Chief Election Commissioner Bill: राज्यसभा ने मंगलवार (12 दिसंबर) को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं पदावधि) विधेयक 2023 को ध्वनि मत से मंजूरी दे दी.
सरकार की ओर से केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इसे पेश करते हुए चर्चा का जवाब देते दिया. उन्होंने कहा कि अगस्त 2023 में यह विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया था और मूल कानून में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान नहीं था.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस संबंध में एक कानून बनाने का निर्देश दिया था. इसके आधार पर यह विधेयक लाया गया है. वहीं विपक्षी दलों ने सरकार पर हमले करते हुए कहा कि इससे चुनाव की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है.
सरकार ने क्या कहा?
विपक्ष की आपत्तियों को खारिज करते हुए मेघवाल ने कहा कि निर्वाचन आयोग निष्पक्ष है. इस संशेधन विधेयक के बाद भी निष्पक्ष ही रहेगा. उन्होंने कहा, ‘‘इसके लिए सरकार भी प्रतिबद्ध है. यह विधेयक प्रगतिशील है.’’
उन्होंने कहा कि यह सरकारी संशोधन विधेयक है. उन्होंने कहा कि इसमें सर्च कमेटी और चयन समिति का प्रावधान है. इसमें वेतन को लेकर भी एक प्रावधान है. मेघवाल ने कहा कि इसमें एक प्रावधान है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त यदि कोई कार्रवाई करते हैं तो उन्हें कोर्ट की कार्रवाई से छूट दी गयी है.
कांग्रेस ने क्या दावा किया?
कांग्रेस ने दावा किया कि इसके पीछे सरकार की मंशा निर्वाचन आयोग को जेबी चुनाव आयोग बनाकर इसे अपनी मनमर्जी से चलाने की है. कांग्रेस सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि निष्पक्षता, निर्भीकता, स्वयात्तता और शुचिता चुनाव के आधारस्तंभ होते हैं. उन्होंने दावा कि यह प्रस्तावित कानून इन चारों को बुलडोजर से कुचल देने वाला है.
उन्होंने कहा कि सरकार इस विधेयक के जरिये चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप का प्रयास कर रही है. उन्होंने संविधान निर्माता डॉबी आर आंबेडकर के एक वक्तव्य का हवाला देते हुए कहा कि चुनाव प्रक्रिया कार्यपालिका के हस्तक्षेप से पूरी तरह मुक्त रहनी चाहिए.
सुरजेवाला ने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों की नियुक्ति जो समिति करेगी, उसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री के तय किया गया कोई केंद्रीय मंत्री होगा. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि यदि निर्वाचन आयुक्त निष्पक्ष चुनाव नहीं करा पता तो वह कानून के शासन के आधार को ही खत्म कर देगा.
डीएमके ने भी किया हमला
डीएमके के तिरूचि शिवा ने विधेयक को अलोकतांत्रिक और अनैतिक बताते हुए इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार संभवत: यह मानकर इस विधेयक को लायी है कि वह हमेशा सत्ता में बनी रहेगी.
उन्होंने कहा कि सर्च एवं सेलेक्ट कमेटी में सरकार का दबाव बना रहेगा. उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग का कामकाज स्वतंत्र और निष्पक्ष रहे, इसके लिए आवश्यक है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों की नियुक्ति में कार्यपालिका का हस्तक्षेप नहीं हो.
ये भी पढ़ें- राज्यसभा से भी पास हुए जम्मू-कश्मीर से जुड़े ये दो विधेयक, आरक्षण को लेकर अब उठाए जा सकेंगे ये कदम