फर्जी मुठभेड़ः जांच में खुलासा- सुरक्षाबलों ने नक्सली समझ 17 आदिवासियों को मारी थी गोली
पुलिस ने भागते ग्रामीणों के पीठ पर गोली मारी. इस घटना में 7 बच्चे भी जवानों की गोलियों से मारे गए. साथ ही 10 ग्रामीण घायल भी हो गए. आदिवासियों की ओर से केस लड़ने वाली शालिनी बताती हैं कि जवानों ने ये फायरिंग सेल्फ डिफेंस में नहीं की थी.
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रायपुरः साल 2012 में छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में सीआरपीएफ और जिला पुलिस के जवानों ने एनकाउंटर में 17 लोगों की हत्या कर दी थी. इसका खुलासा न्यायिक जांच की रिपोर्ट आने के बाद हुआ है. तब पुलिस ने मारे गए सभी 17 लोगों को नक्सली बताया था. लेकिन, इस घटना के सात साल बाद अब इसकी रिपोर्ट सामने आई है. न्यायिक जांच में इस मुठभेड़ को फर्जी बताया गया है.
न्यायिक रिपोर्ट की मानें तो 28-29 जून 2012 की रात सुरक्षा बल की गोलियों से मारे गए सभी 17 आदिवासी निर्दोष थे. जिनमें 7 बच्चे भी शामिल थे.
क्या है पूरी कहानी, समझिए
28-29 जून की रात बीजापुर जिले के बासागुड़ा कैम्प से सीआरपीएफ और जिला पुलिस बल के जवान ऑपरेशन पर निकले. उन्हें जानकारी मिली थी कि कुछ किलोमीटर दूर नक्सली मौजूद हैं. रात के अंधेरे में ही सारकेगुड़ा गांव पहुंचे जवानों को बड़ी संख्या में ग्रामीण नजर आए.
जवानों ने नक्सली समझ उनपर फायरिंग शुरू कर दी. जवानों की ओर से की गई इस फायरिंग में 17 लोग मारे गए. जंगलों से लौट कर पुलिस ने इसे सफलता बताते हुए मुठभेड़ में 17 नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया.
कांग्रेस ने मुठभेड़ को बताया था फर्जी
उस दौरान मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और तब राज्य में विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने इस मुठभेड़ को फर्जी बताते हुए मारे गए सभी लोगों को निर्दोष ग्रामीण बताया. इस मामले की जांच के लिए एक न्यायिक जांच आयोग बैठाया गया. करीब 7 साल लंबी जांच के बाद न्यायिक जांच आयोग ने पाया है कि इस मुठभेड़ में मारे गए सभी 17 लोग निर्दोष थे.
आदिवासियों की ओर से केस लड़ने वाली शालिनी गेरा बताती हैं कि नक्सलवाद के इतिहास में फर्जी साबित हुई ये सबसे बड़ी मुठभेड़ है. जिसमें 17 आदिवासियों की हत्या कर दी गई. जवानों ने निहत्थे ग्रामीणों पर फायरिंग की.
पुलिस ने भागते ग्रामीणों के पीठ पर गोली मारी. इस घटना में 7 बच्चे भी जवानों की गोलियों से मारे गए. साथ ही 10 ग्रामीण घायल भी हो गए. शालिनी साफ करती हैं कि जवानों ने ये फायरिंग सेल्फ डिफेंस में नहीं की थी.
रिपोर्ट आने के बाद राजनीति तेज
अब इस मामले में छत्तीसगढ़ में जमकर राजनीति हो रही है. बीजेपी के लोग इस पर कुछ नहीं कह पा रहे हैं. क्योंकि मामला 2012 का है जब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी और रमन सिंह मुख्यमंत्री थे. लेकिन जांच रिपोर्ट आ जाने के बाद विधानसभा के पटल में रिपोर्ट क्यों नहीं रखा गया इस पर बीजेपी सरकार को घेर रही है.
जिस समय छत्तीसगढ़ में यह सुरक्षाबलों ने आदिवासियों को गोली मारी थी उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. कांग्रेस नेता पी चिदंबरम केंद्रीय गृह मंत्री और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे.
मामला साल 2012 का है. लिहाजा अब कांग्रेस की सरकार बीजेपी पर आदिवासियों को मारने का आरोप लगा रही है और रिपोर्ट पेश करने पर अपनी पीठ थपथपा रही है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार में बस्तर से आने वाले आदिवासी मंत्री कवासी लखमा तो तात्कालीन सीएम रमन सिंह और गृहमंत्री ननकीराम कंवर पर FIR दर्ज करने की बात कह रहे हैं. जिस पर सीएम भूपेश बघेल इनकार भी नहीं कर रहे हैं.
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