माया ने टीओई अखबार से कहा कि डॉक्टर बनने का सपना बचपन से था. आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने शुरुआती दौर और कठिनाईयों को बयां करते हुए कहा, ''मेरी मां को सभी भाई-बहनों का ख्याल रखना होता था. सभी स्कूल जाते थे. नीट की तैयारी के दौरान पैसे की काफी कमी हुई लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारी.''
माया ने नक्सली हमलों का जिक्र करते हुए कहा, ''यहां की स्थिति बहुत खराब है. हमेशा नक्सलियों से संबंधित खबर सुनने को मिलती है. डर भी बहुत लगता था. लेकिन सबकुछ छोड़कर मैंने पढ़ाई में ध्यान लगाया.''
दोरनापाल की बदतर स्थिति और आदिवासी लड़की माया की हिम्मत को इससे समझा जा सकता है कि पूरे दोरनापाल में प्राथमिक शिक्षा में मात्र 3,000 बच्चों का नाम रजिस्टर्ड हैं. माया ने कहा कि उन्होंने गांव के जिस स्कूल से पढ़ाई की वहां पर शिक्षक कभी कभार ही देखने को मिलते हैं.
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माया की बहन का कहना है कि पिताजी के निधन के बाद माया को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा. आर्थिक तंगी से भी गुजरना पड़ा, लेकिन माया के हौसले नहीं डगमगाए. बाधाओं से लड़ते हुए उसने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है. माया की इस उपलब्धि पर पूरा परिवार उसकी कामयाबी से खुश है.
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