नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच लद्दाख के पठार में बीते 60 से अधिक दिनों से जारी हौसलों की जंग में अब चीनी तेवर कुछ नर्म पड़ने लगे हैं. चीन ने जहां गलवान घाटी और पैंगोंग झील इलाके से अपने सैनिकों को कुछ पीछे हटाया है. वहीं भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों की बातचीत में उसने सरहद पर शांति के लिए सैन्य जमावड़ा घटाने पर भी रजामंदी जताई है.


विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच 5 जुलाई 2020 के बीच बातचीत हुई, जिसमें नियंत्रण रेखा के पश्चिमी क्षेत्र में हाल के घटनाक्रमों पर विचार विमर्श किया गया. दोनों पक्षों ने माना कि सीमा क्षेत्रों में शांति बनाए रखना द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढाने के लिए आवश्यक है. साथ ही यह ज़रूरी है कि आपसी मतभेदों को विवाद नहीं बनने दिया जाए.


विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी बयान के मुताबिक, दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधि इस बात पर भी राजी हुए कि शांति बहाली के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा पर से सैनिकों की संख्या जल्द जल्द से जल्द कम करने के साथ ही डी-एस्केलेशन( सैन्य जमावड़ा घटाना) सुनिश्चित करना भी आवश्यक है. इस संबंध में वे आगे इस बात पर सहमत हुए कि दोनों पक्षों को LAC के साथ चल रही सैन्य संख्या घटाने की कवायद को शीघ्रता से पूरा करना चाहिए.


दोनों पक्ष भारत-चीन सीमा क्षेत्रों में चरणबद्ध तरीके से सैन्य जमावड़े को कम करेंगे. सूत्रों के मुताबिक 15 जून को दोनों देशों के सैनिकों के बीच खूनी संघर्ष का गवाह बनी गलवान घाटी में चीनी सैनिक करीब डेढ़ किमी पीछे हट गए है. यानी दोनों देशों के सैनिकों के बीच अब दूरी करीब तीन किमी है.


बताया जाता है कि करीब दो घण्टे चली बातचीत में डोवाल और वांग यी इस बात पर भी सहमत थे कि यथास्थिति में बदलाव के लिए कोई एकतरफा कार्रवाई नहीं करनी चाहिए. यानी 15 जून को दोनों देशों के सैनिकों के बीच जैसी हिंसक झड़प हुई उसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए .


पीएम मोदी के लद्दाख दौरे ने निभायी बड़ी भूमिका 
उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक चीन के तेवरों में नज़र आई नरमी की एक बड़ी वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लद्दाख दौरा और भारत के पक्ष में उभरा अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी था. सूत्र बताते हैं कि पीएम मोदी की 3 जुलाई को हुई लद्दाख यात्रा ने चीन को यह संदेश बखूबी दे दिया कि भारत अपनी सीमाओं की रक्षा किसी भी कीमत पर करेगा.


इतना ही नहीं बीते कुछ दिनों के दौरान विदेश मंत्री डॉ इस जयशंकर, NSA अजीत डोवाल, विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला और भारत के वरिष्ठ राजनयिकों की तरफ से किए गए बहुस्तरीय प्रयासों का भी असर नज़र आया.


गौरतलब है कि भारत सरकार ने इस दौरान रूस, अमेरिका, जापान, फ्रांस, जर्मनी समेत कई देशों के साथ न केवल सम्पर्क किया बल्कि उन्हें LAC के हालात पर ब्रीफ भी किया. सूत्रों के मुताबिक फ्रांस, अमेरिका समेत कई मुल्कों की तरफ से गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों की शहादत पर संवेदना जताते बयान भारतीय दृष्टिकोण की स्वीकार्यता भी बताते हैं.


चीनी गतिविधियों पर रखी जाएगी पूरी निगरानी 
हालांकि उच्च पदस्थ सरकारी सूत्रों का कहना है कि चीन की तरफ से की गई तनाव घटाने की बातों और कोशिशों को भारत फिलहाल केवल एक शुरुआत की तरह देख रहा है. इस पर बकायदा पूरी निगरानी रखी जाएगी कि चीन की तरफ से किए गए वादे और जताए गए इरादे ज़मीन पर भी नज़र आते हैं या नहीं.


सूत्रों के मुताबिक एलएसी पर सैनिकों के बीच आमने-सामने की स्थिति खत्म करने के साथ ही हाल के दिनों में चीन की तरफ से किए गए सैन्य जमावड़े को कम करने पर भारत का जोर होगा.


इस बीच दोनों विशेष प्रतिनिधियों के बीच 5 जुलाई को हुई बातचीत में दोनों देशों ने राजनयिक और सैन्य अधिकारियों के बीच भारत-चीन सीमा मामलों पर बने WMCC में और अन्य मौजूदा कार्य तंत्र के तहत अपनी चर्चाएं जारी रखने पर भी सहमति जताई. साथ ही सीमा समाधान के लिए भी दोनों देश विशेष प्रतिनिधि स्तर की वार्ता प्रक्रिया जारी रखेंगे.


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