Hen Fighting: मुंबई के नजदीक रायगढ़ जिले में देर रात एक फार्म हाउस में रायगढ़ पुलिस ने रेड की. रेड करने के बाद मुर्गों की लड़ाई पर सट्टा लगाने वालों पर कार्रवाई की गई. पुलिस ने 34 लोगों को गिरफ्तार किया, जो मुर्गों की लड़ाई पर लाखों रुपए का सट्टा लगा रहे थे. मुर्गों की लड़ाई के लिए विशेष मुर्गे मंगाए जाते हैं, जिन्हें ट्रेनिंग और दवाइयां देकर हिंसक बनाया जाता है.
मुंबई, पुणे, अलीबाग, दिल्ली के आए लड़कों का ग्रुप इन मुर्गों पर बोली लगाता है. मुर्गों की लड़ाई में एंट्री करने के लिए महज 5 हजार एंट्री फीस होती है. मुर्गों की लड़ाई में हार जीत का दांव दस हजार से दस लाख तक का लग रहा था. सोशल मीडिया के जरिए मुर्गा लड़ाई के शौकीनों को मुंबई, नवी मुंबई, पुणे, रायगढ़ से बुलाया गया था. मुर्गे के पैर में ब्लेड और चाकू बांधकर लड़ाई कराई जाती है. तेलंगाना और आंध्रप्रदेश जैसे दक्षिण के राज्यों से खास मुर्गे मंगाए गए थे. खास ट्रेंड मुर्गों को लड़ाई के लिए शुरुआत से ही हिंसक बनाया जाता है.
रायगढ़ पुलिस ने बताया की मुंबई से लगभग 100 किलोमीटर दूर रात के समय घने जंगलों के बीच एक फार्म हाउस में इसका खास आयोजन किया गया था. इसमें शामिल होने के लिए बाकायदा एक सोशल मीडिया ग्रुप बनाया गया, जिसमें लगभग 150 लोग थे और सभी से पहले 5 हजार तक की एंट्री फीस तक वसूली गई. सैकड़ों रईसजादे सट्टा लगाने पहुंचे थे. पुलिस के मुताबिक, ये एक तरह का सट्टाबाजार है और ऐसी चीजों पर भारत में प्रतिबंध है. ऐसे में इसकी जानकारी मिलते ही पुलिस ने कुल 4 टीम बनाई थी और फार्म हाउस को चारों तरफ से घेर कर फिर रेड की गई.
34 लोगों को किया गिरफ्तार
रेड होते ही भगदड़ सी मच गई. फार्म हाउस की दीवार बेहद छोटी थी और बगल में घना जंगल था ऐसे में सैकड़ों लोग दीवार फांदकर अंधेरे का फायदा उठाकर भागने में भी कामयाब रहे, लेकिन 34 लोगों को पुलिसकर्मियों ने रंगे हाथों गिरफ्तार किया. पुलिस को फार्महाउस के अंदर से 76 मुर्गे भी मिले. लाइट के लिए हेलोजन लाइट्स और कुर्सी टेबल, घास वाली जमीन पर मुर्गों को लड़ाया जाता है. मुर्गों की ये लड़ाई तब तक चलती है, जब तक एक पक्ष के मुर्गे की जान नहीं चली जाती. इससे ये समझा जा सकता है कि इस तरह के सट्टे के खेल का क्रेज कितना होता है कि हर दांव में लाखों रुपए लगते हैं.
खास तरह के मुर्गे करते हैं फाइट
मुर्गा लड़ाई के शौकीनों की प्रतिष्ठा मुर्गे से जुड़ी होती है, इसलिए इन मुर्गों को खास तौर पर दक्षिण के राज्यों से मंगाया गया था. दक्षिण के राज्यों में कई ऐसी जगह हैं, जहां लोग इस तरह के खास मुर्गों को पालते हैं, क्योंकि ये आम मुर्गों की तरह नहीं होते, इनके स्वभाव को शुरुआत से ही हिंसक बनाया जाता है.
मुर्गों को बनाया जाता है लड़ाकू
मुर्गों को लड़ाकू बनाने के लिए ग्रामीण अवैध तरीके से डेक्सामेथासोन, बीटा मैथासोन के इंजेक्शन और प्रेडनीसोल की गोलियां मुर्गों को खिलाते हैं. इन दवाओं का नशा इतना तेज होता है कि लड़ते वक्त गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी मुर्गा मैदान नहीं छोड़ता. लड़ाई शुरू होने से पहले मुर्गे के पैर में धागे की मदद से चाकू या ब्लेड बांध देते हैं. इस चाकू या ब्लेड से मुर्गा प्रतिद्वंदी पर वार करता है, प्रतिद्वंदी मुर्गे की मौत के बाद ही खेल खत्म माना जाता है. मैदान के एक हिस्से में गोल घेरा बनाकर मुर्गों की लड़ाई कराई जाती है, इस जगह को कुकड़ा गली कहते हैं. इस खेल में सबसे ज्यादा असील प्रजाति के मुर्गों को लड़ाया जाता है, जिसका वैज्ञानिक नाम है गेलस डोमेस्टिकस है.
लाखों रुपये की लगती है बोली
मुर्गा लड़ाई में अलग-अलग स्तर पर एक हजार रुपये से लाखों रुपये तक का दांव तो लड़ाने वाले ही लगाते हैं. रायगढ़ में जब रेड की गई और आरोपियों से पुछताछ की गई तो पता चला कि 10 हजार से लेकर 2 या 5 लाख, यहां तक कि दस लाख के भी दांव लग रहे थे. चौंकाने वाली बात ये है कि इससे कई गुना ज्यादा रकम कई बार जोश में आकर लड़ाई देखने आने वाले दर्शक भी लगाते हैं.
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