तिरुवनंतपुरम: संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले लोगों की आलोचना करने को लेकर विपक्षी दलों ने अब बिपिन रावत पर पलटवार किया है. शनिवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने रावत पर जमकर निशाना साधा.
पी चिदंबरम ने कहा, " अब सेना के जनरल को बोलने के लिए कहा जा रहा है. क्या यह सेना के जनरल का काम है? सेना के जनरल को सरकार का समर्थन करने के लिए कहा जा रहा है. यह शर्म की बात है. मैं जनरल रावत से अपील करना चाहता हूं आप सेना का नेतृत्व करते हैं और आपको अपने काम से मतलब रखना चाहिए, नेताओं को जो करना है, वे करेंगे." उन्होंने ये भी कहा, "यह सेना का काम नहीं है कि हम नेताओं को बताएं कि हमें क्या करना चाहिए. जैसा कि यह बताना हमारा काम नहीं कि आपको युद्ध कैसे लड़ना है. आप अपने विचारों से युद्ध लड़ते हैं और हम देश की राजनीति देखेंगे."
वहीं हैदराबाद में संवाददाताओं से माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने रावत पर निशाना साधते हुए कहा, "यह सशस्त्र बलों का राजनीतिकरण है. उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर खतरनाक प्रवृत्ति जारी रही तो यह पाकिस्तान में सेना की भूमिका की तरह होगा." उन्होंने कहा कि देश और संविधान के लिए चेतावनी पर विचार करना जरूरी है. उन्होंने सरकार से इसे ध्यान में रखने की अपील की.
जनरल बिपिन रावत की टिप्पणी पर विपक्षी नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पूर्व सैन्यकर्मियों ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है, जिन्होंने उन पर राजनीतिक टिप्पणी करने और ऐसा करके राजनीतिक मामलों में नहीं पड़ने की सेना में लंबे समय से कायम परंपरा से समझौता करने का आरोप लगाया है.
विपक्ष के दोनों नेताओं ने सेना प्रमुख बिपिन रावत के उस बयान पर पलटवार किया जिसमें उन्होंने कहा था, "नेता वे नहीं हैं जो अनुचित दिशाओं में लोगों का नेतृत्व करते हैं, जैसा कि हम बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय और कॉलेज छात्रों को देख रहे हैं, जिस तरह वे शहरों और कस्बों में आगजनी और हिंसा करने में भीड़ की अगुवाई कर रहे हैं। यह नेतृत्व नहीं है."
रावत के इस बयान पर विवाद खड़ा हो गया. इसके बाद सेना ने एक स्पष्टीकरण जारी किया और कहा कि सेना प्रमुख ने सीएए का उल्लेख नहीं किया है. सेना ने बयान में कहा, "उन्होंने किसी राजनीतिक कार्यक्रम, व्यक्ति का उल्लेख नहीं किया है. वह भारत के भविष्य के नागरिकों को संबोधित कर रहे थे, जो छात्र हैं. छात्रों का मार्गदर्शन करना उनका सही कर्तव्य है. जिन पर राष्ट्र का भविष्य निर्भर करेगा. कश्मीर घाटी में युवाओं को पहले उन लोगों द्वारा गुमराह किया गया था, जिनपर उन्होंने नेताओं के रूप में भरोसा किया था."
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