नई दिल्लीः भारत चीन सीमा पर फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है लेकिन चीन की चालबाजी की खबरें लगातार सामने आ रही हैं. ताज़ा जानकारी चीनी सेना की आनन-फानन में एलएसी पर तैनाती से जुड़ी है.


सूत्रों के मुताबिक, सीमा पर भारत से तनाव शुरू होने से पहले चीन की पीएलए सेना तिब्बत में एक बड़ा युद्धभ्यास कर रही थी. इस एक्सरसाइज के लिए सैनिकों को तिब्बत में जुटाया गया था और फिर इन्हीं सैनिकों को एलएसी पर रवाना कर दिया गया.


सूत्रों के मुताबिक, लेकिन भारतीय सेना को बॉर्डर पर सैनिकों को जुटाने के लिए किसी युद्धभ्यास की जरूरत नहीं पड़ती है. क्योंकि भारतीय सेना कॉल्ड-स्टार्ट  रणनीति पर काम करती है. जिसके तहत किसी भी वक्त कुछ घंटों में ही सैनिकों को किसी भी विपरीत परिस्तथितियों के लिए तैयार किया जा सकता है.


यही वजह है कि जब चीन के सैनिक गैलवान, फिंगर-एरिया और डेमचोक में आकर जम गए तो भारतीय सेना ने भी उतनी ही तेजी से वास्तविक नियंत्रण  रेखा पर ‘मिरर-डेप्लोयमेंट’ कर दी. मिरर-डेप्लोयमेंट यानि जितने सैनिक चीन के लाइन ऑफ एक्युचल कंट्रोल पर तैनात हैं उतनी ही संख्या में भारतीय  सैनिक भी वहां तैनात हैं.


जानकारी के मुताबिक, जनवरी-फरवरी के महीने से चीन की पीएलए यानि पीप्लुस लिबेरशन आर्मी तिब्बत में हाई-ऑल्टिट्यूड वॉर-एक्सरसाइज कर रही थी.


इस युद्धभ्यास में चीन के लाइट-टैंक और हल्की-तोपों का इस्तेमाल किया गया था. इन लाइट-टैंकों को हाल ही में चीन ने दुनिया के सामने मिलिट्री-परेड के  दौरान प्रदर्शित किया था और पहली बार किसी युद्धभ्यास में इस्तेमाल किया गया था. यही वजह है कि जब एलएसी पर भारतीय सैनिकों से फेसऑफ हुआ  तो चीनी सैनिक बेहद तेजी से गैलवान घाटी और फिंगर-एरिया में लावो-लश्कर के साथ वहां आ पहुंचे.


पिछले हफ्ते थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे  ने रक्षा मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल को जो चीनी सैनिकों की संख्या बताई थी वो करीब 2000 थी. उसके बाद कुछ और सैनिकों को चीनी सेना ने यहां पहुंचाया है.


लेकिन भारतीय सेना के सूत्रों की मानें तो अगर चीन एलएसी पर 10 हजार सैनिक भी तैनात करता है तो उसके लिए भी भारतीय सेना तैयार है, क्योंकि  भारतीय सेना की 14वीं कोर का मुख्यालय लद्दाख की प्रशासनिक राजधानी, लेह में है.


फायर एंड फ्यूरी के नाम से जाने जानी वाली इस कोर की पूरी एक  डिवीजन, 3-डिव लद्दाख से सटी चीन सीमा की रखवाली के लिए हमेशा तैयार रहती है. एक डिव में करीब-करीब 10 हजार इंफ्रेंटी सैनिक होते हैं. उसके  साथ-साथ एक पूरी आर्मर्ड-ब्रिगेड यानि टैंकों की ब्रिगेड, तोप और एयर-डिफेंस रेजीमेंट भी इस डिव का हिस्सा होती है. भारतीय सेना में इस 3-डिव को  त्रिशूल-डिवीजन के नाम से भी जाना जाता है.


यहां तक की सेना ने अपने रिजर्व सैनिकों को भी तुरंत एलएसी की तरफ बढ़ा दिया. क्योंकि लद्दाख में तैनात  होने के लिए सैनिकों को करीब एक हफ्ते का एकलेमेटाइजिशेन यानि जलवायु के प्रति अपने आप को ढालना होता है. ये लद्दाख में हाई-ऑल्टिट्यूड और बेहद  कम ऑक्सीजन के कारण करना होता है. यहां तैनात सैनिकों को कड़े एकलेमेटाइजिशेन से गुजरने के बाद ही बॉर्डर पर तैनात किया जाता है. अगर ऐसा नहीं  करते हैं तो सैनिकों की तबीयत तुरंत बिगड़ जाती है.


