदे गुट का बड़ा दावा!Exit Poll 2024 : Maharashtra Election के एग्जिट पोल में NDA को पूर्ण बहुमत मिल रहाBreaking News : दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले रेवड़ी पर चर्चा करेंगे Arvind KejriwalBreaking News : मतगणना को लेकर Uddhav Thackeray का उम्मीदवारों,कार्यकर्ताओं को खास निर्देश

फोटो गैलरी

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
Benjamin Arrest Warrant: नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी, इंटरनेशनल कोर्ट में वॉर क्राइम का आरोप तय, कितनी मिलेगी सजा
नेतन्याहू के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी, इंटरनेशनल कोर्ट में वॉर क्राइम का आरोप तय, कितनी मिलेगी सजा
Fact Check: '1992 के दंगों में शामिल होना गलती थी माफ करो', उद्धव ठाकरे के नाम पर वायरल हो रहा पोस्ट, जानें क्या ही इसकी सच्चाई
'1992 के दंगों में शामिल होना गलती थी माफ करो', उद्धव ठाकरे के नाम पर वायरल हो रहा पोस्ट, जानें क्या ही इसकी सच्चाई
The Sabarmati Report BO Collection: विक्रांत मैसी की फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं दिखा पा रही दम, किया सिर्फ इतना कलेक्शन
विक्रांत मैसी की फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं दिखा पा रही दम, किया सिर्फ इतना कलेक्शन
KL Rahul IND vs AUS: केएल राहुल ने पर्थ में किया कारनामा, 3000 टेस्ट रन बनाकर अपने नाम किया रिकॉर्ड
राहुल ने पर्थ टेस्ट में भारत के लिए किया कारनामा, कई दिग्गज छूटे पीछे
दस या बाहर महीने नहीं बल्कि सालों तक प्रेग्नेंट रहते हैं ये जानवर, जानकर नहीं होगा यकीन
दस या बाहर महीने नहीं बल्कि सालों तक प्रेग्नेंट रहते हैं ये जानवर, जानकर नहीं होगा यकीन
कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रखना है तो खाली पेट पिएं अदरक का जूस, जानें कितना और कब पीना है?
कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रखना है तो खाली पेट पिएं अदरक का जूस, जानें कितना और कब पीना है?
Myths Vs Facts: 11 से 14 साल की उम्र में ही होते हैं हर लड़की को पीरियड्स? जानें क्या है सच
11 से 14 साल की उम्र में ही होते हैं हर लड़की को पीरियड्स? जानें क्या है सच
जनजातीय गौरव दिवस  का आयोजन है आदिवासी अंचलों में सत्ताधारी दल की पहुंच की योजना
जनजातीय गौरव दिवस का आयोजन है आदिवासी अंचलों में सत्ताधारी दल की पहुंच की योजना
Embed widget