नई दिल्लीः  "मैं कोर्ट में और कोर्ट से बाहर बड़ी बेबाकी से बोलता हूँ. जहाँ तक आ गया हूँ, उससे आगे जाने की ख्वाहिश नहीं. इसलिए दिल से बोलता हूँ." जस्टिस टी एस ठाकुर के बारे में समझने के लिए उनके भाषण का ये हिस्सा काफी है.


65 साल के तीरथ सिंह ठाकुर आज सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद से रिटायर हो रहे हैं. आज जैसे ही वो सभी मामलों को सुन कर उठने लगे, वकीलों ने उनके सहज और विनम्र बर्ताव की तारीफ शुरू कर दी. केंद्र सरकार के सबसे बड़े वकील एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा, "हम सब वकीलों को आपकी कमी खलेगी. खासतौर पर आपकी शेर ओ शायरी हम मिस करेंगे."


वैसे, सरकार को शायद सबसे ज़्यादा खटकने वाला उनका शेर ये था -
"गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी.
ऐ ख़ानाबर अंदाज़-ए-चमन कुछ तो इधर भी"


15 अगस्त के मौके पर इस शेर के जरिए जस्टिस ठाकुर ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को याद दिलाया कि न्यायपालिका जजों और बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही है. इसे लेकर सरकार की कोशिशें नाकाफी हैं.


न्यायपालिका के मुखिया के तौर पर जस्टिस ठाकुर लगातार सरकार के साथ टकराव की मुद्रा में रहे. पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में एक कार्यक्रम के दौरान वो जजों की कम संख्या का मसला उठाते हुए बेहद भावुक हो गए थे. इससे पहले कभी भी किसी चीफ जस्टिस को इस तरह से भावुक होते नहीं देखा गया था.


जस्टिस ठाकुर ने कॉलेजियम के ज़रिये भेजे गए नामों को बतौर जज नियुक्त न किए जाने पर संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू कर दी. आमतौर पर नियुक्ति का मामला सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच का प्रशासनिक मसला होता है. इस पर बकायदा न्यायिक सुनवाई कर देना एक ऐसा कदम था, जिसके बारे में कभी सोचा भी नहीं गया था. अपने कार्यकाल के आखिरी दिन तक ठाकुर इस मसले पर सरकार के साथ टकराव की मुद्रा में ही रहे.


वैसे, टकराव और शेर ओ शायरी से अलग एक जज के रूप में जस्टिस टी एस ठाकुर ने कई ऐसे फैसले लिए जिन्हें लंबे अरसे तक याद रखा जाएगा. बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर और सचिव अजय शिर्के की पद से छुट्टी ऐसा ही एक फैसला था. लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें लागू करने में अड़चन डाल रहे दोनों पदाधिकारियों को उन्होंने कई बार आगाह किया. आखिरकार, दोनों को उनके पद से हटाने का आदेश दे दिया.
जस्टिस ठाकुर 3 दिसंबर 2015 को चीफ जस्टिस बने थे. चीफ जस्टिस बनने के कुछ दिनों के अंदर उन्होंने दिल्ली-एनसीआर में 2000 सीसी की डीज़ल गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन पर रोक लगा दी. लगभग 5 महीने तक ये रोक जारी रही. बाद में गाड़ियों की बिक्री पर एन्वायरनमेंट कंपनसेशन सेस लगा कर इस पाबंदी को हटाया गया. पर्यावरण को लेकर फिक्रमंद रहने वाले जस्टिस ठाकुर दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर भी रोक लगा चुके हैं.


अपनी उदारता के लिए पहचाने जाने वाले जस्टिस टी एस ठाकुर ने जैन धर्म के पर्व पर्यूषण के दौरान मुंबई में मांस की बिक्री पर रोक लगाए जाने को मंज़ूर करने से मना कर दिया. उन्होंने कहा, "सभी समुदाय अपनी धार्मिक मान्यताओं को लेकर स्वतंत्र हैं. किसी को मांस ज़बरन नहीं खिलाया जा सकता. लेकिन दूसरे की रसोई में क्या पक रहा है, ये झांकने की किसी को ज़रूरत नहीं है."
जस्टिस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने राजनीति से धर्म और जाति को अलग करने के लिए बड़ा फैसला लिया. बेंच ने उम्मीदवार या वोटर के धर्म, जाति, समुदाय के आधार पर वोट मांगने को पूरी तरह गैरकानूनी करार दिया.