सुकमा: नक्सलवाद के लिए कुख्यात छत्तीसगढ़ के दोरनापाल की रहने वाली बेटी माया ने एमबीबीएस में दाखिला लेकर इतिहास रचा है. माया ने महज 10 वर्ष की उम्र में ही अपने पिता को खो दिया था. माया का कहना है कि उसने महज 10 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया था. उसका बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना था, जिसे पूरा करने में वह लगी रही. डॉक्टर बनने के बाद वह गरीबों की सेवा करेगी. उन्होंने कहा कि मैं मेडिकल की परीक्षा पास करके काफी खुश और आगे पढ़ने के लिए उत्साहित हूं.
माया ने टीओई अखबार से कहा कि डॉक्टर बनने का सपना बचपन से था. आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने शुरुआती दौर और कठिनाईयों को बयां करते हुए कहा, ''मेरी मां को सभी भाई-बहनों का ख्याल रखना होता था. सभी स्कूल जाते थे. नीट की तैयारी के दौरान पैसे की काफी कमी हुई लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारी.''
माया ने नक्सली हमलों का जिक्र करते हुए कहा, ''यहां की स्थिति बहुत खराब है. हमेशा नक्सलियों से संबंधित खबर सुनने को मिलती है. डर भी बहुत लगता था. लेकिन सबकुछ छोड़कर मैंने पढ़ाई में ध्यान लगाया.''
दोरनापाल की बदतर स्थिति और आदिवासी लड़की माया की हिम्मत को इससे समझा जा सकता है कि पूरे दोरनापाल में प्राथमिक शिक्षा में मात्र 3,000 बच्चों का नाम रजिस्टर्ड हैं. माया ने कहा कि उन्होंने गांव के जिस स्कूल से पढ़ाई की वहां पर शिक्षक कभी कभार ही देखने को मिलते हैं.
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माया की बहन का कहना है कि पिताजी के निधन के बाद माया को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा. आर्थिक तंगी से भी गुजरना पड़ा, लेकिन माया के हौसले नहीं डगमगाए. बाधाओं से लड़ते हुए उसने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है. माया की इस उपलब्धि पर पूरा परिवार उसकी कामयाबी से खुश है.
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नक्सलियों के गढ़ की बेटी बनेगी क्षेत्र की पहली डॉक्टर, छोटी उम्र में उठ गया था पिता का साया
एबीपी न्यूज़
Updated at:
25 Aug 2018 11:20 AM (IST)
दोरनापाल की बदतर स्थिति और आदिवासी लड़की माया की हिम्मत को इससे समझा जा सकता है कि पूरे दोरनापाल में प्राथमिक शिक्षा में मात्र 3,000 बच्चों का नाम रजिस्टर्ड हैं. माया ने कहा कि उन्होंने गांव के जिस स्कूल से पढ़ाई की वहां पर शिक्षक कभी कभार ही देखने को मिलते हैं.
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