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21 महीने की उम्र में अलग हुये बच्चे को उच्चतम न्यायालय ने मां को सौंपा
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने छह साल से अधिक समय बाद आठ साल की उम्र बच्ची को यह कहते हुये उसकी मां को सौंप दिया है कि पिता के पास रहते हुये बच्चा माता के सुख की अनुभूति नहीं कर सकता.
वैवाहिक गतिरोध के कारण इस बच्ची को 21 महीने की उम्र में उसकी मां से अलग कर उसकी जिम्मेदारी पिता को सौंप दी गयी थी.
इस बच्ची की मां एक शिक्षिका है. उसका आरोप था कि उसे जबरन अपना वैवाहिक घर छोडने के लिये मजबूर किया गया. मां ने अपनी बच्ची की सुपुर्दगी के लिये कुटुम्ब अदालत से लेकर उच्च न्यायालय तक मुकदमा लड़ा. कुटुम्ब अदालत में मुकदमा हार जाने के बाद वह उच्च न्यायालय गयी जिसने बच्ची मां को सौंप दी और पिता को उससे मुलाकात का अधिकार प्रदान किया. इस बच्ची का पिता सैन्य अधिकारी है और उसने उच्च न्यायलय के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी.
इस मामले की कार्यवाही के दौरान अब बच्ची आठ साल की हो चुकी इस बच्ची ने शीर्ष अदालत से और न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थ को बताया कि वह अपने पिता के साथ रहना चाहती है और वर्तमान माहौल में बलदाव नहीं चाहती.
बच्ची के पिता ने भी दलील दी कि उनकी बेटी उसके साथ आराम से है और वह मां के जाने के बाद से उसकी परवरिश कर रहे हैं.
परंतु, न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति ए के सिकरी की पीठ ने टिप्पणी की, ‘‘एक बच्चा, जिसने मां के साथ रहने के सुख को न तो देखा है और न ही महसूस किया है, दूसरी ओर से बेहतर पहलुओं की अनुभूति करने की स्थिति मे नहीं है. जब वह अपनी मां के साथ रहने का अनुभव महसूस करेगी तभी वह स्थिति का सही तरीके से आकलन करने की स्थिति में होगी क्या उसकी भलाई मां के साथ रहने में अधिक है या फिर पिता के साये में रहने पर.’’ न्यायालय ने इस बच्ची को एक साल के लिये मां को सौंपते हुये उससे कहा कि उसे दिल्ली में ही उस स्कूल में भर्ती कराये जहां वह पढाती है.
मां के पक्ष में व्यवस्था देते हुये न्यायलाय ने कहा कि यह उसका दुर्भाग्य ही था कि उच्च न्यायालय से अपने पक्ष में फैसले के बावजूद उसे शीर्ष अदालत के अंतरिम आदेश की वजह से इसका लाभ नहीं मिल सका.
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
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