कोमोरबिडिटी पीड़ित 12 साल से ऊपर के बच्चों का कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण पहले होने की संभावना है. वैक्सीन पर सरकार को सलाह देनेवाले कोविड-19 ग्रुप का मानना है कि स्कूल जाने के लिए हर बच्चे का टीकाकरण करने की जरूरत नहीं है. कोविड-19 ग्रुप के मुताबिक अगर दवा नियामक की तरफ से 12 वर्ष से ऊपर के बच्चों को वैक्सीन लगवाने की मंजूरी मिल जाती है, तो पहले चरण में सिर्फ कोमोरबिडिटी बच्चों को डोज दिया जाना चाहिए.
बच्चों के लिए टीकाकरण पर कोविड-19 वर्किंग ग्रुप की राय
एक ही समय में एक से ज्यादा बीमारी के शिकार बच्चों के टीकाकरण पर गाइडलाइन्स जल्द ही जारी होने की उम्मीद है. कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के एनके अरोड़ा ने इकोनोमिक्स टाइम्स से कहा, "अधिकतर व्यस्क आबादी को वैक्सीन लग जाने के बाद स्वस्थ बच्चों को टीकाकरण के लिए शामिल करना होगा." अरोड़ा ने आगे बताया, "बच्चों को कोविड-19 का हल्का लक्षण होता है और इस वक्त 400 मिलियन बच्चों के टीकाकरण से व्यस्क छूट जाएंगे, जिनको संक्रमित होने पर, बिना टीकाकरण के अस्पताल में पहुंचने का ज्यादा जोखिम है. इस मौके पर बच्चों को शामिल करने से वर्तमान टीकाकरण अभियान में बाधा पहुंचेगी."
कोमोरबिडिटी पीड़ित 12 साल से ऊपर के बच्चों को प्राथमिकता
जानकारों के मुताबिक, प्राथमिकता ग्रुप में ऐसे बच्चे शामिल होंगे जिनका किडनी प्रत्यारोपण हुआ है, जो कंजेनाइटल हार्ट डिजीज और कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों से गुजरे हों. भारत में अब तक, बच्चों को दिए जाने के लिए किसी वैक्सीन को नियामक मंजूरी नहीं मिली है. सुरक्षा और इम्यूनिटी का पता लगाने के लिए बच्चों की कोवैक्सीन का मानव परीक्षण चल रहा है. जाइडस कैडिला ने अपने परीक्षण में 12 और 17 साल वर्ष के बीच बच्चों को शामिल किया था, और उसकी जायकोव-डी डीएनए डीएनए आधारित वैक्सीन को आपातकालीन इस्तेमाल के लिए मंजूरी का इंतजार है. पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया भी कोवोवैक्स नाम से कोविड-19 वैक्सीन का 1 से 17 वर्षीय बच्चों पर दूसरे और तीसरे चरण का परीक्षण कर रही है.
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