नई दिल्ली: कोरोना महा संकट ने परिस्थितियों को इस कदर बदल दिया है कि चार महीने पहले की जिंदगी एक दूर दराज को सपना सा लगने लगी है. महामारी की वजह से राजधानी समेत देश के अन्य छात्र और छात्राओं के जीवन में भी बदलाव हुआ है. लॉकडाउन के कारण बच्चों का घर से बाहर निकलना असम्भव हो गया है. लेकिन पढ़ाई की एहमियत और इन बच्चों के भविष्य को ठुकराया भी कैसे जा सकता है? इसके चलते दिल्ली सरकार ने दिल्ली के अन्य विद्यालयों को आदेश दिया था कि बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन कर दी जाए.
टीचर जो पहले ब्लैकबोर्ड के जरिये बच्चों को पढ़ाती थीं अब वो इंटरनेट का इस्तेमाल कर इन बच्चों को शिक्षा प्रदान कर रही हैं. जहां सोशल डिस्टेंसिंग के समय में यह एक अच्छा उपाय बनकर प्रकट हुआ, वही कुछ बच्चों के लिए यह उपाय भी अपने आप में परेशानियों के अम्बार को साथ ले आया.
दिल्ली की अन्य प्राइवेट पाठशालाओं में लगभग 50 हजार Economically weaker section (EWS) category यानी कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं. इन बच्चों की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नही है कि इनके मां बाप विभिन्न उपकरण जैसे कि लैपटॉप, टैबलेट, या अन्य मोबाइल खरीद पाएं. इससे इनकी पढ़ाई में कई बाधाएं भी आने लगी हैं.
केस स्टडी 1
नांगलोई में रहने वाले 36 साल के लक्ष्मण एक दिहाड़ी मजदूर हैं. वह लॉकडाउन से पहले कीर्ति नगर में एक फर्नीचर की दुकान पर काम करते थे. जब से काम ठप हुआ तब से वेतन के भी स्त्रोतों में कटौती हो गयी है. लेकिन अपने दो बच्चों की पढ़ाई वह अच्छे से कराना चाहते हैं. उनके दो बेटे तीसरी और केजी कक्षा में पढ़ते हैं. जहां उनका छोटा बेटा सरकारी स्कूल में पढ़ता है. वहीं उनका बड़ा बेटा पास के ही एक प्राइवेट स्कूल में जाता है. उनका बड़ा बेटा, मयंक, पिछले कई दिनों से अपनी पढ़ाई अच्छे तरीके से नहीं कर पा रहा है.
लक्ष्मण कहते हैं, "पूरे घर मे एक ही फोन है. मेरे पास पहले जो फोन था वो टूट गया था, जिसके बाद लॉकडाउन में उसे ठीक करने का कोई जरिया नही मिला. उसके बाद लगभग दो महीने तक मैं अपने बेटे का रिजल्ट भी नहीं देख पाया. फिर जैसे तैसे पड़ोसियों और दोस्तों की मदद से कही से फोन का इंतजाम किया." वो हताश होकर यह भी कहते हैं कि उनके दो बेटे हैं और एक ही फोन है. उस फोन से उन्हें अपने काम काज अन्य और चीजें भी देखनी होती हैं, दोनों बच्चों को पढ़ाना भी होता है.
केस स्टडी 2
ऐसा ही कुछ कहना है कल्याण पूरी में रह रहे राकेश का. उनके दो बच्चे और एक भतीजे की पढ़ाई का जिम्मा उनके सिर है. घर मे एक फोन है और तीन बच्चे. तीनों ही पास के एक निजी स्कूल में जाते हैं और अलग अलग स्टैंडर्ड में पढ़ते हैं. तीनों को रोज स्कूल से अलग अलग काम मिलता है.
राकेश की पांचवी कक्षा में पढ़ रही बेटी, अदिति का यह कहना है, "जब मुझे अपना असाइनमेंट करना होता है तो रौशन को भी काम आ जाता है. फिर वो फोन लेकर अपना काम करने लगता है. ऐसे में मेरा काम अधूरा छूट जाता है. उससे फिर कई बार शनि फोन छीन लेता है, और फिर यह लड़ने लगते है. तो काम किसी का भी पूरा नही होता, उल्टा अशांति का माहौल ही बना रहता है." रोशन और शनि उसके दो भाई हैं. राकेश एक बैंक के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते थे, लॉकडाउन के समय से उनका काम बंद पड़ा है, और नया फोन खरीदने का पैसा उनके पास नहीं है.
