Chhawla Gang Rape Review Petition: दिल्ली के छावला गैंगरेप केस में सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा विचार करने से मना कर दिया है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने दोषियों को बरी करने वाले आदेश को सही माना है. दिल्ली पुलिस ने इस मामले में एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी. पुलिस ने कहा था कि इस मामले में दोषियों के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं.
साल 2012 के इस मामले में पीड़िता को भयंकर यातनाएं देकर मारने के लिए निचली अदालत और हाई कोर्ट ने 3 लोगों- राहुल, रवि और विनोद को फांसी की सजा दी थी लेकिन 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था. इसी आदेश पर दोबारा विचार की मांग दिल्ली पुलिस और पीड़ित परिवार की तरफ से की गई थी.
कुल 5 याचिकाएं हुईं खारिज
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एस रविंद्र भाट और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच ने दिल्ली पुलिस, पीड़ित परिवार, सामाजिक कार्यकर्ता योगिता भयाना के अलावा 2 संगठनों उत्तराखंड बचाओ मूवमेंट और उत्तराखंड लोक मंच की याचिका पर 1 मार्च को विचार किया था. आज जारी आदेश में बेंच ने दिल्ली पुलिस और पीड़ित परिवार की याचिका को यह कहते हुए खारिज किया है कि मामले में पहले दिए गए आदेश में कानूनन या तथ्यात्मक दृष्टि से कोई कमी नहीं है. वहीं बाकी याचिकाओं पर कहा है कि आपराधिक मामले में ऐसे लोगों की याचिका पर विचार नहीं हो सकता जिनका मामले से संबंध नहीं.
'नई घटनाओं से कोई असर नहीं'
दिल्ली पुलिस ने कोर्ट को यह भी बताया था कि एक आरोपी विनोद 26 जनवरी को हत्या के केस में फिर गिरफ्तार हुआ है. इस बार मामला एक ऑटो चालक की हत्या का है. पुलिस ने कहा था कि तीनों आदतन अपराधी हैं लेकिन कोर्ट ने कहा कि इस घटना का 2012 के मामले से कोई संबंध नहीं है.
दिल दहला देने वाली घटना
मूल रूप से उत्तराखंड की 'अनामिका' दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के छावला के कुतुब विहार में रह रही थी. 9 फरवरी 2012 की रात नौकरी से लौटते समय उसे कुछ लोगों ने जबरन अपनी लाल इंडिका गाड़ी में बैठा लिया. 3 दिन बाद उसकी लाश बहुत ही बुरी हालत में हरियाणा के रिवाड़ी के एक खेत मे मिली. बलात्कार के अलावा उसे असहनीय यातना दी गई थी. उसे कार में इस्तेमाल होने वाले औजारों से पीटा गया, उसके ऊपर मिट्टी के बर्तन फोड़े गए, सिगरेट से दागा गया. यहां तक कि उसके स्तन को भी गर्म लोहे से दागा गया, निजी अंग में औजार और शराब की बोतल डाली गई. उसके चेहरे को तेजाब से जलाया गया.
2 अदालतों ने दी फांसी की सजा
लड़की के अपहरण के समय के चश्मदीदों के बयान के आधार पर पुलिस ने लाल इंडिका गाड़ी की तलाश की. कुछ दिनों बाद उसी गाड़ी में घूमता राहुल पुलिस के हाथ लगा. पूछताछ में उसने अपना गुनाह कबूल किया और अपने दोनों साथियों रवि और विनोद के बारे में भी जानकारी दी. पुलिस के मुताबिक तीनों की निशानदेही पर ही पीड़िता की लाश बरामद हुई. डीएनए रिपोर्ट और दूसरे तमाम सबूतों से निचली अदालत में तीनों के खिलाफ केस साबित हुआ. 2014 में पहले निचली अदालत ने मामले को 'दुर्लभतम' की श्रेणी का मानते हुए तीनों को फांसी की सज़ा दी. बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा.
सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी
7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस यू यू ललित, दिनेश माहेश्वरी और बेला त्रिवेदी की बेंच ने तीनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जांच और मुकदमे के दौरान बरती गई लापरवाहियों के आधार पर यह फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे में जो कमियां गिनाई हैं, उनमें से कुछ यह हैं-
- इस बात पर शक है कि लड़की का शव 3 दिन तक खेत में पड़ा रहा और किसी की नजर नहीं पड़ी. शव की बरामदगी को लेकर हरियाणा पुलिस और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के बयान में अंतर है.
- आरोपियों और पीड़िता का डीएनए सैंपल तुरंत जांच के लिए भेजा जाना चाहिए थे, लेकिन 14 और 16 फरवरी को लिए गया सैंपल 27 फरवरी तक मालखाने में पड़ा रहा. ऐसे में इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि सैंपल में हेर-फेर हुई हो.
- पीड़िता के शव से आरोपी रवि के बालों का गुच्छा मिलने का दावा किया गया लेकिन खुले में 3 दिन और 3 रात तक पड़े शरीर से ऐसी बरामदगी विश्वसनीय नहीं लगती.
- आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पहचान परेड नहीं हुई. बाद में कोर्ट में भी अपहरण के चश्मदीद गवाहों में से किसी ने आरोपियों को नहीं पहचाना.
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