चीन ने भारत सीमा के पास, तिब्बत में पहली बुलेट ट्रेन सेवा शुरू की
रेल लाइन 47 सुरंगों और 121 पुलों से होकर गुजरती है और ब्रह्मपुत्र नदी को 16 बार पार करती है. रेलवे लाइन का करीब 75 प्रतिशत हिस्सा सुरंग और पुल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसकी माल ढुलाई क्षमता एक करोड़ टन सालाना है और इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा तथा लोगों के जीवन में सुधार हो सकेगा.
बीजिंग: चीन ने तिब्बत के सुदूर हिमालयी क्षेत्र में पहली पूरी तरह बिजली से संचालित बुलेट ट्रेन का शुक्रवार को परिचालन शुरू किया जो प्रांतीय राजधानी लहासा और नियंगची को जोड़ेगी. नियंगची अरुणाचल प्रदेश के करीब स्थित तिब्बत का सीमाई नगर है. सिचुआन-तिब्बत रेलवे के 435.5 किलोमीटर लंबे लहासा-नियंगची खंड का एक जुलाई को सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के शताब्दी समारोहों से पहले उद्घाटन किया गया है.
सरकारी समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ’ ने खबर दी कि तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में पहली विद्युत चालित रेलवे की शुक्रवार सुबह से शुरुआत हुई और इसके साथ ही लहासा से नियंगची के बीच “फूक्सिंग” बुलेट ट्रेनों का पठारी क्षेत्र में आधिकारिक परिचालन शुरू हो गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस खंड पर ट्रेन की अधिकतम गति 160 किमी प्रति घंटा होगी और यह सिंगल लाइन विद्युतीकृत रेलवे है. इस खंड में कुल नौ स्टेशन हैं और यात्रियों के साथ ही माल ढुलाई भी होगी.
सिचुआन-तिब्बत रेलवे किंगहाई-तिब्बत रेलवे के बाद तिब्बत में दूसरी रेलवे होगी. यह किंगहाई-तिब्बत पठार के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र से होकर गुजरेगी जो विश्व के भूगर्भीय रूप से सबसे सक्रिय क्षेत्रों में से एक है.
नवंबर में, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अधिकारियों को सिचुआन प्रांत को तिब्बत में नियंगची से जोड़ने वाली नयी रेलवे परियोजना का काम तेज गति से करने का निर्देश दिया था और कहा था कि नयी रेल लाइन सीमा स्थिरता को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाएगी.
सिचुआन-तिब्बत रेलवे की शुरुआत सिचुआन प्रांत की राजधानी, चेंगदू से होगी और यान से गुजरते हुए कामदो के जरिए तिब्बत में प्रवेश करेगी जिससे चेंगदू से लहासा की यात्रा 48 घंटे से कम होकर 13 घंटे रह जाएगी. नियंगची मेडोग का प्रांतीय स्तर का शहर है जो अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है.
चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता है जिसे भारत पुरजोर तरीके से खारिज करता है. भारत-चीन सीमा विवाद 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर है.
शिंगहुआ यूनिवर्सिटी में नेशनल स्ट्रेटजी इंस्टीट्यूट के शोध विभाग के निदेशक कियान फेंग ने सरकारी दैनिक ‘ग्लोबल टाइम्स’ से पूर्व में कहा था, ''अगर चीन-भारत सीमा पर संकट का कोई परिदृश्य बनता है तो इस रेलवे से चीन को रणनीतिक सामग्री पहुंचाने में बहुत सुविधा होगी.''
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