छत्तीसगढ़ सरकार ने कोडो-कुटकी को आदिवासियों और किसानों से न्यूनतम मूल्य में खरीद कर बेचने का फैसला किया है. इसके लिए छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ ने कोडो-कुटकी के बेहतर प्रक्रिया के लिए भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. इस बात की पुष्टि मंगलवार को अधिकारियों ने की है. दरअसल इस साल जनवरी में ही राज्य के किसानों और आदिवासियों से इन छोटे मोटे अनाजों को खरीदने का फैसला सरकार ने ले लिया था.


वहीं इसकी खरीद छत्तीसगढ़ राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से की जाएगी और इसको छत्तीसगढ़ हर्बल के ब्रांड नाम के तहत बेचा जाएगा. एसएमएफपीएफ के प्रबंध निदेशक संजय शुक्ला ने बताया कि जंगलों के पास रहने वाले ग्रामीण कोदो-कुटकी और रागी उगाते हैं, लेकिन पहले उन्हें अपनी उपज का अच्छा मूल्य नहीं मिलता था, इसलिए सरकार ने ये कदम उठाने का फैसला किया. अब बाजरा उत्पादन और प्रसंस्करण में आईआईएमआर की मदद ली जाएगी.


कहां-कहां होती है बाजरे की खेती


जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ के अलावा आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और तेलंगाना जैसे राज्यों में कम उर्वरता, पहाड़ी इलाकों, आदिवासी और यहां तक ​​कि बारिश वाले क्षेत्रों में भी बाजरे की खेती की जाती है.


सात अन्य वन उपज भी खरीदेगी सरकार


भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मुताबिक बाजरा छोटे उत्पादकों के लिए उपयुक्त है, क्योंकि उनकी खेती में चावल और गेहूं की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है. दिसंबर 2020 में छत्तीसगढ़ सरकार ने आदिवासियों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सात अन्य वन उपज खरीदने का फैसला किया था.


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