(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'अनामिका' को नहीं मिल सका इंसाफ, जांच में खामियों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने दरिंदगी के आरोपियों को किया बरी
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यू यू ललित, दिनेश माहेश्वरी और बेला त्रिवेदी की बेंच ने तीनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है.
Chhawla Gangrape Case: गैंगरेप के बाद भयंकर यातनाएं देकर मारी गई 'अनामिका' को इंसाफ नहीं मिल सका. जिन 3 लोगों को निचली अदालत और हाई कोर्ट ने फांसी की सज़ा दी थी, उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया है. इसकी वजह रही पुलिस की खराब जांच और निचली अदालत में मुकदमे के दौरान बरती गई लापरवाही.
मूल रूप से उत्तराखंड की 'अनामिका' दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के छावला के कुतुब विहार में रह रही थी. 9 फरवरी 2012 की रात नौकरी से लौटते समय उसे कुछ लोगों ने जबरन अपनी लाल इंडिका गाड़ी में बैठा लिया. 3 दिन बाद उसकी लाश बहुत ही बुरी हालत में हरियाणा के रिवाड़ी के एक खेत मे मिली.
दी गई थी असहनीय यातना
बलात्कार के अलावा उसे असहनीय यातना दी गई थी. उसे कार में इस्तेमाल होने वाले औजारों से पीटा गया, उसके ऊपर मिट्टी के बर्तन फोड़े गए, सिगरेट से दागा गया. यहां तक कि उसके स्तन को भी गर्म लोहे से दागा गया, निजी अंग में औजार और शराब की बोतल डाली गई. उसके चेहरे को तेजाब से जलाया गया.
2 अदालतों ने दी फांसी की सज़ा
लड़की के अपहरण के समय के चश्मदीदों के बयान के आधार पर पुलिस ने लाल इंडिका गाड़ी की तलाश की. कुछ दिनों बाद उसी गाड़ी में घूमता राहुल पुलिस के हाथ लगा. पूछताछ में उसने अपना गुनाह कबूल किया और अपने दोनों साथियों रवि और विनोद के बारे में भी जानकारी दी. पुलिस के मुताबिक तीनों की निशानदेही पर ही पीड़िता की लाश बरामद हुई. डीएनए रिपोर्ट और दूसरे तमाम सबूतों से निचली अदालत में तीनों के खिलाफ केस साबित हुआ. 2014 में पहले निचली अदालत ने मामले को 'दुर्लभतम' की श्रेणी का मानते हुए तीनों को फांसी की सज़ा दी. बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा.
सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यू यू ललित, दिनेश माहेश्वरी और बेला त्रिवेदी की बेंच ने तीनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जांच और मुकदमे के दौरान बरती गई लापरवाहियों के आधार पर यह फैसला दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे में जो कमियां गिनाई हैं, उनमें से कुछ यह हैं :-
* इस बात पर शक है कि लड़की का शव 3 दिन तक खेत में पड़ा रहा और किसी की नज़र नहीं पड़ी.
* शव की बरामदगी को लेकर हरियाणा पुलिस और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के बयान में अंतर है.
* आरोपियों और पीड़िता का डीएनए सैंपल तुरंत जांच के लिए भेजा जाना चाहिए थे, लेकिन 14 और 16 फरवरी को लिए गया सैंपल 27 फरवरी तक मालखाने में पड़ा रहा. ऐसे में इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि सैंपल में हेर-फेर हुई हो.
* पीड़िता के शव से आरोपी रवि के बालों का गुच्छा मिलने का दावा किया गया. लेकिन खुले में 3 दिन और 3 रात तक पड़े शरीर से ऐसी बरामदगी विश्वसनीय नहीं लगती.
* आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पहचान परेड नहीं हुई. बाद में कोर्ट में भी अपहरण के चश्मदीद गवाहों में से किसी ने आरोपियों को नहीं पहचाना.
* आरोप पक्ष की तरफ से पेश अधिकतर गवाहों का क्रॉस-एग्जामिनेशन करने मौका बचाव पक्ष को नहीं दिया गया.
* आरोपियों की तरफ से पुलिस को दिए गए इकबालिया को सेशंस कोर्ट ने बतौर सबूत स्वीकार कर लिया, जबकि पुलिस अधिकारी को दिए बयान को कोर्ट स्वीकार नहीं कर सकता.
जजों ने कहा है कि किसी को सज़ा देने के लिए सबूतों का निर्विवाद होना ज़रूरी है. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं है. ऐसे में संदेह का लाभ देते हुए तीनों आरोपियों को बरी किया. कोर्ट ने पीड़ित परिवार के प्रति सहानुभूति जताते हुए कहा है कि वह सीआरपीसी की धारा 357(A) के तहत मुआवजे के हकदार हैं. जजों ने निर्देश दिया है कि दिल्ली स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी पीड़ित परिवार को मुआवजा दे.
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