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जानिए- UNSC में मसूद अजहर के मामले में अब क्या हो सकता है?

मौजूदा होल्ड की मियाद तीन महीने तक है. तीन महीने की इस अवधि से पहले भी कोई स्थायी सदस्य देश चाहे तो इस मुद्दे को सुरक्षा परिषद में ले जाने की मांग रख सकता है.

नई दिल्ली: मसूद अजहर पर अमेरिका-फ्रांस और ब्रिटेन की तरफ से दिया गया ताज़ा प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति के पास है. यह समिति प्रस्ताव संख्या 1267 के तहत आईएसआईएस और अलकायदा से जुड़े व्यक्तियों और संगठनों पर प्रतिबंध को देखती है. चीन द्वारा होल्ड लगाए जाने के कारण प्रतिबंध समिति में अटका है. मौजूदा होल्ड की मियाद तीन महीने तक है. समिति के विचाराधीन रहने तक इसपर अन्य कोई कदम उठाना संभव नहीं है.

हालांकि, तीन महीने की इस अवधि से पहले भी कोई स्थायी सदस्य देश चाहे तो इस मुद्दे को सुरक्षा परिषद में ले जाने की मांग रख सकता है. सुरक्षा परिषद ज़्यादा अधिकार वाली संस्था है. लिहाज़ा जो मामले प्रतिबंध समिति में न सुलझें उन्हें परिषद के पास ले जाया जाना होता है.

फर्ज़ करिए कि यदि अमेरिका, ब्रिटेन या फ्रांस मसूद अजहर पर प्रतिबंध के विषय को परिषद के पास ले जाने का प्रस्ताव रखता है तो सबसे पहले इस मामले पर मतदान होगा. प्रक्रिया सम्बन्धी मामला होने के कारण इसपर फैसला अफर्मेटिव वोटिंग से संभव है. यानि 15 में से 9 सदस्यों के वोट समर्थन से फैसला हो जाएगा कि सुरक्षा परिषद इस मुद्दे पर चर्चा करे या न करे. इसपर बयान भी होंगे और मतदान भी. प्रक्रियात्मक मुद्दा होने के कारण चीन के पास इसे रोकने के लिए कोई वीटो अधिकार नहीं है. लिहाज़ा यदि प्रस्ताव आया तो चीन सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे को बहस के लिए जाने से रोक नहीं पाएगा.

सुरक्षा परिषद मसूद अजहर पर प्रतिबंध के मुद्दे को बहस व मतदान के लिए स्वीकार कर लेती है तो चीन पर बैठक में खुलकर मसूद अज़हर के हक में अपनी दलीलें रखने और पक्ष में मतदान करने की मजबूरी हो जाएगी. हालांकि प्रतिबंध और आतंकवाद निरोधक कार्रवाई एक Substantive Action या ठोस कार्रवाई है. इसलिए सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य होने के कारण Substantive कार्रवाई पर चीन के पास वीटो अधिकार उपलब्ध है. यदि यह मामला अंत में वोटिंग की नौबत तक जाता है तो वीटो अधिकार के चलते चीन इसे रोकने में कामयाब हो जायेगा.

अमेरिका 2006 में अफर्मेटिव वोटिंग का सहारा ले चुका है चीन के होल्ड लगाने के बाद अमेरिका ने जिन अन्य विकल्पों की ओर जो इशारा किया है उसके गम्भीर मायने निकाले जा रहे हैं. दरअसल, अमेरिका 2006 में लगभग ऐसी ही स्थिति आने पर एक सूडानी नागरिक को प्रतिबंधित सूची में शामिल कराने के लिए अफर्मेटिव वोटिंग का सहारा ले चुका है. अफर्मेटिव वोटिंग में पक्ष, विपक्ष और मतदान न करने वालों का रिकॉर्ड दर्ज कर प्रकाशित किया जाता है.

बड़ा सवाल यह है कि क्या चीन मसूद अजहर जैसे आतंकी के लिए इस नौबत तक साथ खड़ा होने को तैयार होगा. चीन की यही परीक्षा भारत के प्रयासों के लिए उम्मीद बढ़ाती है कि देर सवेर चीन मसूद की ढाल बनना बंद कर उसे प्रतिबंधित करने के प्रस्तावों में साथ खड़ा हो जाए.

मौजूदा प्रस्ताव प्रतिबंध समिति के विचाराधीन एक रूटीन मामला मसूद अजहर पर रखा गया मौजूदा प्रस्ताव प्रतिबंध समिति के विचाराधीन फिलहाल एक रूटीन मामला है. यह न तो सुरक्षा परिषद का कोई एजेंडा विषय है और न ही कोई व्यापक प्रभाव वाला मुद्दा. यूएन चार्टर के मुताबिक, यूएनएससी में भी जब कोई देश यदि किसी मुद्दे को वीटो अधिकार से अटकाता है तो फिर उस मामले पर महासभा फैसला कर सकती है. हालांकि इसके लिए पहले सम्बंधित विषय को सुरक्षा परिषद के एजेंडा से हटाने का प्रस्ताव लाया जाता है.

प्रक्रियात्मक होने के कारण इस तरह के प्रस्ताव पर वीटो की बाध्यता नहीं होती और 9 सदस्यों के समर्थन मत से फैसला संभव है. उसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा उस मामले पर चर्चा और मतदान कर फैसला कर सकती है. ऐसा पूर्व में कोरिया और फलस्तीन को लेकर हो चुका है.

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