Dhaba In Maoist Affected District: छत्तीसगढ़ (Chattisgarh) के दंतेवाड़ा (Dantewada) में आदिवासी महिलाओं (Tribal Women) का एक समूह माओवादी हिंसा से प्रभावित क्षेत्र में एक भोजनायल को संचालित कर रहा है. 'मनवा ढाबा' (मेरा ढाबा) नाम का भोजनालय मई महीने में बड़े करली गांव में जिला प्रशासन द्वारा आजीविका सृजन गतिविधियों के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था.


एक अधिकारी ने कहा कि जिला प्रशासन ने जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) के तहत गीदम शहर से छह किलोमीटर दूर गौठान के बगल में 3,000 वर्ग फुट जमीन पर भोजनालय स्थापित करने के लिए धन मुहैया कराया था. उन्होंने कहा कि इस सुविधा का प्रबंधन गौठान से जुड़े 'बॉस बोडिन' स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) की 10 महिलाओं द्वारा किया गया, जो कभी घर के कामों और खेती की गतिविधियों तक ही सीमित थीं.


महिला सदस्य ने क्या कहा?


समूह की एक महिला सदस्य ने कहा, "पहले मेरा परिवार आजीविका के लिए केवल कृषि गतिविधियों पर निर्भर था. जब से मैं इस एसएचजी में शामिल हुई, मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है. हमारा समूह गोबर खरीद योजना के माध्यम से अच्छा पैसा कमा रहा था और अब भोजनायल से भी अच्छा लाभ कमा रहा है."


जिला प्रशासन के अधिकारी ने कहा कि शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन की पेशकश करने वाला ये भोजनालय बहुत कम समय में स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया है. अधिकारी ने कहा कि कुछ दिन तक भोजनालय की प्रतिदिन बिक्री 20 हजार रुपये तक पहुंच जाती है.


भोजनालय से अब तक किया 8 लाख का कारोबार


उन्होंने कहा कि भोजनालय ने अब तक 8 लाख रुपये का कारोबार किया है और सफलता से प्रेरित होकर समूह अब जल्द ही टिफिन सेवाएं शुरू करने की योजना बना रहा है. बता दें कि वर्तमान में समूह का प्रत्येक सदस्य 5 से 6 हजार रुपये प्रति माह कमा रहा है. इस पहल ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है और उन्हें अपने परिवार के वित्त में योगदान करने में मदद मिली है.


दंतेवाड़ा के कलेक्टर विनीत नदानवर ने पीटीआई-भाषा से बात करते हुए कहा कि ये आदिवासी महिलाएं रूढ़ियों को तोड़कर एक साथ आई हैं और ऐसी भूमिकाएं निभाई हैं जो कभी पुरुषों के प्रभुत्व में थीं. इस अवधारणा को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दृष्टिकोण के एक हिस्से के रूप में पेश किया गया था, जिसमें गौठानों को बहु-गतिविधि केंद्रों में विकसित किया गया था. 


इन व्यवसायों का भी संचालन कर रही हैं महिलाएं


उन्होंने कहा कि यह पहल न केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में मदद कर रही है, बल्कि वे पारिवारिक अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. गौठानों में गाय के गोबर की खरीद के अलावा, महिला स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी से सामुदायिक सब्जी बागवानी, वर्मीकम्पोस्ट और सुपर कम्पोस्ट उत्पादन जैसी कई आय अर्जित करने वाली गतिविधियां संचालित कर रही हैं.


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