Chhawla Gangrape:  छावला गैंगरेप केस पर दोबारा विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 3 जजों की बेंच का गठन किया है. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि इस बेंच में उनके साथ जस्टिस एस रविंद्र भाट और जस्टिस बेला त्रिवेदी होंगी. चीफ जस्टिस ने यह बात तब कही जब दिल्ली पुलिस की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई का अनुरोध किया.


2012 के इस मामले में पीड़िता को भयंकर यातनाएं देकर मारने के लिए निचली अदालत और हाई कोर्ट ने 3 लोगों- राहुल, रवि और विनोद को फांसी की सज़ा दी थी. लेकिन 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था. दिल्ली पुलिस से पहले पीड़ित परिवार भी पुनर्विचार याचिका दाखिल कर चुका है.


सॉलिसिटर जनरल ने मामला उठाते हुए आज कोर्ट को बताया कि विनोद 26 जनवरी को हत्या के केस में फिर गिरफ्तार हुआ है. इस बार मामला एक ऑटो चालक की हत्या का है. मेहता ने कहा कि तीनों आदतन अपराधी हैं. उनके खिलाफ गैंगरेप और हत्या का मज़बूत केस था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जांच में कुछ कमियों के चलते उन्हें बरी कर दिया. चीफ जस्टिस ने उन्हें आश्वासन दिया कि जल्द ही 3 जजों की बेंच मामले ओर दोबारा विचार करेगी.


दिल दहला देने वाली घटना


मूल रूप से उत्तराखंड की 'अनामिका' दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के छावला के कुतुब विहार में रह रही थी. 9 फरवरी 2012 की रात नौकरी से लौटते समय उसे कुछ लोगों ने जबरन अपनी लाल इंडिका गाड़ी में बैठा लिया. 3 दिन बाद उसकी लाश बहुत ही बुरी हालत में हरियाणा के रेवाड़ी के एक खेत में मिली. बलात्कार के अलावा उसे असहनीय यातना दी गई थी. उसे कार में इस्तेमाल होने वाले औजारों से पीटा गया, उसके ऊपर मिट्टी के बर्तन फोड़े गए, सिगरेट से दागा गया. यहां तक कि उसके स्तन को भी गर्म लोहे से दागा गया, निजी अंग में औजार और शराब की बोतल डाली गईं. उसके चेहरे को तेजाब से जलाया गया.


2 अदालतों ने दी फांसी की सज़ा


लड़की के अपहरण के समय के चश्मदीदों के बयान के आधार पर पुलिस ने लाल इंडिका गाड़ी की तलाश की. कुछ दिनों बाद उसी गाड़ी में घूमता राहुल पुलिस के हाथ लगा. पूछताछ में उसने अपना गुनाह कबूल किया और अपने दोनों साथियों रवि और विनोद के बारे में भी जानकारी दी. पुलिस के मुताबिक तीनों की निशानदेही पर ही पीड़िता की लाश बरामद हुई. डीएनए रिपोर्ट और दूसरे तमाम सबूतों से निचली अदालत में तीनों के खिलाफ केस साबित हुआ. 2014 में पहले निचली अदालत ने मामले को 'दुर्लभतम' की श्रेणी का मानते हुए तीनों को फांसी की सज़ा दी. बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस फैसले को बरकरार रखा.


सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी


7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस यू यू ललित, दिनेश माहेश्वरी और बेला त्रिवेदी की बेंच ने तीनों आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की जांच और मुकदमे के दौरान बरती गई लापरवाहियों के आधार पर यह फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे में जो कमियां गिनाई हैं, उनमें से कुछ यह हैं :-


* इस बात पर शक है कि लड़की का शव 3 दिन तक खेत में पड़ा रहा और किसी की नज़र नहीं पड़ी.


* शव की बरामदगी को लेकर हरियाणा पुलिस और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के बयान में अंतर है.


* आरोपियों और पीड़िता का डीएनए सैंपल तुरंत जांच के लिए भेजा जाना चाहिए थे, लेकिन 14 और 16 फरवरी को लिए गया सैंपल 27 फरवरी तक मालखाने में पड़ा रहा. ऐसे में इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि सैंपल में हेर-फेर हुई हो.


* पीड़िता के शव से आरोपी रवि के बालों का गुच्छा मिलने का दावा किया गया. लेकिन खुले में 3 दिन और 3 रात तक पड़े शरीर से ऐसी बरामदगी विश्वसनीय नहीं लगती.


* आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पहचान परेड नहीं हुई. बाद में कोर्ट में भी अपहरण के चश्मदीद गवाहों में से किसी ने आरोपियों को नहीं पहचाना.


* आरोपी पक्ष की तरफ से पेश अधिकतर गवाहों का क्रॉस-एग्जामिनेशन करने मौका बचाव पक्ष को नहीं दिया गया.


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