केस स्टडी 3
नांगलोई में रह रहे विजय और सावित्री के तीन बच्चों के साथ भी कुछ यही समस्या है. विजय नोएडा की एक कपड़े की फैक्ट्री में काम करते थे, लेकिन पिछले लगभग तीन महीने से बिना नौकरी के घर पर ही हैं. जहां एक ओर खाने की समस्या से जूझ रहे हैं वहीं अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा ना दे पाने का दुख भी उनको सता रहा है. जब एबीपी न्यूज़ की टीम ने उनसे पूछा तो उन्होंने हमें बताया कि उनके पास घर में दो फोन हैं. एक उनका खुद का जो टूटी हालत में है और एक मांगा हुआ जो उन्हें कभी भी वापिस करना पड़ सकता है. मां सावित्री का कहना है कि फोन काफी बार बन्द होने के कारण उनका सबसे छोटा बेटा, जो प्राइवेट स्कूल में पड़ता है, उसकी पढ़ाई बीच मे ही छूट गई थी, और फोन मिलने पर जब टीचरों से क्लास वर्क मांगा तो उन्होंने जरूरी चीजें दोबारा नही भेजीं, और अपने मन मुताबिक भेजीं.
ऐसे ही बच्चों की समस्याओं को मद्दे नजर रखते हुए एक संस्था 'जस्टिस फॉर ऑल' ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस याचिका को ध्यान में रखते हुए दिल्ली सरकार, केंद्रीय सरकार, MCD और दिल्ली के दस बड़े स्कूलों को पार्टी बनाते हुए दो हफ्ते के अंतर्गत जवाब मांगा है और नोटिस इशू किया है.
उसी संस्था की सेक्रेटरी, एडवोकेट शिखा बग्गा का कहना है, "ई-लर्निंग ऐसे समय मे बच्चों को शिक्षित करने की एक अच्छी पहल है लेकिन कई बच्चों को इसकी उपलब्धि नहीं हो पा रही है. कई स्कूल्स ऐसे हैं जिन्होंने कह दिया है कि पाठ्यक्रम दोबारा दोहराया नही जाएगा, किन्ही स्कूल्स ने यूनिट टेस्ट्स की डेट्स भी जारी कर दीं हैं. इस सब के चलते बच्चों के साल खराब होने का अंदेशा हो रहा है. हमें हाल ही में कई माता-पिता की भी शिकायतें आने लगीं की ऑनलाइन क्लासेज होती तो हैं लेकिन उनके बच्चे नही ले पा रहे क्योंकि उनके पास गैजेट्स की कमी है."
उन्होंने कहा, "शिक्षा का अधिकार सभी बच्चों को है. दिल्ली में EWS quota के लगभग 50 हजार बच्चे हैं. सरकार की जिम्मेदारी है कि वो एक नोटिफिकेशन जारी करे कि कैसे निम्न वर्ग और अन्य छात्रों के बीच की बढ़ती हुई दूरी को कम किया जाए."
इन सब के बीच एबीपी न्यूज़ की टीम ने एक एक प्राइवेट स्कूल की प्रिंसिपल, अलका कपूर से भी बात करी. उन्होंने इस बात से सहमति रखी कि कई बच्चे हैं जो इन समस्याओं से सचमे झूझ रहे हैं, लेकिन उनका कहना यह भी था कि जब उनहोने अपने ही स्कूल में पढ़ रहे 500 EWS कोटा के छात्रों में एक सर्वे करवाया तो उन्होंने पाया कि ज्यादातर बच्चों के माता पिता में उन्हें इस वक्त अपने बच्चों को पढ़ाने की "इच्छा" में कमी लगी. अगर उनकी बात से हामी भरी भी जाये तो वो इस बात को खारिज नहीं करती की शिक्षा सबको एक समान प्राप्त होनी चाहिए, और इस महामारी के कारण ई-लर्निंग के दौर में इस जरूरत की पुष्टि का दायित्व सरकार और पाठशाला दोनों पर ही आता है.
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