पिछले एक महीने से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चल रही तनातनी के बीच खबर है कि चीनी सेना ने गैलवान घाटी में अपने कैंप में से कुछ टेंट कम कर दिए हैं. हालांकि, अभी तक ये साफ नहीं हुआ है कि किस कारण से चीनी सेना ने अपने टेंट कम किए हैं लेकिन इससे लगभग साफ हो गया है कि चीन ने गैलवान घाटी में अपने सैनिकों की संख्या कम कर दी है.


सूत्रों के मुताबिक, भारत को चीन के कैंप से कोई दिक्कत नहीं थी, क्योंकि चीन का कैंप चीन की ही सीमा में ही था. ऐसे में जब चीनी सेना ने भारतीय सीमा में घुसपैठ की ही नहीं थी तब भारतीय सेना को कोई खास ऐतराज नहीं था—सिवाए इसके कि चीन ने स्टेटस-कयो यानि यथास्थिति में छेड़छाड़ की है. क्योंकि चीन की सेना इससे पहले कभी यहां कैंप गाड़कर नहीं बैठी थी. लेकिन टेंट कम होने से ऐसा लगता है कि गैलवान घाटी में चीन तनाव कम कर सकता है. हालांकि, 6 जून को दोनों देशों के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारियों की होने वाली अहम बैठक में ही साफ हो पाएगा कि चीन क्या वाकई सीमा पर तनाव कम करने के मूड में है.


सैटेलाइट इमेज भी आए थे सामने


सूत्रों के मुताबिक, गैलवान घाटी में चीनी सेना को भारत के सड़क, इंफ्रास्ट्रक्चर और डिफेंस-फैसेलिटी तैयार करने से एतराज था. हालांकि, इस इलाके में झड़प की शुरूआत गैलवान नदी पर भारतीय सेना द्वारा एक पुल बनाने को लेकर दोनों देश के सैनिकों में मारपीट हुई थी, जिसके बाद इस महीने के शुरूआत में चीनी की पीएलए सेना ने करीब 80 टेंट इस इलाके में गाड़ लिए थे. इन कैंपों में माना जा रहा था कि चीन के 700-800 सैनिक मौजूद थे यानि लगभग पूरी एक बटालियन. इसके जवाब में भारतीय सेना ने भी करीब 500-600 मीटर दूर अपना कैंप लगाकर ‘मिरर-डिप्लोयमेंट’ कर दी थी. लेकिन उसके बाद से दोनों देश की सेनाओं की तरफ से कोई हरकत नहीं हुई. गैलवान घाटी में दोनों देशों के कैंपों की सैटेलाइट इमेज भी सामने आई थीं.


गतिरोध के दौरान जब गैलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के फील्ड कमांडर्स के बीच बातचीत हुई और चीन ने भारत को सड़क और दूसरे इंफ्रस्ट्रक्चर तैयार करने के लिए चल रहे काम को रोकने के लिए कहा था, लेकिन भारत ने इसके लिए साफ इंकार कर दिया था. भारत ने भी चीन से दो टूक कह दिया था कि या तो चीनी सेना कैंप हटा ले और अप्रैल के शुरूआत में जो स्थिति थी उसे कर ले या फिर दोनों देशों के कैंपों के बीच ही वास्तविक नियंत्रण रेखा डिमार्केट यानि निर्धारित कर दी जाए. लेकिन चीन दोनों ही मांग मानने में टाल-मटोल कर रहा था.


मीटिंग से पहले नहीं कहा जा सकता कुछ


ऐसे में माना जा सकता है कि चीन को लग रहा है कि गैलवान घाटी में दाल नहीं गलेगी तो अपने सैनिकों को वापस करने का विचार कर रहा हो. लेकिन इस बारे में पुख्ता तौर से 6 जून की मीटिंग से पहले कुछ नहीं कहा जा सकता है.


ऐसे में ये माना जा रहा है कि 6 जून की मीटिंग में पैंगोंग-त्सो लेक के करीब विवादित फिंगर-एरिया ही मुख्य मुद्दा होने जा रहा है. दोनों देशों के लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारियों की मीटिंग भी पैंगोंग-त्सो के करीब चुशूल-मोल्डू में चीन की तरफ होने जा रही है. अगर गैलवान घाटी मुख्य मुद्दा होता तो डीबीओ में ये बैठक हो सकती थी. क्योंकि गैलवान घाटी डीबीओ क्षेत्र के अंतर्गत आती है.


चुशूल-मोल्डू में दोनों देशों की सेनाओं की बीपीएम यानि बॉर्डर पैर्सनेल मीटिंग ‘हट’ है जहां पर सैन्य कमांडर्स बैठक करते हैं. चुशूल में भारतीय सेना की हट यानि कॉम्पलेक्स है जबकि मोल्डू में चीनी सेना की है. 6 जून की मीटिंग चीन की तरफ होने जा रही है. इस बैठक में दोनों देश के कोर कमांडर्स (लेफ्टिनेंट जनरल) अपना अपना एजेंडा सामने रखेंगे. ये एक लंबी मीटिंग हो सकती है जिसके बाद ही साफ हो पाएगा कि सीमा पर पिछले एक महीने से चल रहा तनाव खत्म होगा या नहीं.


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