नई दिल्ली: दुनिया चीन के खिलाफ एकजुट है. विस्तारवादी चीन को हॉन्गकॉन्ग, ताइवान और तिब्बत में ट्रिपल टेंशन मिल गई है. चीन सीमा पर जो आक्रामक रुख दिखा रहा है उस पर सवाल उठ रहे हैं कि चीन खुद डर रहा है या डरा रहा है? हॉन्गकॉन्ग के विद्रोह से चीन हिल गया है. ताइवान की बढ़ती ताकत से वह परेशान है. वहीं तिब्बत पर अमेरिका के रुख से चीन तनाव में है. कथित रूप से चीन के अधिकार वाले ये तीन देश नहीं बल्कि आज की तारीख में चीन के खिलाफ ताकतवर देशों के ट्रिगर प्वाइंट बन गये हैं.
इसी ट्रिगर प्वाइंट ने चीन को बैकफुट पर लाकर डरने को मजबूर कर दिया है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस कदर खौफ में हैं कि उन्होंने कल अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने को कह दिया. चीन की मीडिया के मुताबिक राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मंगलवार को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी और पीपुल्स आर्म्ड पुलिस फोर्स के साथ मीटिंग में ये बातें कही है. हालांकि चीनी राष्ट्रपति ने किसके खिलाफ युद्ध की तैयारी करने को कहा है ये साफ नहीं है. लेकिन इतना साफ है कि इस वक्त दुनिया के चक्रव्यूह में चीन फंसा हुआ है.
हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने से नाराजगी है तो ताइवान को दुनिया में मान्यता मिलने से चीन परेशान है. वहीं तिब्बत को अलग देश की मान्यता देने का मुद्दा उठ गया है तो कोरोना की जांच को लेकर दुनिया ने चीन को घेर रखा है. इन सबके बीच लद्दाख में चीनी सैनिक और भारतीय फौज के बीच तनातनी चल रही है. चीन को मालूम है कि लद्दाख में उसकी सेना से कोई चूक हुई तो मामला सिर्फ भारत और चीन तक सीमित नहीं रह पाएगा. लिहाजा चीन के विदेश मंत्री ने आज सफाई दी है और कहा है कि भारत के साथ सीमा पर स्थिति नियंत्रण में है.
भारत में भी रक्षा एक्सपर्ट मानते हैं कि हिंदुस्तानी सैनिकों से चीनी सैनिकों का फेस ऑफ यानी आमने सामने आना गर्मी के मौसम में आम बात है और ये ज्यादा गंभीर बात नहीं है. लेकिन सवाल ये है कि लद्दाख में जो हो रहा है वो सामान्य बात है तो फिर चीन किसने लड़ने की तैयारी कर रहा है?
दरअसल, तिब्बत की राजधानी लहासा को चीन ने कब्जा रखा है. तिब्बत बौद्ध आबादी वाला इलाका है और भारत का पड़ोसी भी है. लेकिन पचास के दशक में चीन के कब्जे के बाद यहां के लोग भारत में आकर शरण ले चुके हैं. तिब्बत के सबसे बड़े धर्म गुरु दलाई लामा भी भारत में शरण लिए हैं. इस तिब्बत को अलग देश का दर्जा देने की तैयारी अमेरिका ने की है. जिस दिन अमेरिका से खबर आई उसी दिन चीन से युद्ध की तैयारी वाली खबर भी आई. ये महज संयोग भी हो सकता है लेकिन इस संयोग का समीकरण ये है कि तिब्बत, हॉन्गकॉन्ग और ताइवान से ज्यादा चीन की दुखती रग है. दुनिया में जहां भी तिब्बत के लोग शरण लिये हुए हैं वहां वो तिब्बत की आजादी की मांग बुलंद करते रहते हैं.
अमेरिका ने पिछले हफ्ते ही चीन को कहा था कि वो तिब्बती बौद्ध धर्म गुरु पंचेन लामा को रिहा करे. पंचेन लामा जब 6 साल के थे तब चीन ने उन्हें कब्जे में ले लिया था. पूरी दुनिया जानती है कि चीन की नीति कब्जेबाज वाली है. पहले उसने तिब्बतियों को भगाकर वहां की जमीन पर कब्जा कर लिया. अब हॉन्गकॉन्ग में उसने विवादित कानून लागू करके उसे हथियाने की साजिश की है. इसके बाद ताइवान पर भी वो चढ़ाई कर सकता है.
इसी रणनीति के तहत शायद वो आगे भी बढ़ रहा है. चीन की इसी रणनीति को काटने के लिए अमेरिका ने ताइवान, हॉन्गकॉन्ग और तिब्बत को लेकर दखल देना शुरू कर दिया है. अमेरिका के विदेश मंत्री हॉन्गकॉन्ग पर चीन की जोर जबरदस्ती पर नाराजगी दिखा चुके हैं. ताइवान के राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में वो शामिल भी हो चुके हैं. अब अमेरिकी कांग्रेस में तिब्बत को आजाद देश का दर्जा देने का प्रस्ताव अमेरिकी सांसद स्कॉट पेरी ने रखा है.
अमेरिका की दिलचस्पी इसलिए है क्योंकि कोरोना काल में दुनिया की अर्थव्यवस्था का भट्टा चीन ने बिठा दिया है. दुनिया के देश परेशान हैं और चीन न सिर्फ अपनी दुकानदारी चमका रहा है बल्कि कब्जे वाली चाल चलकर दुनिया में दादागीरी दिखाने की कोशिश कर रहा है. इसीलिए हो सकता है युद्ध की तैयारी वाला बयान जिनपिंग ने अमेरिका को धौंस दिखाने के लिए दिया हो.
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