भारतीय सेना में लद्दाख मे तैनाती के लिए 12 महीनें सैनिकों का एकलेमेटाइजिशेन चलता रहता है ताकि सीमावर्ती इलाकों में तैनाती के लिए सैनिकों की कोई कमी ना पड़े.


सूत्रों के मुताबिक, यही वजह है कि जब चीनी सैनिक गैलवान घाटी में 80 टेंट गाड़कर जम गए तो कुछ ही घंटों में भारतीय सैनिक भी करीब 500 मीटर दूर  कैंप लगाकर वहीं जम गए. सूत्रों के मुताबिक, भले ही भारतीय टेंट संख्या में कम हों लेकिन सैनिक चीन से कहीं कम नहीं है. यहां तक की जो सैटेलाइट  इमेज दोनों कैपों की सामने आई हैं उसमें भारतीय कैंप का कैमोफलाज चीन के पीएलए कैंप से कहीं ज्यादा बेहतर है.


मिलिट्री-स्ट्रेटेजी में माना जाता है कि  युद्ध के मैदान में अपना कैंप कुछ इस तरह होना चाहिए कि आसमान से दुश्मन के हवाई जहाज, फाइटर जेट या फिर ड्रोन ठीक ठीक पता ना कर पाएं कि  नीचे कितने टेंट लगें हैं और वहां क्या क्या है. यही वजह है कि सैटेलाइट तस्वीरों में जहां चीनी टेंट आसानी से गिने जा सकते हैं, भारतीय कैंप में ये पता  लगाना मुश्किल हो रहा है कि वो कैंप है या फिर पहाड पर कोई छोटा सा जंगल है, जो रणनीति के हिसाब से कही ज्यादा अच्छा माना जाता है.


इस बीच प्लेनेट-लैब ने तिब्बत के नगरी-गुंसा एयरपोर्ट की तस्वीरें जारी की हैं. इन तस्वीरों से पता चलता है कि चीन ने हाल ही में इस ड्यूल-एयरपोर्ट में  काफी रेनोवेसन कराया है ताकि फाइटर जेट्स को यहां तैनात किया जा सके. ओपन-सोर्स तस्वीरों में पता चलता है कि इस महीने नगरी-गुंसा बेस पर चीनी  वायुसेना के चार फाइटर-जेट्स तैनात हैं. नगरी-गुंसा एयरबेस एलएसी के फिंगर-एरिया से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर है.


आपको बता दें कि हाल ही में चीन ने अनमैनड-हेलीकॉप्टर्स को भी निगरानी और सर्विलांस के लिए तिब्बत में भारत की सीमा के बेहद करीब तैनात किया  है. ग्लोबल टाईम्स की रिपोर्ट की मानें तो इन पायलट-रहित हेलीकॉप्टर्स का इस्तेमाल इलेक्ट्रोनिक-डिसरप्शन के लिए भी किया जाता है यानि दुश्मन की  सैन्य प्रणाली जाम करने के लिए. साथ ही इन हेलीकॉप्टर्स से हाई-ऑल्टिट्यूड पर फायरिंग के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है.


साफ है कि चीनी सेना तिब्बत में भारतीय सीमा से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी ताकत बढ़ाने में जुटी है. लेकिन भारतीय सेना ने भी साफ कर  दिया है कि वो सीमा पर चीन की किसी भी चालबाजी को कामयाब नहीं होने देगी. क्योंकि लद्दाख में पैंगोंग लेक के करीब ही भारतीय सेना की एक पूरी  आर्मर्ड ब्रिगेड तैनात है जिसे ‘हायेस्ट कैवेलियर’ के नाम से जाना जाता है. जैसाकि, एबीपी न्यूज ने बुधवार को बताया था कि इस ब्रिगेड को खड़ा करने  के लिए टैंकों को दुनिया की दूसरी सबसे उंचा सड़क, चांगला-दर्रे से पास कराया गया था, जो कि एक बेहद ही टेढ़ी खीर था. इसके अलावा भी लद्दाख के उंचे  उंचे पहाड़ों में भारतीय सेना ने अपनी आर्टलरी-गन्स को तैनात किया हुआ है.


इतना ही नहीं लेह और थियोस में भारतीय वायुसेना के डिटेचमेंट तैनात रहते हैं यानि फाइटर जेट्स तैनात रहते हैं. दुनिया की सबसे उंची एयर-स्ट्रीप, दौलत बेग ओल्डी के अलावा भारतीयव वायुसेना नेयोमा और फुकचे में भी एडवांस लैंडिग-ग्राउंड तैयार कर रही है ताकि जरूरत पड़ने पर यहां पर एयरक्राफ्ट्स  ऑपरेशन किए जा सकें और सैनिकों को सीमा पर जल्द पहुंचाया जा सके.


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