पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती इलाके में चीन खुराफाती कारस्तानियों से बाज नहीं आ रही है. सरहदी इलाके में अपना सैनिक जमावड़ा बनाए रखने के साथ ही चीन अब सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने संचार नेटवर्क की ताकत और मोबाइल टावर की संख्या भी बढ़ा रहा है. 


लद्दाख में चुशूल इलाके के पार्षद नॉचोक स्तेनजिन ने इस बारे में सोशल मीडिया पर जानकारी साझा कर कहा कि पेंगॉन्ग झील पर पुल बनाने के बाद अब सीमावर्ती हॉटस्प्रिंग क्षेत्र में तीन मोबाइल टावर लगा दिए हैं.  क्या यह चिंता की बात नहीं है? जबकि भारत के सीमावर्ती गांवों में अब तक 4G नहीं है. उन्होंने कहा कि चीन तेजी से  सीमा वाले इलाकों में ढांचागत निर्माण कर रहा है. 


सीमाई इलाकों में खुफिया जानकारियां बटोरना है चीन का उद्देश्य


रक्षा जानकारों के मुताबिक सीमा के इलाके में नए गांव बसाना, सड़कें, पुल, मोबाइल टावर लगाना चीन के आक्रामक रुख के निशान हैं. रक्षा विशेषज्ञ संजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि चीन का सारा जोर सीमा के इलाके में खुफिया जानकारियां बटोरने पर है. इसीलिया जहां वो चरवाहों के नए गांव बसा रहा है. वहीं संचार नेटवर्क मजबूत करने के नाम पर भी सर्वेलेंस बढ़ा रहा है. ऐसे में भारत को बेहद सतर्क रहने की जरूरत है. 


चीन बीते काफी सालों से सीमा के इलाकों में न केवल ढांचागत निर्माण पर जोर दे रहा है. बल्कि उस ढांचे का इस्तेमाल किस नीयत से करना चाहता है इसकी बानगी बीते करीब दो साल से जारी सीमा तनाव में मिल गई. इतना ही नहीं भारत के संचार और टेलिकॉम नेटवर्क में चीनी सेंधमारी की रिपोर्ट के चलते ही अब तक 150 से अधिक चीनी मोबाइल ऐप्लिकेशन को भारत बैन कर चुका है.


अमेरिका ने भी उठाया सीमावर्ती इलाकों में ढांचागत निर्माण का मुद्दा


भारत के साथ हाल ही में हुई 2+2 वार्ता के दौरान अमेरिका ने भी भारतीय सीमावर्ती इलाके में चीनी ढांचागत निर्माण के दबाव का मुद्दा उठाया था. भारतीय रक्षा मंत्री के साथ हुई बातचीत की मेज पर अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉइड ऑस्टिन ने कहा कि चीन के बढ़ते दबाव से मुकाबले और अपनी संप्रभुता की रक्षा में भारत के हर प्रयास में अमेरिका साथ है. 


गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख से लेकर पूर्वोत्तर के इलाके में फैली वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन आए  दिन अपनी धमक दिखाने की कोशिश करता है. हालांकि पूर्वी लद्दाख इलाके में भारत के मजबूत रुख और कई इलाकों में जवाबी कार्रवाई के बाद चीन ने बातचीत की मेज पर कई इलाकों में कदम पीछे लेने का फैसला किया. हालांकि अभी भी देपसांग समेत कुछ इलाके हैं जहां चीनी सेना की मौजूदगी बरकरार है. इसको सुलझाने के लिए भारत और चीन के बीच राजनयिक और सैन्य वार्ताओं के कई दौर हो चुके हैं.


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