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जिस गांव की सड़क बनाने में शहीद हुए 42 जवान, वहां की बेटियां फिलीपींस में बुलंद करेंगी भारत का झंडा

हिंसा से प्रभावित बीजापुर के 'अति संवेदनशील' और सुविधाहीन गांव गंगालुर की ये दो बेटियां कभी जंगलों में तेंदू पत्ता और महुआ बिना करती थीं. लेकिन बीजापुर स्पोर्ट्स अकादमी ने इनकी किस्मत बदल दी.

नई दिल्ली: पीएम नरेंद्र मोदी 14 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के दौरे पर होंगे, लेकिन उनके इस दौरे से पहले हर कोई जिले की दो बच्चियों के बारे में चर्चा कर रहा है. इन दो बच्चियों की हो रही चर्चा के पीछे की वजह बहुत खास है. पीएम मोदी 14 अप्रैल को इन दोनों बच्चियों से मुलाकात करने वाले हैं.

जिस गांव की सड़क बनाने के लिए 42 जवान शहीद हुए उसी गांव की दो लड़कियां फिलीपींस में होने वाले एशियन इंटरनेशनल सॉफ्टबॉल चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी. अरुणा पुनेम और सुनीता हेमला ने यह साबित किया है कि मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं जो खुली आंखों से सपने देखते हैं.

जंगल में तेंदू पत्ता बिनने से सॉफ्टबॉल चैंपियनशिप तक की कहानी...

हिंसा से प्रभावित बीजापुर के 'अति संवेदनशील' और सुविधाहीन गांव गंगालुर की ये दो बेटियां कभी जंगलों में तेंदू पत्ता और महुआ बिना करती थीं. लेकिन बीजापुर स्पोर्ट्स अकादमी ने इनकी किस्मत बदल दी. अरुणा कहती हैं कि वो जंगलों में महुआ बिनकर अपना गुजर बसर कर रही थीं. जब उन्हें बिजापुर स्पोर्ट्स अकादमी के बारे में पता चला तो वे यहां आ गईं.

अरुणा, पीएम मोदी से मिलने को लेकर खासी उत्साहित हैं. अरुणा कहती हैं कि अबतक तो पीएम मोदी को टीवी में देखती और सुनती थीं लेकिन अब वो उनसे हाथ मिलाएंगी. वे बताती हैं कि नक्सली क्षेत्र से निकलकर वो किसी दूसरे देश मे खेलने जा रही हैं और ये उनके लिए सबसे बड़ी बात है. अरुणा इस इलाके की दूसरी लड़कियों को भी डर से बाहर निकलने का संदेश दे रही हैं. वहीं सुनीता कहती हैं कि बचपन से उन्होंने केवल नक्सलियों के खौफ के बारे में सुना था. नक्सलियों के हिंसा और धमकी के बीच बड़ी हुई सुनीता, पीएम मोदी से मिलने को सपना बता रही हैं.

कोच सोपान कर्णवाली की कहानी भी है दिलचस्प

इन बच्चियों के कोच सोपान कर्णवाल की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. जब सोपान की नियुक्ति बीजापुर में हुई तो वो इस जगह के नाम से डर गए थे. उनके मन में केवल नक्सलियों के आतंक का खयाल आता था. लेकिन यहां के बच्चों की प्रतिभा देखकर उनका मन लग गया. सोपान बताते हैं कि मैदानी इलाके से ज्यादा मेहनती और फुर्तीले बस्तर के आदिवासी हैं. पीएम मोदी से मिलने की बात भी उन्हें उत्साहित करती है.

गंगालुर को नक्सल आतंक के लिए जाना जाता है, लेकिन अब इसे अरुणा और सुनीता के कारण भी जाना जाने लगा है. आर्थिक और सामाजिक रूप से बेहद पिछड़े छत्तीसगढ़ के इस इलाके में वनवासियों के लिए वनोपज ही जीवन यापन का सहारा है. तेंदू पत्ता और महुआ का संग्रहण कर जीवन यापन करने वाली कक्षा नौ की छात्रा अरुणा पूनेम और सुनीता हेमला बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं. लेकिन वे दोनों अब इस क्षेत्र के लिए मिसाल बन चुकी हैं.

अरुणा का सफरनामा...

साल भर पहले ही अरुणा ने बीजापुर में स्पोटर्स अकादमी में दाखिला लिया और सॉफ्टबॉल को चुना. साल भर में ही राष्ट्रीय स्तर की दो और राज्य स्तरीय पांच प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर शानदार खेल दिखाया. राज्य स्तर पर कांस्य पदक हासिल किया और फिर राष्ट्रीय टीम में भी जगह बना ली.

सुनीता का सफरनामा..

सुनीता हेमला भी संघर्षों से भरे रास्ते से आगे बढ़ीं. उनका परिवार भी महुआ और तेंदू पत्ता जैसे वनोपज संग्रह के सहारे गुजर करता है. सुनीता ने संघर्ष को चुनौती के रूप में लिया. बीजापुर खेल अकादमी उनके लिए वरदान के रूप में सामने आई. खेल में अपना भविष्य देख रही सुनीता ने सॉफ्टबॉल को मुख्य खेल चुना. प्रतिभा के बूते राज्य स्तर पर दो पदक जीतकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई और राष्ट्रीय टीम में पहुंचीं.

इलाके के लिए वरदान बना बीजापुर खेल अकादमी

बीजापुर खेल अकादमी को अस्तित्व में आए साल भार भी नहीं हुआ है लेकिन देश में इस अकादमी का डंका बज रहा है. तीरंदाजी, जूडो-कराटे, तैराकी, सॉफ्टबॉल, वॉलीबॉल, बास्केटबॉल, एथलेटिक्स, फुटबॉल और बैडमिंटन समेत दस खेलों में फिलहाल 270 बच्चे प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं. 46 खिलाड़ियों ने राज्य स्तर पर और 24 खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 48 पदक बटोरे हैं. इसमें 10 गोल्ड मैडल हैं. इस अकादमी में सभी बच्चे आदिवासी हैं.

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