भारत के चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कॉलेजियम सिस्टम को लेकर सोमवार को कहा कि यह धारणा गलत है कि भारत में जज ही जजों की नियुक्ति करते हैं. सीजेआई ने कहा कि यह एक गलत धारणा है और जिसे मैं ठीक करना चाहता हूं. जजों की नियुक्ति एक लंबी परामर्श प्रक्रिया के जरिए की जाती है. इसके लिए कई हितधारकों से परामर्श लिया जाता है. मुझे नहीं लगता कि यह प्रक्रिया इससे भी ज्यादा अधिक लंबी हो सकती है. उन्होंने कहा कि न्यायिक नियुक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उद्देश्य लोगों के विश्वास को बनाए रखना है, उन्होंने कहा चयन प्रक्रिया इसकी तुलना में और अधिक लोकतांत्रिक नहीं हो सकती है.


जज ही जजों की नियुक्ति करते हैं ये धारणा गलत- सीजेआई


चीफ जस्टिस एनवी रमना ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया का हवाला देते हुए कहा कि नियुक्ति एक लंबी परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से की जाती है. इसके लिए कई हितधारकों से परामर्श किया जाता है. संबंधित राज्य सरकार, राज्यपाल, भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट को भेजे जाने से पहले प्रस्ताव की जांच करती है. चीफ जस्टिस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष तीन जज सभी हितधारकों द्वारा दिए गए इनपुट के आधार पर प्रस्ताव पर विचार करते हैं. हम सुप्रीम कोर्ट में भी सलाहकार न्यायाधीश की राय लेते हैं. कई लोगों को इसके बारे में पता नहीं हो सकता है.


अदालतें मौलिक अधिकारों और कानून के शासन को बनाए रखती है- CJI


मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने आगे कहा कि भारत का संविधान राज्य के तीन अंगों के बीच शक्तियों को अलग करने का आदेश देता है जहां न्यायपालिका को कार्यकारी और विधायी कार्यों की समीक्षा करने के लिए अनिवार्य है. यह अदालतें हैं जो मौलिक अधिकारों और कानून के शासन को बनाए रखती हैं. लोग न्यायपालिका पर तभी भरोसा करेंगे जब वह स्वतंत्र रूप से कार्य करेगी. न्यायिक नियुक्तियों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय लोगों के विश्वास और विश्वास को बनाए रखने के उद्देश्य से हैं.


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